बिना कॉपी जांचे कर दिया फेल, हाईकोर्ट ने फेमस यूनिवर्सिटी पर लागाया 1 लाख का जुर्माना
Prayagraj news, प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान अभ्यर्थियों की कॉपियों के मूल्यांकन में गड़बड़ी से बवाल और किरकिरी का दौर अभी चल ही रहा था कि यह क्रम अब यूनिवर्सिटी में भी शुरू हो गया है। ताजा मामला आगरा यूनिवर्सिटी को लेकर आया है। जहां कॉपी के मूल्यांकन में भारी गड़बड़ी सामने आई है। जिसपर हाईकोर्ट ने सख्त कदम उठाते हुए यूनिवर्सिटी पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया। हर्जाना संबंधित छात्र को देना होगा, जिसकी कॉपी का गलत मूल्याकंन किया गया। हालांकि यहां मामला गलत मूल्यांकन से भी आगे का है। दरअसल छात्र की कॉपी ही नहीं जांची गई और बिना कॉपी जांचे ही उसे फेल कर दिया गया। इसी मामले में छात्र ने हाईकोर्ट की शरण ली थी, जिसके बाद हाईकोर्ट ने छात्र के पक्ष में फैसला सुनाते हुए आदेश दिया है। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में यूनिवर्सिटी को यह छूट दी है कि चाहे तो जुर्माने की रकम संबंधित परीक्षक के खिलाफ जांच कर उससे रकम वसूल सकता है।
क्या
है
मामला
उत्तर
प्रदेश
के
आगरा
स्थित
डॉ.
बीआर
आंबेडकर
विश्वविद्यालय
में
देवेश
गुप्ता
नाम
का
छात्र
एमबीबीएस
की
पढ़ाई
कर
रहा
है।
कुछ
दिनों
पहले
ही
सेमेस्टर
की
परीक्षा
संपन्न
हुई।
परीक्षा
का
बाद
रिजल्ट
आया
तो
फिजियोलॉजी
विषय
के
पेपर
में
देवेश
को
फेल
कर
दिया
गया।
देवेश
को
आश्चर्य
हुआ
साथ
ही
सदमें
में
भी
रहा,
क्योंकि
उसने
यह
पेपर
बहुत
ही
अच्छे
तरीके
से
लिखा
था।
देवेश
ने
यूनिवर्सिटी
परीक्षा
नियंत्रक
से
उसकी
कॉपी
को
फिर
से
जांचने
के
लिये
प्रार्थना
पत्र
दिया,
लेकिन
उसकी
मांग
को
खारिज
कर
दिया।
देवेश
ने
अपने
परिजनों
को
घटनाक्रम
बताया
तो
परिवार
के
एक
नजदीकी
वकील
ने
आरटीआई
कानून
के
तहत
कॉपियां
देखने
के
लिए
आवेदन
करने
को
कहा।
देवेश
ने
आरटीआई
से
कॉपियां
बाहर
निकलवाई
तो
वह
दोबारा
चौंक
गया।
क्योंकि
उसकी
कॉपी
में
मात्र
3
प्रश्न
जांचे
गए
थे,
जिसमें
उसे
6
नंबर
दिए
गये।
बाकी
एक
भी
प्रश्न
को
जांचा
ही
नहीं
गया।
इतने
ही
नंबर
को
आधार
बनाकर
उसे
फेल
कर
दिया
गया।
हाईकोर्ट
ने
जंचवाई
कॉपी
बिना
कॉपी
जांचे
फेल
किए
गए
देवेश
ने
यूनिवर्सिटी
प्रशासन
के
खिलाफ
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
की
तो
हाईकोर्ट
ने
छात्र
की
कॉपी
की
दो
प्रतिलिपि
को
अलग-अलग
जांच
कर
रिपोर्ट
मांगी।
कोर्ट
के
आदेश
पर
उत्तर
पुस्तिका
की
एक
प्रति
की
जांच
इलाहाबाद
मेडिकल
कॉलेज
के
प्रोफेसरों
और
दूसरी
प्रति
किंग
जार्ज
मेडिकल
कॉलेज
के
प्रोफेसर
ने
जांची।
इसमें
इलाहाबाद
में
जंची
कॉपी
में
उसे
20
और
किंग
जार्ज
कालेज
में
जंची
कॉपी
21
अंक
मिले।
