प्रयागराज मंडल में 5 कैबिनेट मिनिस्टर समेत इन दिग्गजों की प्रतिष्ठा लगी दांव पर
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश की चार बेहद ही चर्चित लोकसभा सीट इलाहाबाद, फूलपुर, कौशांबी व प्रतापगढ़ पर कौन दल जीतेगा, कौन हारेगा इस पर बहस का दौर अपने चरम पर है। प्रत्याशियों के जातिगत आंकडे और वर्तमान परिस्थिातियों पर सबकी नजर है। लेकिन पर्दें के पीछे से या कहें कि पर्दा संभालने वाले कई दिग्गज चेहरों की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है। योगी सरकार के चार 5 कैबिनेट मिनिस्टर की साख प्रयागराज मंडल में दांव पर लगी हुई है, जबकि 25 सालों से एकक्षत्र राज करने वाले राजा भैया और प्रतापगढ़ की बादशाहत संभालने वाले प्रमोद तिवारी की भी प्रतिष्ठा दांव लगी हुई है। वहीं, इलाहाबाद से मुरली मनोहर जोशी का बोरिया बिस्तर गोल कराने वाले दिग्गज सपा नेता व राज्यसभा सांसद रेवती रमण सिंह के लिये भी यह चुनाव प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है।
भाजपा
के
दिग्गज
पर
तलवार
प्रयागराज
मंडल
में
अगर
सबसे
ज्यादा
हार
जीत
का
नुकसान
किसी
को
होने
वाला
है
तो
वह
है
भाजपा।
क्योंकि
लोकसभा
चुनाव
में
एक
दो
नहीं
बल्कि
योगी
सरकार
के
पांच
कैबिनेट
मिनिस्टर
की
प्रतिष्ठा
यहां
दांव
पर
लगी
है।
उत्तर
प्रदेश
के
डिप्टी
सीएम
केशव
प्रसाद
मौर्य
के
गृह
जनपद
कौशांबी
में
सबसे
बड़े
चेहरे
के
तौर
पर
केशव
मौर्य
का
नाम
ही
आता
है।
बैकवर्ड
बिरादरी
के
वोटों
को
साधने
के
लिये
केशव
ने
यहां
पूरी
ताकत
झोंक
दी
है
और
भाजपा
प्रत्याशी
विनोद
सोनकर
से
ज्यादा
यह
सीट
केशव
के
लिये
महत्वपूर्ण
नजर
आ
ही
है।
अगर
कौशांबी
से
भी
महत्वपूर्ण
सीट
की
बात
करें
तो
फूलपुर
लोकसभा
केशव
के
फूलपुर
वाली
छवि
के
अस्तित्व
को
बचाये
रखने
के
लिये
बहुत
जरूरी
है।
फूलपुर
में
जीत
का
नया
रिकार्ड
बनाने
वाले
केशव
मौर्य,
उप
चुनाव
में
कौशलेंद्र
पटेल
को
जीत
नहीं
दिला
सके
थे।
लेकिन
इस
बार
उन्होंने
अपने
खेमे
से
ही
केशरी
देवी
पटेल
को
उतारा
है
और
केशरी
की
जीत
को
केशव
की
जीत
बताई
जायेगी,
इसमें
कोई
शक
नहीं
है।
भाजपा
के
इन
दिग्गजों
की
साख
दांव
पर
इलाहाबाद
लोकसभा
सीट
की
बात
करें
तो
यहां
तीन
कैबिनेट
मिनिस्टर
के
घर
हैं,
एक
कैबिनेट
मिनिस्टर
प्रत्याशी
हैं
और
नगर
निगम
भी
भाजपा
के
कब्जे
में
है।
जबकि
इलाहाबाद
लोकसभा
क्षेत्र
की
पांच
विधानसभा
मेजा,
करछना,
इलाहाबाद
दक्षिण,
बारा
और
कोरांव
हैं।
इनमें
चार
पर
भाजपा
का
कब्जा
है
और
महज
