विजय दिवस: न खाने को खाना न पीने को पानी, एक योद्धा से जानें खौफनाक मंजर की दास्तां
अंबेडकरनगर। "किसी गजरे की खुशबू को महकता छोड़ आया हूं, मेरी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूं, मुझे अपनी छाती से तू लगा लेना ये भारत मां, मैं अपनी मां की बाहों को तरसता छोड़ आया हूं" शायर की ये चंद पंक्तिया उन वीर जवानों के जज्बात को बयां कर रही हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपनी कुर्बानी देकर तिरंगा फहराया था। कारगिल दिवस के मौके पर हम आपको यूपी के अंबेडरनगर में रहने वाले सूबेदार इन्द्रजीत यादव से रूबरू करवा रहे हैं। इन्द्रजीत कारगिल के बटालिक द्रास सेंटर में तोलोलिग पहाड़ी पर उन 46 घायल जवानों में शामिल हैं, जिनके लहू की बदौलत आज देश मस्तक गर्व से ऊंचा है।
न खाने को खाना, न पीने को पानी
इन्द्रजीत बताते हैं कि जब वे अपने साथियों के साथ द्रास सेक्टर में तकरीबन 12 हजार फीट से अधिक तोलोलिंग पहाड़ी पर थे तो वहां बर्फ बहुत अधिक थी। आलम ये था कि न तो खाने का सामान मिल पाता था और न ही पीने के लिए पानी। बर्फ को ही गलाकर पानी पीते और उसी से हाथ-मुंह धोते और उसी से शौच करते। एक तरफ चढ़ाई करते तो दूसरी तरफ फिसलकर नीचे आ जाते।
कारगिल में शहीद हुए थे भारत के 527 से ज्यादा जवान
बता दें, मई-जुलाई 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में हिन्दुस्तान के 527 से ज्यादा जवान शहीद हुए थे। इनके अलावा 1300 से ज्यादा जख्मी हो गए थे। खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश फौजी 30 साल से कम उम्र के थे। करीब 2 महीने की जंग के बाद 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्ति हुई थी। इस दिन को भारत में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इंद्रजीत यादव कारगिल में घायल होने वाले अंबेडकरनगर जिले के इकलौते वीर थे। वह सेना के 18 ग्रेनेडियर बटालियन के सैनिक थे। उनकी सैनिक टुकड़ी को प्वाइंट 5140 कब्जा कर तिरंगा लहराने का जिम्मा सौंपा गया था। दो बार प्रयास असफल रहा। तीसरे प्रयास में भारतीय जवानों को सफलता हाथ लगी, लेकिन इसकी कीमत सैन्य अधिकारियों व सैनिकों की शहादत से चुकानी पड़ी। इस लड़ाई में कारगिल के बटालिक द्रास सेंटर में तोलोलिग पहाड़ी पर दुश्मनों की गोली से इंद्रजीत समेत 46 सैनिक घायल हुए थे।
इंद्रजीत ने 24 साल की देश की सेवा
15 सितंबर 1998 में इंद्रजीत सेना में भर्ती हुए। वह 24 वर्ष की सेवा के बाद 30 सितंबर 2012 को नायब सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में वह अमेठी जिले में स्थित इंडो गल्फ फैक्ट्री में ट्रांसपोर्ट इंचार्ज के पद पर कार्यरत हैं। कारगिल युद्ध में इंद्रजीत के घायल होने की सूचना पर तत्कालीन जिलाधिकारी एसबी सिंह समेत प्रशासनिक अमला घरवासपुर में उमड़ पड़ा था। जिला प्रशासन के समक्ष सैनिक के परिवारीजनों व ग्रामीणों ने मिझौड़ा-महरुआ मार्ग स्थित धार्मिक स्थल ब्रह्म बाबा से गांव को पिच (मेन सड़क) मार्ग से जोड़ने की मांग रखी थी। अभी तक यह मांग पूरी नहीं हो सकी। इसका मलाल वीर को आज भी है। प्रशासन ने प्रवेश द्वार बनवाने, पांच बीघा जमीन पट्टा देने की घोषणा की थी। सड़क और द्वार तो प्रशासन अभी तक नहीं बन सका। पांच के सापेक्ष तीन बीघा जमीन ही मिल सकी है। ब्रह्माबाबा पवित्र धार्मिक स्थल है। यह बचपन से ही इंद्रजीत के आस्था का केंद्र रहा है। लिहाजा इस धार्मिक स्थल पर इंद्रजीत यादव ने अपने निजी खर्चे से कारगिल विजयद्वार नाम से एक विशाल गेट का निर्माण कराया है।
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