क्यों ना फूटे 'पेट्रोल बम', जब देश के नेता ही चूस लेते है 3000 करोड़ का पेट्रोल
नयी दिल्ली। पेट्रोल-डीजल के दामों में आग लग रही है। बार- बार पेट्रोल-डीजलों की कीमतों में इजाफा किया जा रहा है। सरकार लोगों को बार-बार नसीहत दे रही है कि पेट्रोल की खपत पर लगाम लगाया जाए ताकि उसकी बढ़ती कीमतों को नियंत्रित की जाए। सरकार और नेता कहते हैं कि आम आदमी को पेट्रोल की खपत कम करनी चाहिए ताकि पेट्रोल की कीमतें कम हो सके। कभी रात को पेट्रोल पंप बंद कर उसकी कीमतों को नियंत्रित करने का सुझाव दे रहे है, लेकिन जब आपको उनकी पेट्रोल खपत का पता चलेगा तो सरकार की सारी दलीलें बेमानी लगने लगेगी।
जहां आम जनता मंहगाई से परेशान है तो वहीं भारत में डीजल-पेट्रोल का सबसे ज्यादा उपभोग करने वाले खुद सरकार और सरकारी अधिकारी है। सरकार के मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों की जिंदगी में पेट्रोल पानी की तरह बह रहा है। केंद्र और प्रदेश सरकार के मंत्रियों, अधिकारियों के लिए पेट्रोल की खपत की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।
जहां मंत्रालय अपने बिल वाउचर में फ्यूल के खर्च को 'दफ्तर के खर्च' में जोड़कर पेश करती है तो वहीं इसके द्वारा सबसे ज्यादा पेट्रोलज-डीजल का इस्तेमाल करने की बात सामने आई है। अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपी खबर के मुताबिक 2011-12 में केंद्र सरकार का 'दफ्तर का खर्च' 5,200 करोड़ था। जिसमें से एक बड़ा हिस्सा डीजल-पेट्रोल का था। इन सरकारी अधिकारियों और नेताओं के ऊपर सालाना 3000 करोड़ रुपए सिर्फ पेट्रोल-डीजल पर खर्च किया गया।
3,000 करोड़ रुपये सालाना का खर्च
दिल्ली में मौजूद नेताओं और सरकारी अधिकारियों के आंकड़ों को देखे तो उन्हें प्रति महीने 200 से 250 लीटर ईंधन खर्च का अधिकारी होता है। ऐसे में अगर 200 लीटर प्रति व्यक्ति का ही आंकड़ा लेकर चलें, तो केंद्रीय मंत्री मिलकर हर महीने 46,200 लीटर पेट्रोल फूंक देते हैं। सिर्फ दिल्ली में 74.10 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मंत्रियों और अधिकारियों का कुल पेट्रोल खर्च हर महीने 230 करोड़ रुपये है। चूंकि अधिकारियों की खर्च की सीमा निर्धारित नहीं की गई है सो अगर राउंड फीगर लेकर चले तो ये आंकड़ा 3000 करोड़ तक पहुंच जाता है।
महीने की न्यूनतम खपत 2.56 लाख लीटर
दिल्ली में 70 सचिव, 131 अतिरिक्त सचिव, 525 संयुक्त सचिव औऱ 1200 निदेशक हैं। हलांकि सभी को सरकारी गाजड़ी नहीं मिली है, लेकिन अगर हम सभी सचिवों, अतिरिक्त सचिवों, संयुक्त सचिवों को मिलने वाले ईधन की बात करे तो महीने की खपत 2.56 लाख लीटर तक पहुंच जाती है।
ये आंकड़ा सिर्फ दिल्ली का है, लेकिन अगर ये इस आंकड़े का हर प्रदेश के हिसाब से अंदाजा लगाए तो बात खुद-ब- खुद सामने आ जाती है। ऐसे में सरकार इस खर्च पर लगाम लगाने की वजाए पेट्रोल पंप पर नाइट कर्फ्यू लगाने का शिगूफा छोड़ रही है। पहले कटौती की योजना सरकार खुद पर और अपने मंत्रियों और अधिकारियों पर लागू करे फिर जनता को सलाह दे।