अमरोहा हत्याकांड: फांसी की सजा पर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई पूरी, SC ने फैसला रखा सुरक्षित
अमरोहा। उत्तर प्रदेश के अमरोहा में 12 साल पहले साल 2008 में 10 महीने के बच्चे समेत सात लोगों की हत्या कर दी गई थी। गुरुवार को पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि फांसी की सजा के फैसले का सम्मान होना जरूरी है। ऐसा फैसला होने पर उस पर अमल सुनिश्चित होना जरूरी है और इसे हमेशा अन्तहीन मुकदमेबाजी में फंसाया नहीं जा सकता है। दोषी को ये भ्रम नहीं हो जाना चाहिए कि फांसी की सजा को हमेशा कभी भी चुनौती दी जा सकती है।
परिवार के सात लोंगों को उतारा था मौत के घाट
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव में 15 अप्रैल 2008 को शबनम और उसके प्रेमी सलीम ने मिलकर शबनम के घर में उसके परिवार के सात लोगों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या कर दी थी। मरने वालों में शबनम के माता-पिता, शबनम के दो भाई, शबनम की एक भाभी, शबनम की एक मौसी की बेटी और शबनम का एक भतीजा यानी एक बच्चा भी शामिल था।
शबनम और सलीम को फांसी की सजा
इस हत्याकांड के मामले में शबनम और सलीम को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। शबनम की फांसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी, जिसपर गुरुवार को सुनाई हुई। इस पुनर्विचार याचिका में सलीम और शबनम के वकील आंनद ग्रौवर ने गरीबी और अशिक्षा का हवाला देते हुए उनकी सजा में रहम की मांग की। कोर्ट ने कहा कि देश में बहुत से लोग गरीब और अशिक्षित हैं, आप पुनर्विचार याचिका पर बहस कर रहे हैं, आप ये बताइए कि सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा देने के अपने फैसले में कहां गलती की है।
कोर्ट ने कहा- अंतहीन मुकदमेबाजी की इजाजत नहीं दी जा सकती
सुप्रीम
कोर्ट
ने
कहा,
इस
मामले
में
सभी
पहलुओं
को
देखने
के
बाद
फैसला
दिया
गया
था।
कोर्ट
ने
कहा
कि
योजना
बनाकर
हत्या
की
गई
थी,
अपराधियों
ने
अपने
शातिर
दिमाग
का
इस्तेमाल
करके
घटना
को
अंजाम
दिया।
इस
पर
सलीम-शबनम
के
वकील
ने
कहा
कि
उसका
बच्चा
छोटा
है,
उसकी
देखभाल
करने
वाला
कोई
नहीं
है।
मुख्य
न्यायाधीश
जस्टिस
एसए
बोबडे
ने
कहा,
कानून
के
नाम
पर
अंतहीन
मुकदमेबाजी
की
इजाजत
नहीं
दी
जा
सकती
है।
जैसा
कि
हाल
की
घटनाओं
से
पता
चला
है
कि
मौत
की
सजा
के
बाद
भी
मुकदमेबाजी
की
लगातार
कोशिशें
जारी
हैं।
कोर्ट
ने
कहा
कि
अगर
इस
तरह
से
बहस
होगी
तो
हम
किसी
मामले
में
फैसला
नहीं
दे
पाएंगे,
आपको
केस
के
मेरिट
पर
बहस
करनी
चाहिए।