प्रयागराज में निकली 1 लाख 51 हजार इनाम वाली 'मुगदर' बारात, मुगलकाल में हुई थी शुरुआत
Prayagraj news, प्रयागराज। होलाष्टक शुरू होते ही देश में जगह-जगह होली की प्राचीन परंपरा से जुड़े परंपरागत कार्यक्रम भी शुरू हो गये हैं। इन्हीं कार्यक्रमों में से एक है प्रयागराज की मुगदर बारात, जो प्रयागराज के दारागंज इलाके में निकली तो हमेशा की तरह हजारों लोग इस बारात में शाामिल होकर परंपरा को जीवंत करने सड़क पर निकल पड़े। इस बारात की विशेषता 20 किलो मुगदर है, जो दूल्हा होता है और इसे 151 बार भांजने वाले पहलवान को 1 लाख 51 हजार का इनाम दिया जाता है।
प्राचीन प्रयागराज में शुरू हुई परंपरा
वैसे भारतीय संस्कृति में व्रत त्यौहारों का विशेष महत्व होता है और उनके प्रारंभ कहानी भी अद्भुत होती है। होली पर ऐसी ही एक परंपरा की शुरुआत प्रचानी प्रयागराज में हुई थी। उस वक्त प्रयागराज का नाम इलाहाबाद नहीं हुआ था, लेकिन मुगल शासन ने प्रयागराज को कब्जे में ले लिया था। यह शासन काल हिंदुओं को बांटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा था, हिंदुओं पर अत्याचार हो रहे थे और मुगल सल्तनत के चाटुकार बनने के चक्कर में हिंदू आपस में ही लड़ते रहते, जिसका फायदा मुगल उठाते और हिंदुओ्र को तोड़कर अपनी ताकत व साम्राज्य को मजबूत कर रहे थे। उस दरम्यिान हिंदुओं की बिखरती एकता को संगठित करने के लिये प्रयागराज के अखाड़ा संतों ने होली पर नयी परंपरा का शुभरंभ किया गया, जिसे मुगदर बारात का नाम दिया गया था। यह मुगदर बारात होलाष्टक लग्न के साथ शुरू की गयी और इसमें प्रयागराज के सभी हिंदुओं को एकत्रित कर पूरे शहर में टहलाया जाता।
कैसे निकलती थी बारात
मुगल काल में शुरू हुई मुगदर बारात सदियों पुरानी परंपरा है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है। इस बारात के जरिये लोग सामाजिक बुराइयों का नाश करने का संकल्प लेते हैं और समाज में प्रेम व भाईचारा बढ़ाने के लिऐ खुद हाथ आगे बढ़ाते हैं। प्रयागराज सेवा समिति के धर्मराज पांडेय बताते हैं कि मुकदर बारात सैकड़ों साल पहले मुगल काल में शुरू हुई और अंग्रेजी हुकूमत के बाद अब आजाद हिंदुस्तान में भी चल रही है। पुराने समय से अब के समय तक इसमें कयी परिर्वतन हुये हैं, जैसे मुगदर भांजने की इनामी राशि बढ़ाई गयी, आयोजन भव्य व लाइटिंग आदि से इसे जोड़ा गया। बैंडबाजा, ध्वज-पताका के साथ बरात निकालने के बीच भी इसके मूलरूप व स्वरूप को आज भी वैसा ही रखा गया है और पूरी तरह से परंपरा का निर्वाहन होता है। बारात निकलने से पहले एक व्यक्ति मुगदर लेकर घर-घर जाकर लोगों को निमंत्रण देता है कि वह बारात में चले और फिर हजारों लोगों की टोली कीर्तन करती हुई मुगदर बारात में चलती है।
घर घर बुलावा
प्रयागराज में मुगदर बरात निकलने के पांच दिन पहले घर-घर जाकर लोगों को बुलाया भेजा जाता है। आयोजन से जुड़े लोग हल्दी व निमंत्रण पत्र लेकर लोगों के घर पहुंचते हैं और उन्हें बरात में शामिल होने का आमंत्रण देते हैं। वहीं मुगदर बारात का सबसे बड़ा आकर्षण 20 किलो का मुगदर है, जिसकी होलाष्टक के साथ हर दिन कृष्णा राव के आवास पर प्रतिदिन सुबह-शाम मंत्रोच्चार के बीच इसका पूजन होता है। हालांकि, इस मुगदर के साथ कई छोटे मुगदर भी होते हैं जो स्थनीय अखाड़ों व मंदिरों से लाये जाते हैं।
