यूपी: जबरन रिटायर किए गए सिपाहियों ने फैसले को दी चुनौती, हाईकोर्ट ने योगी सरकार से मांगा जवाब
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा कर्मचारियों को दी जा रही अनिवार्य सेवानिवृत्ति का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया है। दरअसल अनिवार्य सेवानिवृत्ति के तहत नौकरी से बाहर हुए कांस्टेबलों ने योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाये हैं। कांस्टेबलों ने हाईकोर्ट को बताया है कि सरकार के इस आदेश का फायदा गलत तरीके से अधिकारी उठा रहे हैं और व्यक्तिगत नाराजगी व व्यक्तिगत कारणों से पुलिस कांस्टेबलों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा रही है। इसमें नियम-कानून का पालन भी नहीं किया जा रहा है। ऐसी तमाम याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र ने पुलिस विभाग और प्रदेश सरकार से 30 जुलाई तक जवाब मांगा है।
हर
जिले
में
नाराजगी
यूपी
की
योगी
सरकार
काम
न
करने
वाले
कर्मचारियों
की
छुट्टी
करने
के
लिये
अनिवार्य
सेवानिवृत्ति
का
कड़ा
नियम
लेकर
आई
है
और
अब
तक
बड़ी
संख्या
में
अधिकारी
कर्मचारियों
को
उनके
रिकार्ड
के
आधार
पर
अनिवार्य
सेवानिवृत्ति
दी
चुकी
है।
पुलिस
डिपार्टमेंट
में
भी
यह
क्रम
शुरू
हो
गया
है
और
खराब
रिकार्ड
वाले,
काम
न
करने
वाले
व
प्रतिकूल
प्रविष्ठी
की
भरमार
वालों
पर
कार्रवाई
की
जा
रही
है।
जिसके
क्रम
में
यूपी
के
कई
जिलों
में
कांस्टेबलों
को
अनिवार्य
सेवानिवृत्ति
दी
गयी
है।
जिससे
नाराज
दर्जनों
कांस्टेबल
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
पहुंच
गये
हैं
और
योगी
सरकार
की
कार्रवाई
को
चैलेंज
करते
हुये
अनिवार्य
सेवानिवृत्ति
रद्द
करने
की
मांग
की
गयी
है।
हाईकोर्ट
ने
मांगा
जवाब
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
दर्जनों
कांस्टेबल
की
याचिका
पर
न्यायमूर्ति
अश्विनी
कुमार
मिश्र
सुनवाई
कर
रहे
हैं।
याचिकाओं
में
बताया
गया
है
कि
अनिवार्य
सेवानिवृत्ति
के
लिये
बकायदा
नियम
बना
है
और
उन
नियमों
के
तहत
पहले
संबंधित
कर्मचारी
की
सेवा
संबंधी
डाटा
स्क्रीनिंग
कमेटी
जुटायेगी
और
सर्विस
रिकार्ड
अगर
खराब
हो
तो
प्रथम
दृष्टया
वह
अनिवार्य
सेवानिवृत्ति
के
दायरे
में
आयेगा।
उसके
बाद
भी
कर्मचारी
को
कब,
किस
मामले
में
प्रतिकूल
प्रविष्टि
मिली
और
कर्मचारी
को
उसका
पक्ष
रखने
का
मौका
भी
दिया
जायेगा।
कोर्ट
को
बताया
गया
कि
सुप्रीम
कोर्ट
ने
भी
इस
मामले
में
इसी
गाइडलाइन
को
फॉलों
करने
के
लिए
आदेशित
किया
है।
लेकिन
पुलिस
डिपार्टमेंट
में
बिना
किसी
जांच
के
मनमाने
तरीके
से
सिपाहियों
को
अनिवार्य
सेवानिवृत्ति
दी
जा
रही
है।
यह
कानून
गलत
है
और
उसके
अधिकारों
का
हनन
है।
मामले
में
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
ने
राज्य
सरकार
से
इस
बावत
जवाब
मांगा
है
और
उनका
भी
पक्ष
जानना
चाहा
है।
अगर
राज्य
सरकार
याचिका
दाखिल
करने
वाले
सिपाहियों
के
आरोप
के
बावत
नियमों
के
पालन
की
शर्तों
को
पूरा
करने
का
ब्यौरा
नहीं
दे
सकी
तो
इस
मामले
में
सिपाहियों
को
राहत
मिलने
के
साथ
अधिकारियों
पर
गाज
गिर
सकती
है
साथ
ही
सरकार
की
भी
फजीहत
होगी।
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