डिलीवरी फीस चुकाने के लिए नहीं थे 35 हजार रुपए, डॉक्टरों ने नवजात बच्चे को मां से छीना और बेच दिया
आगरा। धरती पर डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन वो भगवान किसी मां से उसके नवजात बच्चे को छीनकर बेच सकता है। ऐसा सुनने में थोड़ा सा अजीब लगाता है। लेकिन ऐसा ही एक वाकया उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में सामने आय़ा है। जहां डिलीवरी के बाद एक दंपति ने करीब 35 हजार रुपए की फीस देने में अपनी असमर्थता जताई। आरोप है अस्पताल वालों ने उससे जबरदस्ती बच्चा छीन लिया और एक कागज पर अंगूठा लगवा लिया।
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दरअसल, बबिता (36) ने पिछले हफ्ते एक बच्चे को जन्म दिया था, यह डिलीवरी सर्जरी से हुई थी। दंपती का यह पांचवां बच्चा है और वे उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में शंभू नगर इलाके में किराए के कमरे में अपनी पति शिवचरण के साथ रहती हैं। बता दें कि शिवचरण रिक्शा चालक है। रिक्शा चलाकर वो दिन के 200 से तीन सौ रुपए कमाता है। उनका सबसे बड़ा बेटा 18 साल का है। वह एक जूता कंपनी में मजदूरी करता है। कोरोना लॉकडाउन में उसकी फैक्ट्री बंद हो गई तो वह बेरोजगार हो गया।
हिन्दुस्तान की खबर के मुताबिक, 24 अगस्त एक आशा वर्कर उनके घर आई और बबिता को वह फ्री में डिलीवरी करवा देगी। शिवचरण ने कहा कि उन लोगों का नाम आयुष्मान भारत योजना में नहीं था, लेकिन आशा ने कहा कि फ्री इलाज करवा देगी। जब बबिता अस्पताल पहुंची तो अस्पताल वालों ने कहा कि सर्जरी करनी पड़ेगी। 24 अगस्त की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर उसने एक लड़के को जन्म दिया। अस्पताल वालों ने उन लोगों को करीब 35 हजार रुपए का बिल थमाया।
डीएम
ने
कहा,
कराएंगे
जांच
शिवचरण
ने
कहा,
'मेरी
पत्नी
और
मैं
पढ़
लिख
नहीं
सकते
हैं।
हम
लोगों
का
अस्पताल
वालों
ने
कुछ
कागजों
में
अंगूठा
लगवा
लिया।
हम
लोगों
को
डिस्चार्ज
पेपर
नहीं
दिए
गए।
उन्होंने
बच्चे
को
एक
लाख
रुपए
में
खरीद
लिया।'
वहीं,
जब
ये
मामला
आगरा
जिले
के
डीएम
प्रभूनाथ
सिंह
के
संज्ञान
में
आया।
तो
उन्होंने
कहा,
'यह
मामला
गंभीर
है।
इसकी
जांच
की
जाएगी
और
दोषी
पाए
जाने
वालों
के
खिलाफ
उचित
कार्रवाई
की
जाएगी।'
अस्पताल
प्रशासन
ने
दी
सफाई
वहीं,
अस्पताल
ने
सभी
आरोपों
को
खारिज
किया
है।
उन्होंने
कहा
है
कि
बच्चे
को
दंपती
ने
छोड़
दिया
था।
उसे
गोद
लिया
गया
है,
खरीदा
या
बेचा
नहीं
गया
है।
हम
लोगों
ने
उन्हें
बच्चे
को
छोड़ने
के
लिए
मजबूर
नहीं
किया।
ट्रांस
यमुना
इलाके
के
जेपी
अस्पताल
की
प्रबंधक
सीमा
गुप्ता
ने
कहा,
'मेरे
पास
माता-पिता
के
हस्ताक्षर
वाली
लिखित
समझौते
की
एक
प्रति
है।
इसमें
उन्हें
खुद
बच्चे
को
छोड़ने
की
इच्छा
जाहिर
की
है।'
'लिखित
समझौते
का
कोई
मोल
नहीं'
उधर,
बाल
अधिकार
कार्यकर्ता
नरेश
पारस
ने
कहा
कि
अस्पताल
के
स्पष्टीकरण
से
उनका
अपराध
नहीं
कम
होता।
हर
बच्चे
को
गोद
लेने
की
प्रक्रिया
केंद्रीय
दत्तक
ग्रहण
संसाधन
प्राधिकरण
ने
निर्धारित
की
है।
उसी
प्रक्रिया
के
तहत
ही
बच्चे
को
गोद
दिया
और
लिया
जाना
चाहिए।
अस्पताल
प्रशासन
के
पास
जो
लिखित
समझौता
है,
उसका
कोई
मूल्य
नहीं
है।
उन्होंने
अपराध
किया
है।'