फूलपुर: जब नेहरू प्रचार में कहते थे, 'मैं देश की भलाई के लिए वोट मांगने वाला भिखारी'
lok sabha elections 2019 news, प्रयागराज/इलाहाबाद। देश के राजनीतिक इतिहास में उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा (phulpur lok sabha Seat) का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। जब देश में पहले आम चुनाव (1951 India General ''1st Lok Sabha'' Elections) हुए तो फूलपुर भी लोकतंत्र की नींव पड़ने का गवाह बना। इस लोकसभा सीट के चुनाव से जुड़ी कई बातें आज भी इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज हैं। आज भी पुराने लोगों के जेहन में वह भूली बिसरी यादें कैद हैं, जिनकी निगहबानी में फूलपुर और हिंदुस्तान आगे बढा।
फूलपुर से जीतकर नेहरु बने थे पहले प्रधानमंत्री
हिंदुस्तान में पहली बार सन् 1951 के अक्टूबर और दिसंबर तथा 1952 के फरवरी में आम चुनाव हुए। यह श्रृंखला अब एक और उपचुनाव के साथ आगे बढ़ेगी। फूलपुर का अतीत कैसा था? और 1951- 52 में हुए पहले आम चुनाव में किस तरह से यहां जवाहरलाल नेहरु (jawaharlal nehru) जीतकर देश के पहले प्रधानमंत्री बने? उस पर हमने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पारस नाथ द्विवेदी, एडवोकेट सूर्य नारायण मिश्र, जागेश्वरी प्रसाद दुबे से बातचीत की। उन्होंने पुराने दिनों की तस्वीरों को फिर से याद करते हुए हमारे साथ अपनी यादें साझा की। उन यादों की श्रृंखला की पहली कड़ी के साथ हम आपके सामने इतिहास के कुछ धूमिल पन्नों के साथ हाजिर हैं...।
विश्व की सबसे बड़ी घटना थी भारत का पहला आम चुनाव
पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के बेहद नजदीकी रहे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पारस नाथ द्विवेदी बताते हैं कि देश को आजाद हुए उस वक्त 3 साल हो चुके थे। तब 26 जनवरी 1950 को देश गणतंत्र बना। जवाहरलाल देश के प्रधानमंत्री बन गए थे, लेकिन अभी तक उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से चुना नहीं गया था। हिंदुस्तान गणतंत्र बन गया था, लेकिन अभी लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी थी। अब वक्त आ चुका था कि देश गणतंत्र से लोकतंत्र बने। लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ चुके थे और हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की निगाह भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर टिकी थी।
1951 के अक्टूबर महीने में लोकसभा चुनाव शुरू हुए
देश
में
लोकतांत्रिक
प्रक्रिया
शुरू
करने
के
लिए
तैयारियां
शुरू
हो
चुकी
थीं।
स्वतंत्र
भारत
का
यह
पहला
लोकतांत्रिक
चुनाव
बनने
जा
रहा
था,
इसमें
देश
के
सभी
वयस्क
लोगों
को
मताधिकार
दे
दिया
गया।
यह
आसान
नहीं
था
कि
देश
में
पहली
बार
ही
चुनाव
हो
और
वह
सकुशल
संपन्न
हो
जाए।
दुनिया
के
लिए
यह
किसी
आश्चर्य
से
कम
नहीं
था
कि
सैकड़ों
वर्ष
गुलामी
झेलने
के
बाद
आजाद
हुआ
हिंदुस्तान
गणतंत्र
बनने
के
साथ
अब
लोकतांत्रिक
देश
बनने
जा
रहा
था।
1951
के
अक्टूबर
महीने
में
आम
लोकसभा
चुनाव
शुरू
हुआ
और
1992
फरवरी
तक
यह
चुनाव
चला।
चुनाव
की
जिम्मेदारी
देश
के
पहले
मुख्य
चुनाव
आयुक्त
सुकुमार
सेन
को
दी
गई
थी।
सुकुमार
सेन
तत्कालीन
आईसीएस
अधिकारी
थे
