CRPF भर्ती: हाईकोर्ट का बड़ा आदेश, अब हस्ताक्षर व अंगूठे का निशान मैच न होने पर चयनित अभ्यर्थी नहीं होंगे बाहर
Prayagraj news, प्रयागराज। किसी प्रतियोगी परीक्षा में चयन होने के बाद अगर अभ्यर्थी का हस्ताक्षर व अंगूठे का निशान मैच नहीं होता तो उसे सीधे चयन से बाहर कर दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। पहले अभ्यर्थियों को भी बचाव का मौका दिया जायेगा और अभ्यर्थियों की ओर से अपना पक्ष साबित न कर पाने के बाद ही किसी तरह की कार्रवाई की जा सकेगी। इस बावत इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने सीआरपीएफ में चयनित 35 अभ्यर्थियों के हस्ताक्षर व अगूंठे का निशान मैच न होने पर चयन रद्द करने व तीन साल तक परीक्षा में न बैठने के प्रतिबंध को खत्म कर दिया है। फिलहाल हाईकोर्ट के इस फैसले का असर अब आगामी वैकेंसी के साथ अधर में लटकी वैकेंसी पर भी पड़ेगा।
धांधली
के
मामले
आ
रहे
सामने
हस्ताक्षर
व
अगूंठे
का
निशान
मिसमैच
होने
के
मामले
बड़े
पैमाने
पर
सामने
आ
रहे
हैं।
जिसमें
भर्ती
बोर्डों
द्वारा
तत्काल
सख्त
कार्रवाई
की
जा
रही
है।
दरअसल
दूसरे
के
स्थान
पर
परीक्षा
देकर
धांधली
करने
व
नकल
माफियाओं
द्वारा
भर्तियों
में
सेंध
लगाने
के
लिऐ
सॉल्वर
गिरोह
के
सदस्यों
को
परीक्षाओं
में
बैठाया
जाता
है।
इस
तरीके
में
अभ्यर्थी
के
स्थान
पर
सॉल्वर
परीक्षा
देता
है।
हालांकि
अब
हस्ताक्षर
व
अगूंठे
का
निशान
की
प्रक्रिया
हर
भर्ती
बोर्ड
में
लागू
कर
दी
गयी
है,
जिससे
इस
प्रकार
की
धांधली
को
आखिरी
समय
तक
पकड़ा
जा
रहा
है।
हालांकि
इस
दौरान
कुछ
सही
अभ्यर्थी
भी
इसकी
चपेट
में
आ
रहे
हैं,
जो
धांधली
के
शक
में
कार्रवाई
का
शिकार
हो
रहे
हैं।
ऐसे
लोगों
के
लिये
ही
अब
हाईकोर्ट
ने
नौकरी
पाने
का
रास्ता
खोल
दिया
है।
हाईकोर्ट
के
इस
आदेश
को
आधार
बनाकर
अब
चयन
से
बाहर
होने
वाले
अभ्यर्थी
हस्ताक्षर
व
अगूंठे
का
निशान
को
साबित
करने
के
लिये
अपना
पक्ष
रख
सकेंगे
और
इसके
लिये
विशेषज्ञों
की
रिपोर्ट
व
जांच
भी
करा
सकेंगे।
क्या
है
मामला
कर्मचारी
चयन
आयोग
ने
2013
में
22006
पदों
पर
पैरा
मिलिट्री
फोर्सेस
के
लिये
भर्ती
निकाली
थी।
इस
भर्ती
में
सीआरपीएफ
के
लिए
चयनित
रणविजय
सिंह
व
35
अन्य
का
चयन
उस
वक्त
रद्द
कर
दिया
गया
था,
जब
यह
ज्वाइनिंग
करने
के
लिये
पहुंचे
थे।
आयोग
ने
इन
सभी
चयनित
अभ्यार्थियों
के
अंगूठा
निशान
व
हस्ताक्षर
में
मिलान
न
होने
को
आधार
बताते
हुए
