फूलपुर सीट पर भाजपा ने खोला पत्ता, अखिलेश के सामने अब ये मजबूरी
प्रयागराज। फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल करने के बाद सपा के सामने इस सीट को बचाये रखना बड़ी चुनौती है। लेकिन, यह चुनौती उपचुनाव की अपेक्षा कहीं अधिक बड़ी है। क्योंकि इस सीट पर न सिर्फ बीजेपी ने पूरा जोर लगा दिया है, बल्कि स्थानीय राजनीति को पूरी तरह प्रभावित करने वाली केशरी देवी पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है। अपना दल के साथ पटेल वोटों का धुव्रीकरण करने में पहले ही भाजपा ने सफलता हासिल कर ली थी और अब पटेल उम्मीदवार उतारने के बाद पटले वोटों का भाजपा की ओर खिंचे चले आना लगभग तय माना जा रहा है। ऐसे में सपा मुखिया अखिलेश के पास इस बार जीत के लिए रणनीति में बदलाव लाने की संभावना है। मौजूदा समीकरण को देखते हुए अखिलेश इस सीट से किसी मुस्लिम या यादव प्रत्याशी को मैदान में उतार सकते है।
सपा-बसपा गठबंधन की बढ़ी चिंता
भाजपा ने फूलपुर से केशरी देवी को प्रत्याशी बनाकर सपा और बसपा गठबंधन की चिंता बढ़ा दी है। इसे देखते हुए सपा में हर समीकरण पर चर्चा शुरू हो गई है। आपको बता दें कि भाजपा और कांग्रेस ने इस सीट पर पटेल बिरादरी पर दांव खेला है। ऐसे में सपा पटेल के अलावा किसी यादव या मुस्लिम प्रत्याशी पर भी विचार कर रही है। बता दें कि मुस्लिम या यादव प्रत्याशी के साथ चुनाव मैदान में जाने से गठबंधन का पटेल वोट पूरी तरह से भाजपा की और चला जायेगा, ये सपा के लिये नुकसान दायक होगा। लेकिन सपा के पास विकल्प यह है कि वह अपने मूल यादव वोटरों का बिखराव पूरी तरह से रोकने के लिए यादव बिरादरी का कैंडीटेट उतारे। या फिर मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर मुस्लिम मतदाताओं का एक तरफा वोट हासिल करें।
मूल वोटरों को साधना जरूरी
फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में सपा हमेशा से मजबूत रही है और उसकी मजबूती का सबसे बड़ा कारण उसके मूल वोटरों की संख्या। अकेले सपा के मूल वोटरों का आंकडा 3 लाख का है। इसमें 1.5 लाख यादव, तीन लाख एससी, 1.5 लाख मुस्लिम वोटर हैं। हालांकि इनमे से 60 प्रतिशत ही मतदान होता है। पिछली बार भी पौने दो लाख के आसपास इन दोनों बिरादरी के वोट पड़े थे। जिनमें औसतन सवा लाख वोट सपा को मिले थे। जबकि मुस्लिम वोटों में अतीक अहमद ने सेंध लगा दी थी। ऐसे में सपा को सबसे पहले अपने मूल वोटरों को बिखरने से बचाना होगा। अगर यादव व मुस्लिम मतदाताओं ने आनुमान के अनुरूप सपा को वोट किया तो दो लाख के लगभग वोट सपा को मिल जायेंगे। यह वोट तब होंगे जब बिखराव की स्थिति नहीं होगी। जबकि बसपा के मूल वोटरों की संख्या डेढ लाख के करीब है। सबसे अधिक वोट इनके ही पडते हैं। अगर मायावती के साथ साझा रैली फूलपुर में हुई और मायावती के नाम पर सपा को बसपा ने वोट किया तो सपा के वोटों की संख्या तीन लाख को पार कर जायेगी।
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कुर्मी वोटो की राजनीति
3 लाख कुर्मी वोटों की संख्या फूलपुर में है। भाजपा के मूल वोटरों में कुछ संख्या पटेल वोटरों की तो है ही, अपना दल अनुप्रिया के कारण बहुयातात संख्य में पटेल मतदाताओं का रूझान भाजपा की तरफ हुआ है। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा ने कुर्मी वोटों को खुश करने के लिए हर तरह से जाल फेंका है, जिसमें उनका फंसना तय है। वहीं, जो कुर्मी वोट बिखरेंगे उनका कट कर कृष्णा गुट मे जाना तय हैं। चूंकि कृष्णा के दामाद पंकज निरंजन खुद चुनाव मैदान में हैं तो वह यहां से खाली हाथ तो जायेंगे नहीं। उन्हें भी वोट मिलेंगे और कांग्रेस के वोटों के साथ भाजपा और सपा दोनों को नुकसान पहुंचायेंगे। इस समीकरण को सपा ने भी भांप लिया है। अगर वह भी पटेल बिरादरी के वोटों को अपनी ओर मोडने के लिए पटेल प्रत्याशी उतारती है तो कुछ वोट तो उसे इस बिरादरी के मिलेंगे। लेकिन यादव व मुस्लिम वोटों की नाराजगी भी उसे झेलनी पडेगी।
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