क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

'देवता' दे रहे सपेरों को 'रोजी-रोटी'!

By रामलाल जयन
Google Oneindia News

बांदा। नागपंचमी में हिन्दू समाज जिस नाग को 'देवता' मान पूजा-अर्चना करता है, वह हिन्दू समाज के ही अनुसूचित वर्गीय, सपेरा समुदाय के लिए महज 'रोजी-रोटी' कमाने का जरिया है। सपेरों के मासूम बच्चे जहरीले सांपों के बीच ही खेलते हुए पलते हैं। मासूमों को स्कूली बस्ते की जगह नसीब होती है पिटारी। कच्ची उम्र में बीन बजाने के गुर सीखने का बोझ उन पर डाला जाता है।

देश में हिन्दू समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जो बेहद मुफलिसी का जीवन बसर कर रहा है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड की सीमा से सटे इलाहाबाद जिले के शंकरगढ़ इलाके में आधा दर्जन गांवों में अनुसूचित वर्गीय सपेरा समाज के करीब साढ़े चार सौ परिवार रहते हैं। इनका सुबह से शाम तक दैनिक कार्य जहरीले सांप पकड़ना और उन्हें बीन के इशारे पर नचा दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना है।


सपेरा समुदाय का आर्थिक ढांचा बेहद कमजोर होने के चलते इनके बच्चों को खिलौनों की जगह नसीब होते हैं सांप। वहीं, स्कूली बस्तों की बजाय हाथ में होती है पिटारी व बीन। बच्चों को शुरू से ही इन कार्यो को सिखाया जाता है जिससे पुश्तैनी पेशे से जुड़े रहें।

शंकरगढ़ निवासी सपेरे बाबा दिलनाथ ने बताया कि करीब आधा दर्जन गांवों में उनकी बिरादरी के साढ़े चार सौ परिवार आबाद हैं। चूंकि सरकार ने सांप पकड़ने और उनके प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी है, ऐसे में ये लोग चोरी-छिपे सांपों के तमाशे दिखा रोजी-रोटी कमाने को विवश हैं। है। दिलनाथ ने कहा, "सांप मांसाहारी जीव है। भगवान शिव का श्रंगार मान अधिकांश हिन्दुओं के लिए यह देवता हैं लेकिन हमारे लिए यह सिर्फ हमारी रोजी-रोटी हैं।"

सपेरों का एक कुनबा बांदा जिले के अतर्रा कस्बे में नागपंचमी के त्योहार में बरसाती डाल डेरा जमाए हुए है। इस कुनबे के 13 वर्षीय बालक चंद्रनाथ को पिटारी और बीन उसके पिता ने विरासत में दी। वह कस्बे में घूम-घूम कर सांपों का प्रदर्शन करता है। चंद्रनाथ ने कहा, "पढ़-लिख बड़ा आदमी बनना चाहता हूं, लेकिन परिवार की आर्थिक हालत देख पुश्तैनी काम को ही चुनना पड़ा।"

यह संवाददाता शनिवार सुबह जब सपेरों के डेरे में पहुंचा तो वहां का नजारा देख भौंचक्का रह गया। मासूम बच्चे शनि, बली और चंदू सांपों के बीच खेल रहे थे। कुनबे में मौजूद महिला सोमवती ने इस पर कहा, "खिलौने खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं तो बच्चे सांपों संग खेल अपना शौक पूरा कर लेते हैं।" वह कहती हैं कि यह सब आगे चलकर इन्हीं के काम आने वाला है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

Comments
English summary
Life of snake charmers only depend on God. The only festival Nag Panchami gives them hope of existence.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X