हाथरस केस: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज की पीड़ित परिवार की याचिका, मिलने जुलने की मांगी थी इजाजत
प्रयागराज। चर्चित हाथरस कांड ने जहां पूरे देश को हिलाकर रख दिया है, वहीं दूसरी ओर पीड़ित परिवार की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उसे खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में चल रही है। कोर्ट के आदेश पर ही पीड़ित परिवार को सुरक्षा सहित कई निर्देश दे रखे हैं। ऐसे में इस मामले पर हस्ताक्षेप नहीं किया जा सकता। हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि यदि याची चाहे तो सुप्रीमकोर्ट के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं।
पीड़ित परिवार की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सामाजिक कार्यकर्ता सुरेंद्र कुमार द्वारा दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया था कि पीड़ित परिवार को अपनी मर्जी से कहीं आने जाने या किसी से मिलने की अनुमति नहीं है। याचिका में कहा गया था कि पुलिस-प्रशासन की बंदिशों के चलते पीड़ित परिवार घर में कैद सा होकर रह गया है। बंदिशों के चलते तमाम लोग मिलने नहीं आ पा रहे हैं। परिवार किसी से खुलकर अपनी बात नहीं कह पा रहा है। याचिका में पीड़ित परिवार ने लोगों से मिलने-जुलने की पूरी छूट दिए जाने और अपनी बात खुलकर रखे जाने की मांग की थी।
याचिका की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की पीठ ने याची द्वारा की गई शिकायत पर ये आदेश दिया है। साथ ही, याची द्वारा की गई शिकायत पर लंच के बाद राज्य सरकार के वकील को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिस पर अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने हलफनामा दाखिल कर प्रदेश सरकार का पक्ष रखा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, याचियों का कहना था कि वाट्सएप संदेश के जरिये पीड़िता के परिवार ने महमूद प्राचा व अन्य को वकील बनाया है। अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने याचिका पर आपत्ति की और कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका विचाराधीन है।
कोर्ट के आदेश पर पीड़िता के परिवार व गवाहों को सुरक्षा दी गई है। परिवार ने किसी को भी वकालतनामे देकर याचिका दाखिल करने के लिए अधिकृत नहीं किया है। उन्होंने कहा कि किसे कौन नियुक्त करना चाहता है, यह साफ नहीं है। मनीष गोयल ने आगे कोर्ट को बताया कि परिवार को पर्सनल गार्ड दिए गए हैं। घर पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, ताकि कोई असामाजिक तत्व घर में न घुस सके। याचियों ने प्रशासन से कभी नहीं कहा वे बाहर जाना चाहते हैं। किसी को रोका नहीं गया है। वे स्वतंत्र हैं। अनपढ़ गरीब परिवार वालों को पता ही नहीं है कि संस्थाए व राजनीतिक दल उनका इस्तेमाल कर रहे हैं।