फूलपुर और इलाहाबाद दोनों सीटों पर भाजपा ने महिलाओं को ही क्यों दिए टिकट?
Prayagraj news, प्रयागराज। फूलपुर लोकसभा सीट और इलाहाबाद संसदीय सीट पर हमेशा से पुरुष प्रत्याशियों का दबदबा रहा है। इसकी वजह से यहां से आधी आबादी को नेतृत्व करने का ज्यादा मौका नहीं मिला है। हालांकि, इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण महिला प्रत्याशी को मैदान में न उतारना ही था। गिने-चुने मौके ही आए जब किसी दल ने महिला प्रत्याशी को टिकट दिया। हालांकि, इस बार भाजपा ने बेहद ही दूर की गोट खेली है और फूलपुर व इलाहाबाद दोनों संसदीय सीट पर आधी आबादी को टार्गेट कर अपना प्रत्याशी उतारा है।
अभी बढ़त पर प्रत्याशी
फूलपुर से केशरी देवी पटेल और इलाहाबाद से रीता जोशी इस बार आधी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। दोनों ही अभी तक पुरुष प्रत्याशियों पर एकतरफा बढ़त भी बनाए हुए हैं। हालांकि, जीत के आंकड़े यहां काफी कम रहे हैं। कम प्रत्याशी होने के बावजूद भी यहां से महिलाओं ने खाता खोला है, जिसमें फूलपुर में सिर्फ दो बार महिला प्रत्याशियों ने जीत हासिल की तो वहीं इलाहाबाद संसदीय सीट से सिर्फ एक महिला प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। ऐसे में भाजपा ने जिस समीकरण के सहारे चुनाव मैदान में दो महिला प्रत्याशियों को उतारा है, उसका संदेश दूर तक जाना तय है।
इन महिलाओं ने जीता चुनाव
फूलपुर लोकसभा सीट पर पहली बार महिला प्रत्याशी के तौर पर पंडित नेहरू की बहन विजयालक्ष्मी पंडित उतरी थीं। वह नेहरू के देहांत के बाद उपचुनाव लड़ीं और 1964 का उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचीं। हालांकि, इसके बाद 1967 का आम चुनाव हुआ, जिसमें फिर से विजयालक्ष्मी पंडित जीतकर लोकसभा पहुंची। हालांकि, इस जीत के बाद लंबा इंतजार करना पड़ा और 1977 में महिला प्रत्याशी के तौर पर भारतीय लोकदल की प्रत्याशी कमला बहुगुणा ने जीत हासिल की थी। इसके बाद से इस सीट पर पुरुष ही जीतते आए हैं।
इलाहाबाद में एक बार महिला जीती
वहीं, इलाहाबाद संसदीय सीट पर पहली 1991 में सरोज देवी ने जनता दल के टिकट पर जीत हासिल की थी और उस वक्त उन्होंने बीजेपी के प्रत्याशी श्यामा चरण को चुनाव मैदान में हराया था। यहां दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा समय में श्यामा चरण ही इलाहाबाद से सांसद हैं, जिनका टिकट कटने के बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये हैं और बांदा से प्रत्याशी बनाये गये हैं। हालांकि, इलाहाबाद संसदीय सीट पर 1991 के बाद अभी तक कोई भी महिला प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सकी है, जिसका सबसे बड़ा कारण महिलाओं को प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं देना अहम रहा है। फिलहाल, रीता जोशी इस बार भाजपा की प्रत्याशी हैं, पूर्व में यहां से चुनाव लड़ चुकी हैं और इस बार उनके पास इतिहास बनाने का मौका है।