फूलपुर 1962: जब लोहिया ने 27 बूथों पर नेहरू पर हासिल की एकतरफा बढ़त, फिर क्या हुआ?
प्रयागराज। साल 1962 में जब आम चुनाव की घोषणा हुई तो एक बार फिर से प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने मैदान में उतरे। 1952 और 1957 में लगातार दो जीत दर्ज करने के बाद जीत की हैट्रिक लगाने का मौका नेहरू के पास था। उस समय पूरे देश में नेहरू को हराने की हैसियत वाला नेता दूर दूर तक नजर नहीं आता था। सही मायने में तब नेहरू के रुतबे के आगे सब बौने नजर आते थे, लेकिन वह चुनाव अचानक से पूरे देश में उस वक्त चर्चा में आ गया जब समाजवाद के जनक डॉ. राममनोहर लोहिया ने नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। लोहिया का भी नाम उस समय पूरे देश में एक ब्रांड बन रहा था और माना जा रहा था कि नेहरू के एकछत्र राज को टक्कर देने वाला राजनीतिज्ञ आ चुका है।
चुनाव में छा गए लोहिया
डॉ. लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की ओर से नामांकन किया और चुनाव मैदान में पूरे दमखम से कूद पड़े। लोहिया इक्के पर लाउडस्पीकर बांधकर प्रचार के लिए निकलते तो समाजवादियों की एक टुकड़ी भी गांव की गलियों में साथ चल पड़ती। लोहिया के चुनाव में आने से यह तय हो गया कि इस बार नेहरू के लिए राह आसान नहीं होगी। देश के प्रधानमंत्री को सीधी टक्कर दे रहे लोहिया के समर्थन में समाजवादियों का पूरा कुनबा यानी बड़े व चर्चित नेता इलाहाबाद पहुंचने लगे। मधु दंडवते, राजनारायण, जार्ज फर्नांडीज, रामानंद तिवारी व कर्पूरी ठाकुर जैसे देश के सर्वश्रेष्ठ वक्ता व राजनीतिज्ञ फूलपुर में नेहरू की हार व लोहिया की जीत की गुणा-गणित सेट करने लगे। लोहिया के समर्थन में जनसभा और नुक्कड़ सभाएं गांव गांव होने लगी। देखते ही देखते फूलपुर लोकसभा में लोहिया का नाम गूंजने लग। धीरे-धीरे माहौल भी बना और माहौल को भुनाने में लोहिया ने कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ी।
फिर भी हार गए लोहिया
फूलपुर लोकसभा में मतदान का दिन आया और खूब वोट पड़े। वोटों की जब गिनती शुरू हुई तो 27 बूथों पर लोहिया ने एकतरफा बढ़त बना ली और उम्मीद जगी की फूलपुर के इतिहास में समाजवाद का परचम लहरायेगा, लेकिन यह सिर्फ अंदाजा ही साबित हुआ। 27 बूथों के अलावा नेहरू ने हर बार की तरह एकतरफा जीत दर्ज की और आखिरकार फिर से फूलपुर के सांसद बनकर जीत की हैट्रिक लगाई। नेहरू तीसरी बार और आखिरी बार फूलपुर से जीतकर प्रधानमंत्री बने। यह पहली बार था जब एक कद्दावर नेता को फूलपुर की जनता ने नकार दिया था और कांग्रेस का परचम लहराया था।
क्या कहते थे लोहिया
देश में समाजवाद के क्रांति सूचक लोहिया के प्रचार प्रसार में साथ रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पारस नाथ द्विवेदी बताते हैं कि लोहिया को यह चुनाव लड़ने के लिए सभी ने मना किया था। कोई भी नहीं चाहता था कि नेहरू के खिलाफ लोहिया लड़ें, क्योंकि सबको पता था कि फूलपुर से नेहरू को हरा पाना मुश्किल है। लोहिया के नामांकन से पहले उन्हें कई दिग्गज नेताओं ने भी समझाया कि दूसरी सीट से चुनाव लड़ना चाहिए यहां हारना तय है। तब डॉ. राममनोहर लोहिया ने कहा था कि वह फूलपुर से चुनाव जीतने या हारने के लिए नहीं लड़ रहे हैं। वह यह चुनाव नेहरू रूपी कांग्रेस की चट्टान में दरार डालने के लिए लड़ रहे हैं। लोहिया कहते थे कि वह जानते हैं कि उनकी हार तय है, लेकिन मेरे लड़ने से समाजवाद मजबूत होगा और कांग्रेस कमजोर होगी।
किसे कितने मिले वोट
1962 के चुनाव में फूलपुर संसदीय क्षेत्र में कुल 409292 मतदाते थे जिसमे से कुल 49.31 % प्रतिशत वोटिंग हुई थी। कुल 201823 लोगों ने वोट किया था, जिसमे 192994 मत वैध थे। इस चुनाव में भी एकतरफा वोटिंग नेहरू के लिए हुई थी। इस चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जवाहर लाल नेहरू को 118931 (61.62%) वोट मिले थे, जबकि राम मनोहर लोहिया को 54360 (28.17% ) वोट मिले थे। इसके अलावा राम नारायण को 9116 (4.72% 4), निर्दलीय इंदू देवी को 6693 (3.47% 5) और निर्दलीय हरिशंकर राय को 3894 (2.02%) वोट मिले थे।
ये भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव 1984: जब जया बच्चन ने अमिताभ के लिए मुंह दिखाई में मांगा था वोट