'सपा सरकार ने यूपी को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाया'
लखनऊ। मुजफ्फरनगर और उसके आस पास के इलाकों में पिछले 17 दिनों से सांप्रदायिक हिंसा में अब तक 48 लोगों की मौत हो चुकी है और तनाव जारी है। इससे साफ हो गया है कि राज्य मशीनरी की इन दंगों को रोकने में कोई दिलजस्पी नही थी और उसने स्थिति को इस हद तक भयावह होने दिया। इन हत्याओं के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रदेश सरकार जिम्मेदार है, जिसने पिछले दिनों भाजपा के साथ मिलकर 84 कोसी परिक्रमा के बहाने दंगा फैलाने की कोशिशों को जनता द्वारा नकार दिये जाने के बाद भाजपा के साथ मिलकर बदले की भावना के तहत जनता को दंगों की आग में झोंका है।
इससे समझा जा सकता है कि आरएसएस के हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर अमल करने के लिए यह सरकार किस हद तक बेताब हो गयी है। रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोऐब ने रिहाई मंच के अनिश्चितकालीन धरने को संबोधित करते हुए यूपी सरकार के खिलाफ कुछ इसी तरह का मोर्चा खोला। मोहम्मद शुऐब ने कहा कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव जिस तरह मुजफ्फरनगर की घटनाओं के बाद शासन और प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने की बात कर रहे हैं उससे साबित हो जाता है, कि उनके बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूरी तरह से अक्षम साबित हो गये हैं।
शोएब ने कहा कि स्थिति को अपने नियंत्रण में लेकर उन्होंने साफ कर दिया है कि लोकतंत्र में उनकी कोई आस्था नही है और दंगे जैसे संकट को वे अपना पारिवारिक संकट मान रहे हैं। जबकि शासन और प्रशासन को तलब करने और उसे अपने नियंत्रण में लेने का कोई संवैधानिक अधिकार उन्हें नहीं है। क्योंकि वे सिर्फ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता और एक सांसद हैं। शासन प्रशासन संभालने की उनका कोई संवैधानिक अधिकार नही है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से गांवों तक दंगा फैला है वैसा पहले कभी नहीं हुआ था। इससे समझा जा सकता है कि सपा सरकार की राज्य मशीनरी ने किस तरह से मुजफ्फरनगर को सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला बना दिया है। धरने को संबोधित करते हुए इंडियन नेशनल लीग के मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि मुजफ्फरनगर दंगों ने मुलायम की 20 साल की छिपी हुई सांप्रदायिक राजनीति को अवाम के बीच नंगा कर दिया है। जब भी मुलायम की सरकार रही उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर सूबे को दंगे की आग में झोंक कर भाजपा को मजबूत किया और प्रदेश के मुसलमानों को भाजपा का भय दिखा कर वोट लेते रहे।
यही उन्होंने अपनी पहली हुकूमत 1989 के दरम्यान भी किया था और अपने बेटे की डेढ़ साल की इस हुकूमत में भी यही कर रहे हैं। उन्होने सपा मुखिया से पूछा कि वरुण गांधी पर से मुकदमा हटाकर, अस्थान कांड में तोगडि़या पर मुकदमा न दर्ज करके, फर्रुखाबाद में विश्व हिन्दू परिषद और संघ परिवार के सांप्रदायिक आतंकवादियों पर से मुकदमें वापस लेकर, कानपुर में 1992 में हुए सांप्रदायिक दंगों के खलनायक तत्कालीन एसएसपी एसी शर्मा जिनकी आपराधिक भूमिका की जांच के लिए माथुर कमीशन का गठन किया गया था उस पर कार्रवायी करने के बजाय उसे सूबे के पुलिस का मुखिया बनाने और पिछले चुनाव में राजनाथ के खिलाफ उम्मीदवार न खड़ा करने के बावजूद वे किस मुंह से अपने को सेक्यूलर बताते हैं।
मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि अगर सपा सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ने के प्रति सचमुच प्रतिबद्ध है तो उसे 89 से लेकर अब तक की अपनी सरकारों में हुए सभी दंगों पर श्वेत पत्र लाना चाहिए। धरने को संबोधित करते हुए आजमगढ़ रिहाई मंच के नेता मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई और कानून व्यवस्था के मसले पर घिरी सरकार ने मानसून सत्र के दौरान जनता को गुमराह करने के लिए भाजपा के साथ मिलकर मुजफ्फरनगर को दंगों की आग में झोंका है। उन्होंने कहा कि इन दंगों में जिस तरह पिछड़ी और दलित जातियां मुसलमानों के खिलाफ हमलावर हुई हैं उससे मुलायम की तथाकथित सामाजिक न्याय की राजनीति का असली चेहरा बेनकाब हो गया है।
उन्होंने कहा कि रिहाई मंच 16 सितंबर से शुरू होने वाले डेरा डालो-घेरा डालो आंदोलन में सपा की सांप्रदायिक राजनीति को बेनकाब कर देगा। धरने में इंडियन नेशलन लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान, चैधरी चंद्रपाल, अब्दुल हलीम सिद्दीकी, इनायतुल्ला खान, मोहम्मद समी, डा. अलाउद्दीन, अरूण सिंह, मो0 यामीन, वाहिद हुसैन, डा. फकरे आलम, भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोईद अहमद, हरे राम मिश्र, गुफरान सिद्दीकी, पीसी कुरील, शिवदास, एहसानुल हक मलिक, राजीव यादव सहित अन्य लोग शामिल रहे।