एयरफोर्स की नौकरी छोड़कर की वकालत फिर तीन बार सांसद चुने गए दिग्गज कांग्रेसी नेता का निधन
Prayagraj news, प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में कांग्रेस का दिग्गज चेहरा रहे पूर्व सांसद राम निहोर राकेश अब दुनिया में नहीं रहे। हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे और बुधवार को प्रयागराज में उनका अंतिम संस्कार किया गया। राम निहोर उन नेताओं में गिने जाते थे जो अपनी सादगी और जमीनी पकड़ के कारण जनता द्वारा खुद ही चुन लिए जाते थे। उनके कद का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनके निधन पर सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के दिग्गज नेताओं ने फोन कर परिजनों से बात की और सांत्वना दी। राम निहोर का राजनैतिक सफर बेहद ही खास रहा। क्योंकि वह बनना तो कुछ और चाहते थे लेकिन, बन कुछ और गए। वह राजनीति के रास्ते संसद तक पहुंच गए। एयरफोर्स में नौकरी से लेकर वकालत और फिर चुनाव के बीच वह बेहद ही लोकप्रिय रहे और तीन बार सांसद चुनकर देश की सर्वोच्च पंचायत में पहुंचे।
कौन
थे
रामनिहोर
राकेश
राम
निहोर
का
जन्म
प्रयागराज
के
जंघई
इलाके
में
4
मई
1943
को
हुआ।
अपनी
शुरूआती
शिक्षा
इन्होंने
प्रतापपुर
स्थित
जंघई
इंटर
कॉलेज
से
पूरी
की।
इलाहाबाद
विश्वविद्वालय
से
उन्होंने
कानून
की
पढ़ाई
की।
इलाहाबाद
यूनिवर्सिटी
से
एलएलएम
की
पढ़ाई
पूरी
करने
के
बाद
वह
एयरफोर्स
में
चले
गये
और
मनौरी
में
उनको
पहली
तैनाती
मिली।
लेकिन,
नौकरी
में
मन
नहीं
लगा
तो
नौकरी
छोड़कर
वकालत
शुरू
कर
दी।
हालांकि
वकालत
में
वह
अच्छा
नाम
कमाने
लगे
और
उनकी
वकालत
की
गाड़ी
तेज
रफ्तार
से
बढ़
गई,
हालांकि
कहीं
न
कहीं
यहां
भी
उन्हें
संतोष
नहीं
मिला
तो
वह
हेमवती
नंदर
बहुगुणा
के
बुलावे
पर
राजनीति
में
उतर
आये
और
धीरे-धीरे
राजनैतिक
सीढ़ी
चढ़ने
लगे।
वकालत
के
बाद
राजनीति
दरअसल
वकालत
की
वजह
से
उनकी
पहचान
तत्कालीन
बड़े
राजनीतिज्ञों
से
होने
लगी
और
उन्होंने
तत्कालीन
दिग्गज
नेता
पूर्व
मुख्यमंत्री
हेमवती
नंदन
बहुगुणा
का
साथ
बखूबी
मिला
था।
राम
निहोर
बहुगुणा
के
चेले
बन
गए
और
राजनीति
का
ककहरा
सीखकर
जल्द
ही
सक्रिय
राजनीति
में
उतर
आये।
1977
में
जब
इंदिरा
गांधी
ने
आम
चुनाव
कराए
जाने
को
लेकर
ऐलान
किया
तो
पूरा
देश
चौंक
गया
था।
उसी
वक्त
राम
निहोर
की
जिंदगी
ने
भी
करवट
बदल
ली
थी।
बहुगुणाा
की
वजह
से
राम
निहोर
को
तत्कालीन
चायल
और
मौजूदा
कौशांबी
सीट
से
भारतीय
लोकदल
ने
टिकट
दे
दिया।
पहली
बार
बने
सांसद
उस
चुनाव
में
कांग्रेस
देश
के
अधिकांश
हिस्सों
में
हार
हुई
थी
और
कांग्रेस
मात्र
153
सीट
पर
सिमट
गई
थी,
जो
सीटें
क्रांगेस
हारी
थी
उनमें
चायल
की
भी
सीट
शामिल
थी।
अपनी
जमीनी
छवि
के
कारण
ही
राम
निहोर
में
सीधी
फाइट
की
और
जीत
कर
पहली
बार
सांसद
बने।
हालांकि
लोकदल
के
साथ
राकेश
ज्यादा
दिन
नहीं
रह
सके
और
जल्द
ही
कांग्रेस
में
शामिल
हो
गये
और
जब
सरकार
जाने
के
बाद
1980
में
अल्पकालिक
चुनाव
हुए
तो
इस
बार
कांग्रेस
ने
राम
निहोर
को
चायल
से
अपना
प्रत्याशी
घोषित
किया
और
इस
बार
भी
वह
सांसद
बने।
हालांकि
इसके
बाद
राम
निहोर
को
टिकट
नहीं
मिली
और
जब
1989
में
टिकट
मिला
तो
वह
फिर
से
सांसद
चुने
गये।