हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, कहा- मृत कर्मचारी को दोषी ठहरा कर वारिसों से नहीं कर सकते वसूली
प्रयागराज। राज्य कर्मचारी अनुशासनिक नियमावली को लेकर हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी की मृत्यु होने के बाद उसके खिलाफ जांच कर, उसे दोषी ठहरा कर वसूली नहीं की जा सकती है। बता दें कि अनुशासनिक नियमावली कर्मचारी को गलती का दंड देने के लिए है। कोर्ट के आदेश के बाद इसे कर्मचारी के वारिसों पर लागू नहीं किया जा सकता। मृत्यु के बाद विभागीय कार्यवाही अपने आप समाप्त हो जाएगी। कर्मचारी के वैधानिक उत्तराधिकारियों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा।
क्या
है
मामला
वाराणसी
की
रहने
वाली
राजकिशोरी
ने
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
थी
और
उन्होंने
कोर्ट
को
बताया
कि
उनके
पति
वैद्यनाथ
पांडेय
वाराणसी
में
खाद्य
आपूर्ति
विभाग
में
मार्केटिंग
इंस्पेक्टर
थे।
रिटायर
होने
के
दो
दिन
पहले
उनको
निलंबित
कर
दिया
गया
था
और
उनके
विरूद्ध
विभागीय
जांच
शुरू
की
गयी
थी।
उन
पर
चार
लाख
60
हजार
243
रुपये
का
नुकसान
पहुंचाने
का
आरोप
लगाते
हुए
चार्जशीट
दी
गई।
इसका
जवाब
वैद्यनाथ
पांडेय
दाखिल
करते
उससे
पहले
ही
उनकी
मृत्यु
हो
चुकी
थी।
इस
पर
विभाग
ने
वैद्यनाथ
पांडेय
की
पेंशन
और
ग्रेच्युटी
से
चार
लाख
60
हजार
243
रुपये
काट
लिये।
इस
आदेश
को
उनकी
पत्नी
राजकिशोरी
ने
चुनौती
दी,
लेकिन
कुछ
समय
बाद
उनकी
भी
मृत्यु
हो
गई।
इस
पर
राजकिशोरी
के
बेटे
पक्षकार
बन
गये
और
याचिका
पर
सुनवाई
शुरू
हुई।
हाईकोर्ट
ने
क्या
कहा
इस
याचिका
पर
न्यायमूर्ति
सुनीत
कुमार
ने
सुनवाई
शुरू
की
तो
कोर्ट
ने
अनुशासनिक
नियमावली
की
कार्रवाई
को
सही
माना
और
कहा
कि
मृत
कर्मचारी
को
आखिर
कदाचार
के
लिए
कैसे
दंडित
किया
जा
सकता
है।
हाईकोर्ट
ने
कहा
कि
मृत
कर्मचारी
को
दोषी
ठहराने
के
बाद
उसके
सेवानिवृत्ति
परिलाभों
से
वसूली
के
लिए
कटौती
गलत
है।
फंडामेंटल
रुल्स
54
(बी)में
यह
साफ
लिखा
है
कि
अगर
कर्मचारी
की
मौत
हो
जाये
तो
उस
पर
कार्रवाई
स्वत:
समाप्त
हो
जायेगी।
हाईकोर्ट
ने
यह
भी
स्पष्ट
किया
कि
गलती
का
दंड
कर्मचारी
के
जिंदा
रहते
हुये
उसे
दिया
जा
सकता
था,
उसके
वारिसों
पर
नियमावली
लागू
नहीं
होती।
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