और
उनकी
गणना
देश
के
सर्वश्रेष्ठ
विद्वान
गणितज्ञ
में
से
की
जाती
थी।
उस
दरमियान
देश
की
आबादी
36
करोड़
से
ऊपर
थी
और
17
करोड़
के
लगभग
लोग
व्यस्क
थे,
इन्हीं
लोगों
को
चुनाव
में
मतदान
करना
था
और
लोकसभा
की
489
सीटों
के
साथ
राज्य
विधानसभाओं
के
लिए
भी
चुनाव
शुरू
हुआ।
चुनाव चिन्ह वाला मिला था बैलेट बॉक्स
जागेश्वरी
प्रसाद
दुबे
1952
के
उपचुनाव
को
याद
करते
हुए
बताते
हैं
कि
सोरांव
में
पोलिंग
बूथ
बनाया
गया
और
वहां
पोलिंग
बूथ
पर
हर
पार्टी
के
चुनाव
चिन्ह
वाला
बैलेट
बॉक्स
रख
दिया
गया।
इससे
उन
लोगों
को
मतदान
करने
में
सहूलियत
मिली
जो
या
तो
पढ़े-लिखे
नहीं
थे
या
तो
अक्षरों
का
थोड़ा
बहुत
ज्ञान
था।
यह
पहला
आम
चुनाव
था
और
लोगों
में
काफी
उत्सुकता
देखी
गई।
ऐसा
नहीं
था
कि
देश
में
इससे
पहले
चुनावनहीं
हुआ
था
देश
में
आजादी
से
पहले
ही
चुनाव
की
प्रक्रिया
शुरु
हो
गई
थी,
लेकिन
तब
अंग्रेजी
हुकूमत
में
देश
के
11
प्रांतों
तक
ही
यह
प्रक्रिया
सीमित
थी
और
रियासतों
की
जनता
तक
चुनाव
में
हिस्सा
नहीं
ले
सकती
थी।
यह
पहली
बार
था
जब
पूरा
हिंदुस्तान
देश
के
आम
चुनाव
में
हिस्सा
ले
रहा
था।
जागेश्वरी
प्रसाद
दुबे
बताते
हैं
कि
लोकतंत्र
की
यही
तो
खासियत
है
कि
जनता
खुद
के
ऊपर
शासन
करने
के
लिए
अपने
बीच
से
ही
किसी
को
चुनती
है
और
यही
कुछ
तब
हो
रहा
था।
शांति
व्यवस्था
के
साथ
चुनाव
आगे
बढ़ा
और
1952
के
फरवरी
माह
में
चुनाव
खत्म
हुआ।
जनता के बीच सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र थे नेहरू
देश के पहले आम चुनाव में जनता के बीच सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र पंडित जवाहरलाल नेहरु थे। देश में उस समय जवाहर लाल की ख्याति अपने चरम पर थी। विदेश में भी उनके नाम का डंका बज रहा था और जब फूलपुर लोकसभा से चुनाव लड़ने के लिए जवाहरलाल आए तो जनता ने उन्हें सर आंखों पर बैठा लिया।
नेहरू बिना किसी सुरक्षा के चुनाव प्रचार के लिए आ पहुंचे थे
वरिष्ठ अधिवक्ता सूर्य नारायण मिश्र बताते हैं कि जब पहली बार फूलपुर लोकसभा के सोरांव इलाके में पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने कार से पहुंचे तो हजारों लोगों की भीड़ रास्ते में ही खड़ी हो गई। जवाहरलाल बिना किसी सुरक्षा के चुनाव प्रचार के लिए यहां पहुंचे थे। वह सोरांव थाने के पास अपनी कार से उतर गए और पैदल ही पुराने रामलीला मैदान की ओर हाथ जोड़े जनता से अभिवादन लेते हुए आगे बढ़ने लगे। उस जमाने में रामलीला मैदान की ओर अंग्रेजों द्वारा क्रांतिकारियों को फांसी दी गई थी। उस स्थान पर क्रांति के रूप में अलग ही सजीवटता होती थी। क्योंकि नेहरू भी आजादी के लड़ाई के सबसे अहम किरदारों में से एक थे। इसलिए उनका मान-सम्मान कहीं अधिक प्रभावशाली था।
जीत के बाद ऐसा था नजारा
धूल भरे रास्ते से नेहरू के पीछे जनता की भीड़ इस तरह चल रही थी मानो धूल भरी आंधी उड़ रही हो। आगे-आगे नेहरू हाथ जोड़े बढ़ रहे थे और हर तरफ बड़े ही कौतूहल भरी नजरों से लोग उनकी एक झलक के लिए बेताब नजर आ रहे थे। यह पहली बार था जब जवाहरलाल नेहरु को इस तरह लोगों ने अपने बीच पाया था। उस वक्त जवाहरलाल नेहरू सांप्रदायिक ताकतों पर प्रहार करने के लिए भाषणबाजी करते थे और खुद को देश की भलाई के लिए वोट मांगने वाला भिखारी कहते थे।