नारियल-नीबू की दी जाती है बलि
दारागंज इलाके में निकलने वाली मुगदर बारात के आयोजन की जिम्मेदारी अब धकाधक संस्थान व प्रयागराज सेवा समिति करती है। बारात की शुरूआत होती है नारियल, नींबू की बलि देकर। मुख्य मुगदर व अखाडों से लाये गये छोटे मुगदरों को रथ में विराजमान किया जाता है। इसके बाद बैंड-बाजा, गदा, फरसा आदि को लेकर भव्य बरात निकालती है। दारागंज से निकलकर बारात निराला चौराहा पहुंचती हैं, यहां पहलवानों की टोली जमा होती है और मुगदर पर जोर आजमाइश का क्रम शुरू होता है। 1 लाख 51 हजार इनाम के लिय कयी जिले व देश के कोने कोने से आये पहलवान मुगदर भांजते हैं। हालांकि इस बार भी कोई पहलवान मानक के अनुसार मुगदर को 151 बार नहीं भांज सका, जिसके कारण किसी को भी इनाम नहीं दिया गया।
फूंका गया पुतला
बारात के साथ सामाजिक बुराईयों को नाश करने का संकल्प लिया जाता है। जिसके क्रम में बारात में अजहर मसूद, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को आतंकवाद का प्रतीक मानते हुए उनके पोस्टरों को कुचला और जलाया गया। इस दौरान कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया। कवियों ने पुलवामा में शहीद हुए जवानों व न्यूजीलैंड की मस्जिद में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी रचनाएं पढ़ीं।
बारात पर लगाया गया था प्रतिबंध
मुगलकाल में जब इस मुगदर बारात का स्वरूप बढा तो स्थानीय मुगल सेनापति ने इसे बगावत की ओर इशारा करने वाला कार्यक्रम बताकर इस पर रोक लगाने की कोशिश की। हालांकि प्रयागराज के अखाडों के संत व पंडो ने मुगल सल्तनत की रोक का जबरजस्त विरोध किया, जिसके कारण बारात पर पूर्णत: प्रतिबंध नहीं लग सका। हालांकि समय बढने के साथ प्रतिबंध के लिेय मुगल सल्तनत की सेना टुकड़ी होली से पहले ही बक्खी बांध के इलाके में डेरा डाल देती और हर आने जाने वालों से सख्ती से पूछताछ कर बारात में शामिल न होने की हिदायत देती। लेकिन होली के दिन जब अखाडों के संत, पंडा, केवट की हुंकार भरती हुई भीड आती तो मुगल सैनिक पीछे हट जाते और बारात स्थानीय लोगों के साथ आगे बढती थी।
अंग्रेज भी नहीं रोक पाये
यही क्रम अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भी हुआ। स्वामी शिवमंगल दास बताते हैं कि ब्रितानिया सरकार को हिंदुओं का यह कार्यक्रम तनिक भी रास नहीं आता था और प्रयागराज शहर के तमाम धार्मिक कार्यक्रमों पर उन्होंने पहले ही रोक लगा दी थी। ऐसे में इस कार्यक्रम पर भी उनकी कू दृष्टि पड गयी। नतीजा बारात का आयोजन करने वालों को गिरफ्तार किया जाने लगा और सख्ती के साथ बारात पर रोक लगा दी गयी। लेकिन तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भोला नाथ चकहा, सीताराम 'गुंठे', नटेस शास्त्री के नेतृत्व में मुगदर की बरात पारंपरिक तरीके से निकली। फिर तो यह क्रम जारी रहा, अंग्रेज जब आयोजकों को गिरफ्तार करते तो दूसरे प्रयागवासी आयोजक बनकर इस परंपरा को जीवंत रखने लगे। जिसका क्रम आजादी के बाद स्व. राजाराम शास्त्री, स्वामी शिवमंगल दास, आचार्य लड़ाई पहलवान, बचई पहलवान, राम अवतार पांडेय 'खडिय़ा पंडित', सुरेंद्र श्रीवास्तव 'लाला' ने जारी रखा। आज भी यह बारात हजारों लोगों को एक साथ आने व संगठित करने का क्रम जारी रखे हुये है।
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