यूपी में शराब के विज्ञापनों पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, कहीं नहीं आयेगा नजर
Prayagraj News, प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में अब शराब का विज्ञापन आपको कहीं पर भी नजर नहीं आयेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिनेमा घरों, पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, टीवी चैनलों और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर शराब के विज्ञापन पर रोक लगा दी गई है। हाईकोर्ट ने इस बावत उत्तर प्रदेश की योगी सरकार व उत्पाद शुल्क विभाग को स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वह यह सुनिश्चत करें कि प्रदेश में शराब के प्रचार के लिए कोई विज्ञापन न छपे। साथ ही उत्पाद शुल्क विभाग और पुलिस किसी भी छद्म विज्ञापन छपने पर कार्रवाई करे।
क्या
है
मामला
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
'स्ट्रगल
अगेंस्ट
पेन'
नाम
की
सोसायटी
की
ओर
से
जनहित
याचिका
दाखिल
की
गयी
है।
जिसमें
कहा
गया
है
कि
रोक
के
बावजूद
छद्म
विज्ञापन
छप
रहे
हैं।
यानी
विज्ञापन
किसी
और
चीज
का
होता
है
लेकिन,
होलोग्राम/मोनोग्राम
के
रूप
में
शराब
का
भी
विज्ञापन
चलाया
जाता
है।
चूंकि
प्रत्यक्ष
रूप
से
यह
विज्ञापन
किसी
और
चीज
का
दिखाकर
कंपनी
सीधी
कार्रवाई
से
खुद
को
बचा
लेती
है
और
अप्रत्यक्ष
रूप
से
अपने
उत्पाद
का
प्रचार
भी
कर
लेती
है।
इसे
लेकर
ही
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
की
गयी।
जिस
पर
हाईकोर्ट
ने
बड़ा
फैसला
सुनाते
हुए
प्रदेश
में
किसी
भी
तरह
के
शराब
विज्ञापन
पर
रोक
लगाने
का
आदेश
दिया
है।
हाईकोर्ट
ने
राज्य
सरकार,
आबकारी
आयुक्त
और
पुलिस
अधिकारियों
को
निर्देशित
करते
हुए
कहा
कि
निर्देश
का
उल्लंघन
करने
वालों
पर
कड़ी
कार्रवाई
करें।
डबल
बेंच
में
सुनवाई
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
दाखिल
याचिका
पर
न्यायमूर्ति
सुधीर
अग्रवाल
और
न्यायमूर्ति
अजित
कुमार
की
पीठ
ने
सुनवाई
शुरू
की।
याचिका
के
साथ
पत्रिकाओं
और
समाचार
पत्रों
में
प्रकाशित
शराब
के
विभिन्न
विज्ञापनों
को
साक्ष्य
के
तौर
पर
अदालत
में
पेश
किया
गया।
जिमसें
छोटे
अक्षरो
में
विज्ञापन
म्यूजिक
सीडी
व
चश्मे
का
दिखाया
गया
और
शराब
के
ब्रांडों
का
लोगों
साफ
तौर
पर
दर्शा
कर
प्रचार
किया
गया।
कुछ
विज्ञापन
तो
सीडी,
म्यूजिक
कैसेट,
गोल्फ
बॉल
के
थे,
लेकिन
उसके
नाम
पर
शराब
का
ब्रांड
ही
प्रचारित
हो
रहा
था।
अदालत
को
बातया
गया
कि
इस
तरह
के
विज्ञापन
के
लिये
कंपनी
खूब
पैसे
खर्च
करती
है
और
छद्म
तरीके
अपनाकर
लोगों
को
शराब
के
सेवन
और
बिक्री
को
बढ़ावा
दे
रही
है।
याचिका
में
नयी
पीढी
के
शराब
के
जद
में
आने
के
बढते
आंकडे
को
भी
दर्शा
कर
चिंता
जताई
गयी।
जिस
पर
हाईकोर्ट
ने
विज्ञापन
पर
रोक
का
ओदश
दिया
है।
क्या
आई
दलील
हाईकोर्ट
में
सुनवाई
के
दौरान
कोर्ट
को
बताया
गया
कि
शराब
के
विज्ञापन
पर
रोक
पहले
से
है।
लेकिन,
शराब
कंपनी
विज्ञापन
को
इस
तरह
से
प्रचारित
करती
हैं
कि
विज्ञापन
में
शराब
शब्द
व
उसके
प्रकार
का
कोई
उल्लेख
नहीं
होता।
जिसके
कारण
वह
सीधी
कार्रवाई
की
जद
में
नहीं
आती।
हालांकि
वह
अपना
होलोग्राम/मोनोग्राम
दिखाकर
अपना
पूरा
प्रचार
करती
है।
हाईकोर्ट
ने
क्या
कहा
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
ने
सुनवाई
के
दौरान
सरकार
को
कड़े
शब्दों
में
नसीहत
देते
हुए
कहा
कि
सरकार
ने
तो
परोक्ष
रूप
से
शराब
के
विज्ञापन
की
छूट
दी
है।
शराब
कंपनियां
दूसरे
उत्पादों
के
साथ
अपने
ब्रांड
का
विज्ञापन
परोक्ष
रूप
से
कर
रही
हैं,
जो
बिल्कुल
प्रत्यक्ष
है।
अब
जब
संविधान
के
अनुच्छेद
47
और
आबकारी
कानून
की
धारा
तीन
में
दवा
बनाने
के
सिवाय
नशीले
पदार्थों
के
प्रचार
को
प्रतिबंधित
किया
गया
है।
यह
उस
तरह
का
विज्ञापन
है
जैसे
सेरोगेसी
होती
है।
ऐसे
में
इस
तरह
का
विज्ञापन
सही
नहीं
है,
यह
शराब
को
बढावा
दे
रहा
है।
वहीं,
हाईकोर्ट
ने
इस
याचिका
को
दाखिल
करने
वाले
मनोज
मिश्रा
को
25
हजार
रूपये
हर्जाना
देने
का
भी
आदेश
दिया
है।
साथ
ही
प्रदेश
भर
के
सिनेमा
घरों,
पत्र-पत्रिकाओं,
समाचार
पत्रों,
टीवी
चैनलों
और
इलेक्ट्रानिक
मीडिया
पर
शराब
के
किसी
भी
तरह
के
प्रचार
विज्ञापन
पर
रोक
लगा
दी
है।