मायावती के गढ़ में गठबंधन के चक्रव्यूह में फंसी बीजेपी, इस बार आसान नहीं राह
Ambedkar Nagar news, अंबेडकर नगर। राजनीतिक रूप से भाजपा के लिए बंजर समझी जाने वाली लोहिया की इस सरजमीं पर 2014 के चुनाव में बीजेपी ने वो कर दिखाया था जो बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड के बाद उपजे राम लहर में नहीं हुआ था। अंबेडकर नगर लोकसभा सीट पर पहली बार बड़े अंतराल से जीत हासिल कर बीजेपी ने यहां न केवल भगवा ध्वज लहराया अपितु यहां बसपा और सपा के दुर्ग को भी धराशायी किया। इस बार बीजेपी के लिए इतिहास दोहराना आसान नहीं होगा क्योंकि सपा-बसपा गठबन्धन ने जो दुर्ग तैयार किया है उसको तोड़ना भाजपा के लिए लोहे के चने चबाने सरीखा है। शायद इसी का परिणाम है कि अभी तक भाजपा और कांग्रेस अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं कर सके हैं।
इलाके में सपा-बसपा का दबदबा
वर्ष 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती द्वारा जनपद गठन के बाद से ही अम्बेडकर नगर बसपा और सपा का गढ़ माना जाता है। डॉ राम मनोहर लोहिया के इस धरती पर नीला झंडा किस कदर फहरा कि बसपा सुप्रीमो मायावती 1998, 1999 और 2004 में इस जिले से सांसद रह चुकी हैं। जिले में सपा और बसपा के ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर नीला झंडा फहरा तो 2012 के चुनाव में पांचों सीटों पर साइकिल ने रेस जीत ली।
मोदी लहर में भाजपा जीती
बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड के बाद पूरे देश मे राम लहर की सुनामी आ गयी और बीजेपी इस पर सवार होकर आगे निकल पड़ी लेकिन इस लहर का असर इस लोकसभा सीट पर नहीं दिखाई दिया और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2014 में हुए आम चुनाव में बीजेपी यहां कमल खिलाने में सफल हो गयी। भाजपा प्रत्याशी हरिओम पांडे बसपा के राकेश पांडे को हराकर यहां पहली बार भगवा ध्वज लहराया लेकिन इस बार हालात बदल गए हैं और भाजपा के लिए इन हालातों से निपटना एक चुनौती है।
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भाजपा के लिए हैं ये मुश्किलें
वर्ष 2014 में भाजपा को 41 प्रतिशत से अधिक वोट मिले जबकि बसपा को 28 और सपा को 22 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त हुये थे। भाजपा अपनी इस लोकप्रियता को 2017 में हुए विधान सभा चुनाव में कायम नहीं रख सकी और जिले की पांच सीटों में से दो पर ही जीत हासिल कर सकी जबकि तीन पर बसपा ने जीत हासिल की। वोटों के गणित की नजर से देखा जाय तो गठबन्धन भाजपा से आगे है। मुस्लिम और दलित वोटर बाहुल्य इस सीट पर गठबंधन ने ब्राह्मण बिरादरी नेता बसपा विधायक रितेश पांडे को प्रत्याशी बनाकर मुस्लिम दलित और पिछड़ा के साथ-साथ ब्राह्मण पर भी डोरा डाल कर ऐसा चक्रव्यूह तैयार किया है जिससे निकलने का मार्ग बीजेपी फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है।
भाजपा में गुटबाजी
इन सबके अलावा बीजेपी के अंदर जिले में चल रही गुटबाजी कहीं छिपी नहीं है। शायद ही ऐसा कोई राजनीतिक कार्यक्रम हो जिसमें सांसद, दोनों विधायक और जिलाध्यक्ष एक साथ दिखाई दें और रही-सही कसर टिकट के दावेदारी ने पूरी कर दी। दावेदारों में वर्तमान सांसद के अलावा जिलाध्यक्ष कपिल देव वर्मा, टांडा विधायक संजू देवी, पूर्व विधानसभा प्रत्याशी चंद्र प्रकाश वर्मा के अलावा गोसाईगंज के बाहुबली विधायक खब्बू तिवारी भी हैं। ऐसा माना जाता है कि राजनीतिक रूप से कोई भी अपने विरोधियों से सामंजस्य बनाने में सफल नहीं होगा जिसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।
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