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नसीहत या फजीहत? : ‘सावन के सूखों’ से जेठ में आस!

By Kanhaiya
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अहमदाबाद। आद्रा तौ बरसै नहीं, मृगसिर पौन न जोय। तौ जानौ यो भड्डरी, बरखा बूँद न होय।। प्रसिद्ध लोक कवि भड्डारी की यह कहावत आज यूँ ही याद नहीं आ गई। अगर इस कहावत के खास मायने हैं, तो इसे आज याद करने की खास वजहें भी हैं।

इस कहावत का अर्थ है - यदि आर्द्रा नक्षत्र में पानी न बरसा और मृगशिरा नक्षत्र में हवा न चली तो वर्षा नहीं होगी, जिससे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। अब वजह भी बता दें कि भड्डारी की यह पंक्ति आज क्यों याद आ गई। दरअसल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की गुजरात कांग्रेस के नेताओं को दी गई नसीहत ने इस पंक्ति की याद दिलाई है। राहुल ने गुजरात कांग्रेस के नेताओं को नसीहत दी है कि वे नरेन्द्र मोदी को गुजरात में घेरें। गुजरात में मोदी सरकार की गलतियों को उजागर करें, धरना-प्रदर्शन करें।

राहुल गांधी की यह नसीहत अत्यंत हास्यास्पद और आश्चर्यजनक लगती है। भड्डारी की इस पंक्ति के साथ जोड़ कर देखें, तो ऐसा लगता है कि राहुल गांधी उन लोगों से जेठ की तपन में बरसात की आशा कर रहे हैं, जो सावन के भीगे मौसम में सूखे रहे। राहुल गांधी की नसीहत से लगता है कि कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी के सामने अब तक हुई फजीहत से कोई सीख नहीं ली है और यह नसीहत कांग्रेस की और फजीहत कराने वाली ही साबित होती लगती है।

राहुल गांधी शायद भूल गए कि उन्होंने जिस गुजरात कांग्रेस के नेताओं को मोदी को गुजरात में घेरने की सीख दी है, वे सारे पिटे हुए मोहरे हैं। इन नेताओं को पिटा हुआ मोहरा इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि हाईकमान नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इन चेहरों को बार-बार अदल-बदल कर मोहरों के रूप में इस्तेमाल करता रहा है और हर बार मुँह की खानी पड़ी है। अब ये भी याद दिलाने की जरूरत नहीं कि ये चेहरे शक्तिसिंह गोहिल, अर्जुन मोढवाडिया और शंकरसिंह वाघेला हैं। इन्हें सावन के सूखे इसीलिए कहना पड़ रहा है, क्योंकि सावन की चुनावी बरसात में जब ये मोदी को रोक न सके, तो अब इनसे जेठ की चुनावी तपन में आस कैसे लगाई जा सकती है?

नाकामी का लम्बा इतिहास

नाकामी का लम्बा इतिहास

गुजरात में कांग्रेस के साथ नाकामी का लम्बा इतिहास जुड़ा रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह नाकामी मोदी के आने से पहले से चली आ रही है। गुजरात में कांग्रेस को आखिरी बार बड़ी जीत लोकसभा चुनाव 1984-85 और विधानसभा चुनाव 1985 में मिली थी, जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में सहानुभूति लहर चल रही थी। इन चुनावों में कांग्रेस को लोकसभा की 26 में से रिकॉर्ड 24 सीटें मिली थीं, तो विधानसभा की 182 में से रिकॉर्ड 149 सीटें हासिल हुई थीं। उसके बाद कांग्रेस का ग्राफ गिरना शुरू हुआ और पिछले तेरह लोकसभा-विधानसभा चुनावों में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस 19 ही रही है।

मोदी के आगे बौनी गुजरात कांग्रेस

मोदी के आगे बौनी गुजरात कांग्रेस

गुजरात में 1989 से लेकर 2012 तक के तेरह चुनावों से लगातार हार रही कांग्रेस 2001-02 में नरेन्द्र मोदी के आगमन के बाद और कमजोर होती चली गई। यहाँ तक कि मोदी का कद इस कदर बढ़ा कि उनके आगे समग्र गुजरात कांग्रेस बौनी साबित हुई। मोदी के आगमन के बाद गुजरात में विधानसभा के तीन और लोकसभा के दो चुनाव हुए, परंतु कांग्रेस हर चुनाव में भाजपा के आगे 19 ही रही है।

जंग लग गई वाघेला की काट में

जंग लग गई वाघेला की काट में

गुजरात में 2002 से हर चुनाव में हार के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विधानसभा में प्रतिपक्ष के तत्कालीन नेता त्यागपत्र देते रहे। यह जैसे परम्परा बन गया। कभी शक्तिसिंह गोहिल, तो कभी अर्जुन मोढवाडिया और अब तो शंकरसिंह वाघेला भी मैदान में हैं। वैसे मोदी के खिलाफ वाघेला को बड़ी काट के रूप में देखा जाता था, परंतु वे भी हर बार विफल साबित हुए। 2007 में उन्होंने गुजरात चुनाव अभियान समिति की बागडोर सौंपी गई, परंतु वे मोदी को रोकने में कामयाब नहीं हुए। गुजरात विधानसभा चुनाव 2012 में वाघेला विधायक चुने गए और इस समय विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता भी हैं, परंतु अब वाघेला की काट में भी वह धार नहीं बची है।

चुनौती की जड़ गुजरात कांग्रेस

चुनौती की जड़ गुजरात कांग्रेस

अब राहुल गांधी की नसीहत की बात कर लें। दरअसल राहुल गांधी ने गुजरात कांग्रेस के नेताओं को मोदी को गुजरात में ही घेरने की नसीहत दी है। अब सवाल यह उठता है कि आज जो नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस के लिए चुनौती बन कर उभरे हैं, उसकी जड़ कहाँ है? यह सभी जानते थे कि गुजरात विधानसभा चुनाव 2012 नरेन्द्र मोदी के लिए पड़ाव है। यह चर्चा जोरों पर थी कि यदि मोदी यह चुनाव जीत गए, तो उनका आगे का रास्ता दिल्ली की ओर जाएगा। यदि विधानसभा चुनाव 2012 में ही गुजरात कांग्रेस ने मोदी को रोकने की मुकम्बल रणनीति अपनाई होती, तो आज कांग्रेस हाईकमान के समक्ष यह चुनौती पैदा ही न होती।

राहुल भी कम जिम्मेदार नहीं!

राहुल भी कम जिम्मेदार नहीं!

अब ऐसा नहीं है कि इस चुनौती का पूरा ठीकरा गुजरात कांग्रेस के सिर ही फोड़ दिया जाए। राहुल गांधी, जो शायद खुले तौर पर मोदी को चुनौती के रूप में स्वीकार न करते हों, भी इस चुनौती के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। दरअसल राहुल गांधी सहित कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी नरेन्द्र मोदी से सीधी टक्कर लेने से बचते रहे और आज भी बचने की कोशिश करते रहे। 2012 के चुनाव में राहुल गांधी जितनी बार गुजरात के चुनावी दौरे पर आए, हर बार वे नेहरू-गांधी की कहानियों की आड़ में मोदी को कोसते रहे, परंतु सीधे-सीधे मोदी पर वार नहीं किया। मोदी को गुजरात में ही रोकने की पहली जिम्मेदारी राहुल गांधी की ही थी।

Comments
English summary
Congress vice president Rahul Gandhi has asked party leaders from Gujarat to build pressure on the Narendra Modi government by strongly raising issues concerning people, but history of Gujarat Congress against Modi says that Rahul's this expectance will be vain to Gujarat Congress.
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