एक
करछना
सीट
सपा
के
कब्जे
में
हैं।
यानी
पूरी
अनुकूल
स्थिति
के
बीच
भाजपा
यहां
चुनाव
लड़
रही
है।
दूसरी
ओर
फूलपुर
में
भी
पांच
विधानसभा
है,
जिनमें
फूलपुर,
फाफामउ,
शहर
उत्तरी,
शहर
पश्चिम
और
सोरांव,
इन
सभी
पर
भाजपा
का
कब्जा
है।
हालांकि
इसमें
एक
सीट
सोरांव
भाजपा
की
सहयोगी
पार्टी
अपना
दल
के
खाते
में
हैं।
यानी
इन
दोनों
क्षेत्रों
में
भाजपा
की
साख
सबसे
ज्यादा
है
और
यहां
के
दिग्गजों
की
प्रतिष्ठा
अब
चुनाव
के
रिजल्ट
पर
टिकी
है।
इन
दिग्गजों
की
प्रतिष्ठा
भी
दांव
पर
मुरली
मनोहर
जोशी
जिस
वक्त
अपने
राजनैतिक
कैरियर
के
उफान
पर
रहे
और
लोकप्रियता
के
मामले
में
चरम
पर
थे,
तब
इलाहाबाद
से
उन्हें
चुनाव
हराने
वाले
सपा
के
राष्ट्रीय
महासचिव
व
राज्यसभा
सदस्य
रेवती
रमण
सिंह
इस
बार
लोकसभा
का
चुनाव
नहीं
लड
रहे
हैं।
लेकिन
दो
बार
यहां
से
सांसद
और
8
बार
विधायक
बनने
वाले
रेवती
की
पूरी
प्रतिष्ठा
इस
चुनाव
में
फंसी
नजर
आ
रही
है।
वहीं
इलाहाबाद
में
रहने
वाले
और
प्रतापगढ़
की
राजनीति
में
रामपुर
आदि
इलाके
में
एकछत्र
राज
करने
वाले
कांग्रेसी
दिग्गज
व
राज्यसभा
सांसद
प्रमोद
तिवारी,
कांग्रेस
के
दिग्गज
नेता
अनिल
शास्त्री
और
अनुग्रह
नारायण
सिंह
की
भी
प्रतिष्ठा
दांव
पर
है।
वहीं
प्रतापगढ
में
योगी
कैबिनेट
के
मंत्री
मोती
सिंह
की
भी
प्रतिष्ठा
इस
बार
दांव
पर
होगी
और
राजा
भैया
व
गठबंधन
के
बीच
से
संगम
लाल
के
लिये
कमल
खिलाना
उनके
लिये
बडी
चुनौती
होगी।
जबकि
फूलपुर
में
अपना
दल
कृष्णा
गुट
को
अपनी
पार्टी
के
ही
अतित्व
को
बचाने
का
जिम्मा
दामाद
पंकज
पर
है,
लेकिन
असली
चेरहा
यहां
कृष्णा
पटेल
हैं,
जो
लगातार
पार्टी
का
अस्तित्व
बचाने
के
लिये
संघर्षरत
हैं।
इसके
अलावा
कभी
बसपा
के
सबसे
कद्दावर
नेताओं
में
शुमार
व
मायावती
कैबिनेट
के
मंत्री
इंद्रजीत
सरोज
भी
इस
बार
सपा
के
कौशांबी
से
प्रत्याशी
हैं
और
उनका
कद
पहली
बार
सपा
में
इस
चुनाव
से
आंका
जायेगा।
लेकिन
इन
सबके
बीच
यूपी
की
राजनीति
में
अलग
पहचान
रखने
वाले
बाहुबली
विधायक
और
नई
पार्टी
बनाकर
चुनाव
में
उतरे
रघुराज
प्रताप
सिंह
उर्फ
राजा
भैया
की
पूरी
प्रतिष्ठा
दावं
पर
है।
मायावती
से
सीधे
36
का
आंकडा
रखने
वाले
व
अखिलेश
का
साथ
छोडने
के
बाद
कुंडा
के
बाहर
पहली
बार
राजा
भैया
अपना
दम
दिखा
रहे
हैं
और
प्रतापगढ
व
कौशांबी
उनकी
पार्टी
चुनाव
लड
रही
है।
यह
चुनाव
राजा
भैया
के
वर्चस्व
और
लोकप्रियता
की
भी
असल
परीक्षा
साबित
होने
जा
रहा
है।
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