शिवपाल से जोड़तोड़ के बिना बिगड़ सकता है कांग्रेस-अपना दल का जायका, जानें क्या है वजह
Prayagraj news, प्रयागराज। कांग्रेस ने बड़ी संख्या में पिछड़े व पटेल बिरादरी के वोटों को अपनी ओर मोड़ने के लिये अपना दल से गठबंधन किया है, लेकिन यादव वोटों को अपनी ओर ललचाने के लिये शिवपाल का सहारा नहीं ले रही है, क्योंकि कांग्रेस के जेहन में अभी भी कहीं न कहीं महागठबंधन में अपनी जगह नजर आ रही है। भले ही अब लड़ाई शुरू हो चुकी है, लेकिन राजनीति में न कयास खत्म होते हैं न संभावनाओं का कभी अंत होता है, लेकिन यहां असली सवाल शिवपाल हैं। भले ही उनके पास बहुत अधिक वोट नहीं हैं, लेकिन कई सीटों पर वह हर दल के लिये डमी कैंडीडेट के सहारे चुनावी गुणागणित का समीकरण खराब करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे और अपना दल से उनका गठबंधन तो कांग्रेस के लिये ऐसा अपाच्य भोजन होगा, जिसे खाना भी नहीं है, छोड़ना भी नहीं है और स्वाद लेने पर पचना भी नहीं है। यानी या तो शिवपाल को सीधे नकार कर अपने सहयोगी दलों से भी साथ छुड़ाना होगा या तो शिवपाल को साथ लेना होगा। वैसे भी प्रियंका गांधी के राजनीति में उतरने के बाद कांग्रेस को मजबूत करने का जो सिलसिला चला था, उसकी एक कड़ी का हिस्सा कृष्णा गुट के अपना दल को भी बनाया गया है। लोकसभा चुनाव में अपना दल कांग्रेस का हाथ थामकर आगे बढ़ेगा।
भाजपा को होगा नुकसान
गठबंधन की एवज में अपना दल को गोंडा और बस्ती लोकसभा सीट चुनाव लड़ने के लिये दी गयी है। निश्चित तौर पर अगर कृष्णा गुट गठबंधन धर्म निभाता है तो कांग्रेस के वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी होगी और इसका नुकसान भाजपा को होगा। यह नुकसान प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों रूप से होगा। क्योंकि अपना दल दो फाड़ में बंटी हुई है, कुछ समर्थक अनुप्रिया के चलते भाजपा के लिये वोट करेंगे और कुछ कृष्णा के चलते कांग्रेस के लिये। दोनों ही स्थिति में नुकसान भाजपा का है और फायदा कांग्रेस का। वहीं, कांग्रेस का सपोर्ट पाकर जिन दो सीटों पर अपना दल चुनाव लडेगी, वहां वह दूसरे दलों के लिये अब बडी चुनौती बनेगी। दो महीने पहले तक कांग्रेस को लड़ाई से बाहर मानने के लिये बहुत सारे समीकरण सामने थे, लेकिन जिस तरह से छोटे दलों को साध कर कांग्रेस अपनी रणनीति को अमलीजामा पहना रही है, उससे कांग्रेस को सिरे से नकार पाना आसान नहीं होगा।
शिवपाल की पार्टी को तवज्जों नहीं दे रही कांग्रेस
कांग्रेस ने कृष्णा गुट के अपना दल से तो गठबंधन कर लिया है, लेकिन अपनी ओर से खुला आफर देने वाले शिवपाल यादव की पार्टी को कांग्रेस ने कोई तवज्जो अभी तक नहीं दी है। दो महीने पहले ही कांग्रेस से गठबंधन करने की पेशकश कर चुके शिवपाल ने बीते दिनों ही अपना दल के साथ गठबंधन किया था और कृष्णा पटेल को बतौर गठबंधन प्रत्याशी भी मैदान में उतारा है। ऐसे में अपना दल के सामने भी असमंजस की स्थिति होगी, क्योंकि शिवपाल की पार्टी पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ेगी, केवल मुलायम सिंह यादव के खिलाफ ही उनका प्रत्याशी मैदान में नहीं आयेगा। ऐसे में अपना दल कृष्णा गुट किसे समर्थन देगा, यह बड़ा सवाल है।
क्या हैं दो संभावना
संभावना इस वक्त दो तरह की हैं, पहली की शिवपाल की अपेक्षा अपना दल बड़े दल यानी कांग्रेस को तवज्जो दे और दूसरी संभावना है कि अपना दल, शिवपाल के साथ कांग्रेस का गठबंधन कराने के लिये प्रयास कर मामले को सुलझाये। हालांकि, शिवपाल यादव की ओर से बड़ी संख्या में सीटों की मांग ने ही पूरा मामला बिगाड़ दिया है। ऐसे में कम सीटों पर शिवपाल अगर नहीं मानते तो मुश्किल है कि कांग्रेस से शिवपाल का गठबंधन हो।
बढ़ेगा वोट प्रतिशत
कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ाने में छोटे दल बड़ी भूमिका अदा करेंगे। भले ही उम्मीद के मुताबिक गठबंधन धर्म का पालन दोनों दलों के कार्यकर्ता न करें, लेकिन कुछा म़ात्रा में ही सही वोट प्रतिशत की संख्या बढ़ेगी। पटेल बिरादरी के वोटों को पूरी तरह से प्रभावित करने वाली अपना दल पूर्वांचल में कांग्रेस के लिये काफी मददगार होगी। जमीन तलाश रही कांग्रेस की रैली में अपना दल के कार्यकर्ता भी भीड़ बढ़ायेंगे और अपनी ताकत का एहसास कराने से नहीं चूकेंगे। चूंकि कांग्रेस ने अभी गोंडा व बस्ती लोकसभा सीट अपना दल को दी है और अपना दल फूलपुर लोकसभा सीट भी कांग्रेस से मांग रही है। ऐसे में आगामी चुनावी रैली में अपना दल अपनी ताकत का एहसास भीड़ से कराकर कांग्रेस को अपने लिये एक और सीट देने के लिये मना सकती है।
प्रतापगढ़ मेंं उलझ जायेगा मामला
यूपी की प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर अपना दल व शिवपाल यादव की पार्टी के गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर कृष्णा पटेल उम्मीदवार हैं। यहां से कांग्रेस ने राजकुमारी रत्ना सिंह को टिकट दिया है। ऐसे में गठबंधन पर पहला सवाल तो यहीं पर उठ खड़ा होता है कि आखिर गठबंधन धर्म कैसे निभाया जायेगा। यहां से या तो कांग्रेस को अपना पैर वापस खींचना होगा या कृष्णा पटेल को किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ना पड़ेगा। लेकिन काफी समय से प्रतापगढ़ सीट से दावेदारी कर रही कृष्णा और रत्ना सिंह दोनों का बैक होना बेहद ही मुश्किल है। हालांकि, संभावना यह बन सकती है कि कांग्रेस अपना दल को उनकी मांग के अनुरूप फूलपुर लोकसभा की सीट दे दे और बदले में प्रतापगढ़ से कांग्रेस की राजकुमारी रत्ना सिंह चुनाव लड़ें। लेकिन यहां समस्या यह होगी कि शिवपाल के साथ हुआ कृष्णा का गठबंधन टूट जायेगा। ऐसे में इस गठबंधन का माइने तभी सही साबित होंगे और इसे मजबूती तभी मिलेगी जब शिवपाल यादव की पार्टी को लेकर स्थिति साफ होगी।
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