अब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में खत्म होगा छात्रसंघ, छात्र परिषद बनाने के लिए हाईकोर्ट पहुंचा विश्वविद्यालय
Prayagraj news, प्रयागराज। देश में चुनिंदा यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ का चुनाव राष्ट्रीय पटल पर अपना प्रभाव डालता है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भी उन्हीं में से एक है, जिसके चुनाव पर पूरे भारत की यूनिवर्सिटी छात्रसंघों की नजर रहती है। लेकिन, आगामी वर्षों में संभावना है कि यह चुनाव अब नहीं नजर आएगा। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन छात्रसंघ को खत्म कर छात्र परिषद बनाने की पहल कर चुकी है और इसके लिए विश्वविद्यालय ने हाईकोर्ट की शरण ली है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की ओर हलफनामा दाखिल कर छात्र परिषद के गठन की रिपोर्ट दी गई है, जिस पर हाईकोर्ट ने भी सकारात्मक संकेत दिए हैं।
छात्रों का हित छोड़कर सबकुछ होता है
चूंकि, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के चुनााव में राजनैतिक पार्टियों के अंदर तक दखल के बाद अब यह चुनाव छात्रों का ना होकर राजनैतिक दलों का हो गया है, यहां अब छात्रों का हित छोड़कर सबकुछ होता है। बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बसपा, कम्युनिष्ट हर किसी के समर्थित प्रत्याशी, छात्र संगठन और पैनल तैयार होते हैं और यहीं से छात्रवाद की बजाए जातिवाद की नर्सरी तैयार होने लग रही है। प्रत्याशी का चुनाव प्रसाद सांसद विधायकों के चुनाव से भी अधिक लाइमलाइट में रहता है और सैकड़ों गाड़ियों का काफिला, धन बल बाहुबल का प्रदर्शन बगैर यहां प्रत्याशी का रुतबा तय ही नहीं होता। चुनाव प्रचार से लेकर, नामांकन और मतदान तक बमबाजी यहां की संस्कृति बन गई है। दूसरी ओर छात्रसंघ की वजह से लगातार वर्ष के हर दिन बवाल, बमबाजी, फायररिंग, मारपीट, हत्या, अराजकता, गुंडई, कोचिंगों में हफ्ता वसूली और चुनाव के लिये चंदा आदि के नाम पर यूनिवर्सिटी समेत पूरे प्रयागराज शहर को अराजकता की भेंट चढ़ा दिया जाता है, जिसके चलते कैंपस का माहौल पठन पाठन के योग्य नहीं रह गया है और देश की टॉप यूनिवर्सिटी रही इलाहाबाद को अब 200 की सूची तक से बाहर होना पड़ा है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की गरिमा को वापस लाने और पूरब के आक्सफोर्ड को फिर से उसका रुतबा लौटाने के लिए अब छात्रसंघ के नाम पर अराजकता फैलााने वाले माहौल को खत्म किया जा रहा है।
सिफारिश पर सकारत्मक हाईकोर्ट
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में माहौल बदलने व सुधारने के लिए हाईकोर्ट की सख्ती के बाद यूनिवर्सिटी प्रशासन भी अपनी ओर से जुट गया है और अब हाईकोर्ट में इविवि के रजिस्ट्रार ने लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में हलफनामा दिया है, जिसमें लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों का जिक्र करते हुए बताया गया है कि जिन विश्वविद्वालयों में पहले से चुनाव हो रहे हैं, अगर वहां पर माहौल अशांत हो तो उन स्थानों पर अनिवार्य रूप से छात्र परिषद का मॉडल लागू किया जाए, चूंकि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पर यह मानक सटीक बैठ रहा है, जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने सकारात्मक संकेत दिए हैं और संभावना पूरी है कि आगामी वर्षो में छात्रसंघ का चुनाव खत्म कर दिया जाएगा और उसकी जगह छात्र परिषद का मॉडल लागू किया जाएगा।
प्रस्ताव होगा पारित
छात्र परिषद का मॉडल लागू करने के लिए अब विश्वविद्वालय ने भी अपनी ओर से प्रक्रिया शुरू कर दी है और विश्वविद्यालय की एकेडमिक कौंसिल और कार्य परिषद की बैठक बुलाई गयी है। इस बैठक में ही छात्रसंघ को खत्म कर छात्र परिषद के माडल को लागू करने के लिये प्रस्ताव लाया जायेगा। जिसे मंजूरी देकर आगे की प्रक्रिया शुरू की जायेगी। जानकारी देते हुये इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पीआरओ डॉ. चित्तरंजन कुमार ने बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर दिया गया है। जिस पर हाईकोर्ट गंभीरता से विचार कर रहा है। अशांत माहौल को शाांत करने व पठन पाठन के लिये बेहतर माहौल के लिये यह आवश्यक है, जो लिंगदोह कमेटी की सिफराशि के अनुसार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने लिंगदोह कमेटी की संस्तुति देश भर में लागू की थी। जिसके तहत छात्रसंघ चुनाव के लिए दो मॉडल हैं। इसमें जेएनयू और हैदराबाद जैसे छोटे विश्वविद्यालय कैंपस के लिए प्रत्यक्ष मतदान, जबकि अशांत माहौल की स्थिति में और बड़े कैंपस के लिए छात्र परिषद के माडल को लागू करने का निर्देश दिया गया था। उसी दिशा में अब पहल शुरू हुई है।
क्या है सिफारिश
जिस लिंगदोह कमेटी की सिफारिश को आधार बनाकर अब छात्रसंघ चुनाव को खत्म किया जा रहा है, उस शिफारिश को सुप्रीम कोर्ट ने खुद लागू किया है। लिंगदोह कमेटी की सिफारिश के क्लॉज 6.1.2 के अंतर्गत यह कहा गया है कि जहां विश्वविद्यालय परिसर का माहौल अशांत हो या शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव की संभावना न हो वहां छात्र परिषद की व्यवस्था की जाए। चूंकि सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनने के बाद से इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में ऐसा कोई चुनाव नहीं हुआ जब उपद्रव ना हुआ हो। अलबत्ता साल के हर दिन यहां अराजकता का माहौल और बवाल का क्रम जारी रहता है। पिछले एक साल से तो लगातार छात्रनेताओं की हत्या जैसी घटनाओं ने जोर पकड़ लिया है।
2005 में बैन हुआ था छात्रसंघ चुनाव
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ के चलते बवाल और खराब माहौल को देखते हुये वर्ष 2005 में चुनाव बैन कर दिया गया था। उस चुनाव के दौरान जीतने वाले प्रत्याशी द्वारा शैक्षिक रिकॉर्डों में हेरफेर करने पर विरोध में जमकर बवाल हुआ था। जिसके बाद तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर राजेंद्र हर्षे ने विश्वविद्यालय में छात्रसंघ व्यवस्था को समाप्त कर दिया था। इसके बाद 7 साल तक छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए थे। लंबे आंदोलन के बाद फिर छात्रसंघ का चुनाव हुआ, लेकिन चुनाव ने माहौल को फिर से अराजकता में ढकेल दिया है। जिसके चलते शैक्षिक माहौल अब खत्म हो चुका है और देश की चुनिंदा बेहतर यूनिवर्सिटी में गिना जाने वाला पूरब का आक्सफोर्ड अब अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है।
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