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बृंदा करात, नरेंद्र मोदी और पिल्‍ला विवाद

By Ajay Mohan
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अहमदाबाद। दुर्भाग्‍यवश बृंदा करात और वो लोग जो कांग्रेस में हैं जैसे राजनेताओं की राजनीति तबतक नहीं जिंदा रह सकती, जब तक वो शब्‍द 'विरोध' का इस्‍तेमाल न करें। संक्षिप्‍त में कहें तो जब तक वे विभाजित नहीं हैं, तब तक शासन करने की स्थिति में नहीं हैं। जब कोई कहता है कि जीवन का हर रूप, कुत्‍ते का बच्‍चा भी, मूल्‍यवान है, तो ये लोग हैरान हो जाते हैं और उलझन में पड़ जाते हैं।

कांग्रेस और वृंदा जैसे लोग पिल्ले के लेकर उतने ज्‍यादा चिंतित नहीं हैं, जितना कि भेदभाव को लेकर। दो प्रकार के शब्‍द हैं, जो भाषण पर चर्चा का विषय बने हुए हैं। पहला 'पिल्‍ला' और दूसरा 'इंसान'। दुर्भाग्य से, भेदभाव की राजनीति करने वालों के लिये 'पिल्‍ला' शब्‍द ज्‍यादा अनुकूल दिखाई दे रहा है। 'पिल्ले' के लिए उनका इतना प्‍यार क्‍यों। उसी के लिए नहीं एक अंतर्निहित प्यार क्‍यों नहीं।

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यह आश्‍चर्य की बात है कि देश के वरिष्ठ नेता सिख विरोधी दंगों सहित देश में हुए अन्य दंगों से अनजान हैं। यह उसी कानून और भूमि की व्यवस्था है, इस देश की एक ही न्यायपालिका है और इस देश का एक ही कानून है। वे दिल्ली में असफल हो, यह स्वाभाविक है। गुजरात का तंत्र बहुत उच्च और उग्र भावनाओं के खिलाफ अपनी सबसे अच्छी कोशिश करता है, तो यह एक डिजाइन हो जाता है।

अब तक, यह भी साफ हो गया है कि ये तत्व और नेता न्याय का अपना संस्करण चाहते हैं। इन्‍हें सुप्रीम कोर्ट सहित देश की न्यायपालिका में कोई विश्वास नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी की नियुक्ति की है और उसी की निगरानी में वो काम करती है, फिर भी ये नेता गुजरात सरकार और मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोपों को घिसा चले जा रहे हैं। इन्‍हें कोई भी बड़ी चूक या गलती नहीं मिली है। यहां तक ये नेता अपने एजेंडे के पूरा होने तक आराम नहीं कर पा रहे हैं।

'रेलवे प्लेटफॉर्म पर जनता के सामने गोधरा पीड़ितों का पोस्टमार्टम' जैसे नये झूठ का सहारा लेकर ये लोग विवाद को ईंधन प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कुछ नहीं बल्कि एक संपूर्ण और शरारती झूठ है। जब महिलाओं और बच्चों सहित कारसेवकों के लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था तब वृंदा करात या उसके कार्यकर्ता कहां थे, कांग्रेस पार्टी या उनके कार्यकर्ता कहां थे।

बुरी तरह जले और नहीं पहचानने योग्‍य मानव शरीर की पहचान करने में मदद करने के लिये आगे क्‍यों नहीं आये। क्‍या इसलिये कि ये मौतें उन्‍हें आगे नहीं बढ़ायेंगी? या फिर इसलिये क्‍योंकि इससे उनके वोटबैंक को मजबूती नहीं मिलेगी। यह वो राजनीति है जो एक 'इंसान' से अधिक 'पिल्‍ले' पर ध्‍यान देते हैं।

गुजरात को सामाजिक विकास के क्षेत्र में वृंदा करात से सबक सीखने की जरूरत नहीं है। सब कुछ काफी अच्छी तरह से स्थापित है, जो गुजरात के विकास की कहानी में छेद करने के लिए राजनीतिक उद्देश्य पूरे नहीं होंगे। हालांकि कांग्रेस के लिए भी इस तरह के सवाल मत पूछिए, क्‍योंकि यह अद्भुत है कि देश कांग्रेस शासन के साठ साल के बाद, अविकसित निरक्षर और कुपोषित रह गया है।

क्‍या वृंदा करात और उनकी पार्टी देश में वही मॉडल लाना चाहती हैं, जिसने 34 साल में पश्चिम को बर्बाद कर दिया? क्‍या वह वाम मोर्चा सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल में 34 साल के शासन में मानव विकास पर गर्व कर सकती हैं। सच्चाई तो यह है कि वे और उनकी विचारधारा को अब लोगों ने नकार दिया है।

यह वो लोग हैं, जिन्‍होंने वित्त मंत्री को भी नहीं बख्शा है, जो कुछ ही महीने पहले पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री से पश्चिम बंगाल की बेहतरी के लिए, राज्य की योजनाओं पर चर्चा करने के लिए योजना आयोग के पास आये थे। वृंदा करात कथित तौर पर अपने स्वयं के कार्यकर्ताओं द्वारा केरल के मालाबार क्षेत्र में टी.पी. चंद्रशेखर की तरह अपने ही कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए ने सीबीआई द्वारा एक जांच या एक विशेष रूप से गठित एसआईटी की मांग क्‍यों नहीं कर रही हैं? क्‍या उन्‍हें याद दिलाना पड़ेगा कि उनकी खुद की पार्टी के लोगों ने स्वयं के नेता की हत्या के लिए गौरवान्वित महसूस किया था।

वृंदा करात को जकिया जाफरी की याचिका के संबंध में अहमदाबाद में कोर्ट द्वारा सुनी जा रही वर्तमान याचिका को समझना चाहिए। यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही हुआ कि मामले के अंतिम निपटारे से पहले आवेदकों को एक मौका और देना चाहिये और एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को क्‍लीन चिट देने से पहले अच्छी तरह से इस मामले का अध्‍ययन एवं विश्लेषण किया। यह सब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार हो रहा है। यदि वह एक सम्‍मानित राजनेता पर कोई लेख लिखने का दर्द उठा रही हैं, तो उन्‍हें लेख लिखने से पहले सारे विवरण जुटा लेने चाहिये। एसआईटी की रिपोर्ट ही उनके अधिकांश सवालों का जवाब दे देगी।

English summary
Gujarat does not need lessons from Brinda Karat out of all people on social development. Does nation want the Left model of development that ruined Bengal for 34 years?
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