इनकी
नियुक्ति
पर
रोक
लगा
दी।
बाद
में
सभी
को
नोटिस
जारी
की
गयी
और
इन्हे
हस्ताक्षर
व
अंगूठा
निशान
के
लिये
बुलाया
गया।
नमूने
लेने
के
बाद
केंद्रीय
फोरेंसिक
साइंस
लेबोरेटरी
में
जांच
की
गयी
।
लेबोरेटरी
से
डेढ़
साल
बाद
जांच
में
हस्ताक्षर
व
अंगूठे
का
निशान
मैच
नहीं
होने
की
रिपोर्ट
आई
और
इसी
आधार
पर
चयनित
36
अभ्यर्थियों
का
चयन
निरस्त
कर
दिया
गया
था।
साथ
ही
इन
सभी
36
अभ्यर्थियों
पर
तीन
साल
का
प्रतिबंध
लगा
दिया
गया
था।
जिसके
कारण
यह
अब
एसएससी
की
परीक्षा
में
तीन
साल
तक
नहीं
शामिल
हो
सकते
थे।
इसी
के
खिलाफ
अभ्यर्थियों
ने
हाईकोर्ट
में
याचिका
दाखिल
की
थी,
जिस
पर
हाईकोर्ट
ने
एसएससी
का
आदेश
अवैध
करार
देते
हुए
रद
कर
दिया
था।
लेकिन
केंद्र
सरकार
ने
एकल
खंड
पीठ
के
फैसले
के
खिलाफ
विशेष
अपील
दाखिल
कर
दी,
जिस
पर
अब
फैसला
आया
है।
क्या
हुआ
हाईकोर्ट
में
केंद्र
सरकार
की
विशेष
अपील
पर
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
के
मुख्य
न्यायाधीश
गोविंद
माथुर
और
न्यायमूर्ति
एसएस
शमशेरी
की
खंडपीठ
ने
सुनवाई
शुरू
की
तो
पाया
कि
अभ्यर्थियों
को
उनका
पक्ष
रखने
का
मौका
ही
नहीं
दिया
गया
और
एकतरफा
कार्रवाई
चयन
आयोग
द्वारा
की
गयी
है।
जिस
पर
डबल
बेंच
ने
भी
केंद्र
सरकार
की
विशेष
अपील
को
खारिज
करते
हुये
कहा
कि
अभ्यर्थियों
को
उनका
पक्ष
रखने
के
लिय
मौका
दिया
जाना
चाहिये
था,
जो
नहीं
दिया
गया।
ऐसे
में
आयोग
का
आदेश
कानूनन
सही
नहीं
है।
जिस
विशेषज्ञ
रिपोर्ट
के
आधार
पर
कार्रवाई
की
गयी
है,
वह
बतौर
साक्ष्य
तो
है,
लेकिन
दूसरे
साक्ष्यों
से
उसकी
पुष्टि
नहीं
की
गयी
है,
ऐसे
में
उसी
आधार
पर
कार्रवाई
कराना
ठीक
नहीं
है।
इलाहाबाद
हाईकोर्ट
ने
नैसर्गिक
न्याय
के
सिद्धांत
का
उल्लेख
करते
हुये
कहा
कि
जिस
रिपोर्ट
पर
अभ्यर्थियों
के
विरूद्ध
कार्रवाई
की
गयी
उस
रिपोर्ट
को
अभ्यर्थियों
को
भी
देना
चाहिये
था।
ताकि
वह
उस
पर
अपना
जवाब
दे
सकते।
अगर
आयोग
को
कार्रवाई
करनी
थी,
तो
जांच
रिपोर्ट
को
अन्य
अन्य
सुसंगत
साक्ष्यों
से
साबित
भी
किया
जाना
था।
केवल
वैज्ञानिक
जांच
रिपोर्ट
कार्रवाई
का
आधार
नहीं
हो
सकती।
फिलहाल
हाईकोर्ट
के
आदेश
के
बाद
अभ्यर्थियों
के
नौकरी
पाने
के
आसार
फिर
से
नजर
आने
लगे
हैं।
साथ
ही
इस
तरह
की
कार्रवाई
झेल
रहे
अभ्यर्थियों
को
भी
अब
बडी
राहत
मिल
जायेगी
और
इस
केस
के
निर्णय
के
आधार
पर
वह
अपील
कर
सकेंगे।
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