हाईकोर्ट
को
रिपोर्ट
दी
गई
तो
हाईकोर्ट
ने
इसे
गंभीर
विषय
माना
और
लापरवाही
पूर्वक
मूल्यांकन
कर
होनहार
छात्र
के
भविष्य
से
खिलवाड़
पर
अपनी
गहरी
नाराजगी
जताई
और
यूनिवर्सिटी
पर
कड़ी
टिप्पणी
करते
हुए
कहा
कि
मूल्यांकन
करने
वाले
परीक्षकों
की
नियुक्ति
करने
में
सावधानी
बरती
जाए
और
योग्य
परीक्षकों
को
ही
यह
महत्वपूर्ण
जिम्मेदारी
सौंपी
जाए।
हाईकोर्ट
की
सख्त
टिप्पणी
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
इस
याचिका
को
न्यायमूर्ति
सुधीर
अग्रवाल
और
न्यायमूर्ति
राजेंद्र
कुमार
की
पीठ
ने
सुनवाई
शुरू
की
तो
यूनिवर्सिटी
की
कार्यप्रणाली
पर
सख्त
टिप्पणी
की।
कहा
कि
परीक्षा
में
मिले
अंक
ही
छात्र
की
योग्यता
को
दर्शाते
हैं,
उसने
जितनी
पढ़ाई
की,
जो
कुछ
सीखा
सब
उसे
3
घंटे
की
अपनी
परीक्षा
में
दिखाना
होता
है।
उसका
भविषय
उत्तर
पुस्तिका
में
होता
है,
लेकिन
यहां
उसी
भविष्य
से
खिलवाड़
किया
जा
रहा
है।
उच्च
अदालत
ने
हैरानी
जताते
कहा
कि
इतनी
लापरवाही
आखिर
कैसे
की
जा
सकती
है।
आखिर
यूनिवर्सिटी
ने
ऐसे
अयोग्य
परीक्षक
की
नियुक्ति
कैसे
कर
दी?
हाईकोर्ट
ने
यूनिवर्सिटी
की
कार्य
प्रणाली
पर
कटाक्ष
करते
हुए
पहले
तो
परीक्षक
की
नियुक्ति
पर
सवाल
उठाये
और
कहा
कि
जो
परीक्षा
छात्र
की
कॉपी
जांचे
बगैर
उसे
फेल
कर
दे,
ऐसे
परीक्षक
न
तो
ईमानदार
हो
सकते
हैं
और
ना
ही
इनमें
कोई
योग्यता
है।
यहां
परीक्षक
के
हाथ
में
बच्चे
का
भविष्य
था
और
उसी
भविष्य
से
परीक्षा
खेलते
नजर
आए।
यूनिवर्सिटी
को
सख्त
चेतावनी
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
ने
देवेश
की
याचिका
पर
1
लाख
रुपये
का
हर्जाना
लगाते
हुए
यूनिवर्सिटी
को
सख्त
चेतावनी
भी
है
कि
भविष्य
में
इस
प्रकार
के
अयोग्य
और
गैरजिम्मेदार
परीक्षक
की
नियुक्ति
किसी
भी
हाल
में
ना
करें।
छात्र
देश
का
भविष्य
हैं
और
देश
के
भविष्य
के
साथ
समझौता
किसी
भी
स्तर
पर
नहीं
किया
जा
सकता।
हाईकोर्ट
यूनिवर्सिटी
से
कहा
कि
वह
हर्जाने
की
रकम
चाहे
तो
परीक्षक
से
वसूल
कर
ले
और
उसे
छात्र
को
दें
और
हम
उनसे
उम्मीद
करते
है
कि
भविष्य
में
ऐसे
गैरजिम्मेदार
और
अज्ञानी
परीक्षक
नियुक्त
नहीं
किए
जायेंगे।
वहीं,
याचिका
को
निस्तारित
करते
हुए
उच्च
न्यायालय
ने
कहा
कि
देवेश
ने
जब
यूनिवर्सिटी
में
दोबारा
मूल्यांकन
के
लिये
आवेदन
किया
तो
उसकी
आवेदन
पर
कोई
ठोस
कदम
नहीं
उठाये
गए,
जबकि
मूल्यांकन
से
तो
साफ
इनकार
कर
दिया
गया।
इस
पर
हाईकोर्ट
ने
स्पष्ट
किया
कि
पिछले
तीन
वर्षों
में
विश्वविद्यालय
की
परीक्षा
में
सम्मिलित
छात्र
यदि
पुनर्मूल्यांकन
की
मांग
करते
हैं
तो
उनकी
कॉपियों
का
मूल्यांकन
दोबारा
किया
जाये।
साथ
ही
किसी
भी
छात्र
को
नियमों
का
हवाला
देकर
मना
नहीं
किया
जाये।
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