राजभर की पार्टी को एक भी सीट देने के मूड में नहीं भाजपा, आखिर क्या है वजह
प्रयागराज। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष व मंत्री ओमप्रकाश राजभर पिछले दो सालों से शायद ही कोई ऐसा मौका रहा हो जब उन्होंने अपने गठबंधन दल भाजपा से नाता तोडने की धमकियां ना दी हो। कई मौके पर तो तल्खी मंचों पर खुलकर सामने भी आ चुकी है। लोकसभा चुनाव से पहले तो हालात नदी के दो किनारों जैसे हो गये थे। उसके बावजूद भी भाजपा फिलहाल ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा को लोकसभा की एक भी सीट देने के मूड में नहीं है।
भाजपा से अलग होना आसान नहीं
ओम प्रकाश राजभर दावा चाहे जो करे रहे हों, लेकिन उनके लिए भाजपा से अलग होना आसान नहीं होंगा। योगी कैबिनेट में मंत्री होने के साथ राजभर के बेटे समेत कई नजदीकियों को पिछले दिनों ही भाजपा सरकार ने अहम पद सौंपे हैं। बोर्ड में जगह मिलने और अगले तीन साल तक सरकार में बने रहने का बेहतर मौका छोड़कर अलग थलग राजनीति करने व सबकुछ गंवाने से बेहतर विकल्प राजभर के पास भाजपा का साथ निभाने में ही है। हालांकि वह अभी भी हर तरह से हाथ पांव मार रहे हैं कि उन्हें एक भी सीट अगर दी जाती है तो वह उससे ही संतोष कर लेंगे।
क्या है गणित
उत्तर प्रदेश में रजभर जाति के लोगों की बड़ी संख्या हैं और ओमप्रकाश राजभर उनकी नुमाइंदगी करने में कोई कोर कसर नहीं छोडते हैं। यही वजह है कि वह अपनी जति के वोटों के नाम पर लगातार भाजपा पर दबाव बनाये हुये हैं। वैसे भी यूपी में चुनाव की पहली बिसात जातिगत ही होती है, यानी यहां मतदाता जगरूक तो हैं लेकिन वोट जातिगत आधार पर ही डाले जाते हैं। वैसे भी यूपी में राजभर बिरादरी का 3 प्रतिशत मत मौजूद है। जो कहीं न कहीं किसी भी दल के लिए फायदेमंद साबित होगा। ऐसे में भाजपा सीधे तौर पर राजभर को नहीं जाने देना चाहती, लेकिन राजभर की मांग को पूरा करने के लिए खुद को बाध्य बनते हुए भी नहीं देखना चाह रही है। चूंकि भाजपा की गणित वोट परसेंटेज पर होगी और अधिक सीटों पर लड़ने से ही उसका वोटिंग परसेंटेज बढ़ेगा। ऐसे में ओमप्रकाश की पार्टी को कुछ सीटे देकर वह सीधे तौर पर परसेंटेज नहीं घटाने की रणनीति पर भी काम कर रही है।
बुधवार की खमोशी सब कहती है
ओमप्रकाश राजभर ने बीते बुधवार को ही भाजपा से रिश्ता तोडने का ऐलान किया था। लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें मनाने के लिए भाजपा शीर्ष नेतृत्व पहल करेगा। लेकिन जैसी की उम्मीद थी, भाजपा की ओर से जेपी नड्डा को पहल करनी थी, पर उन्होंने अपना हाथ ही आगे नहीं बढ़ाया। यानी जिस फोन काल को लेकर दिन भर राजभर उम्मीदों के तार जोडॉकर बैठे थे वह रांग नंबर निकला। ओमप्रकाश की अगली रणनीति क्या होगी? क्या वह दूसरे दल के साथ जाने के लिए आगे बढेंगे और भाजपा पर दबाव ढायेंगे इसकी संभावना अभी बनी हुई है।