आडवाणी ने मान लिया कि वह पीएम की दौड़ में नहीं
[नवीन निगम] ग्वालियर में लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह की तारीफ अकारण ही नहीं की हैं। लोकसभा चुनाव की तैयारियों के तहत भाजपा में शुरू हुए विचार-विमर्श में जब लालकृष्ण आडवाणी ने अपने को पीएम पद की दौड़ में मोदी से पिछड़ते पाया तो उन्होंने सोचा कि यदि वो पीएम नहीं हो सकते तो वह उसे भी पीएम नहीं बनने देंगे जिसकी वजह से उनके हाथ से यह पद गया।
भाजपा के अदरुनी सूत्र बताते है कि इससे पहले नीतीश कुमार को भी लालकृष्ण आडवाणी ने ही भाजपा से पीएम पद का प्रत्याशी घोषित करने के लिए उकसाया था लेकिन जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की पसंद मोदी होने के कारण लालकृष्ण आडवाणी नीतीश की मुहिम से अपने को पीएम पद का उम्मीदवार नहीं घोषित करवा पाए। लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह की तारीफ करके एक तीर से दो निशाने साधे हैं। एक तो वो मोदी को पीएम पद की दौड़ में पीछे करना चाहते है और दूसरा वह अपने बयान की सफाई में भाजपा के वरिष्ठों से यही कहेंगे कि उन्होंने शिवराज की तारीफ इसलिए की जिससे मध्य प्रदेश में होने वाला चुनाव भाजपा आसानी से जीत सके।
आडवाणी ने शिवराज का चयन बहुत समझदारी से किया है क्योंकि शिवराज संघ के काफी करीब है और संघ की बातों पर पूरी तरह अमल करते है। यह स्वभाविक है कि मध्य प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ता आडवाणी के इस बयान के बाद शिवराज को प्रधानमंत्री बनाने का नारा अगले चुनाव में लगाएंगे। लालकृष्ण आडवाणी को मालूम है कि मध्य प्रदेश का चुनाव भाजपा आसानी से जीतेंगी।
क्या शिवराज आ सकते हैं दौड़ में?
इसी
में
यदि
वह
शिवराज
के
प्रधानमंत्री
बनने
की
बात
जोड़
दे
और
शिवराज
और
मोदी
के
बीच
जंग
शुरू
हो
जाए
तो
पार्टी
और
एनडीए
को
बाहर
से
समर्थन
दे
रहे
दल
भाजपा
पर
दबाव
बना
सकते
है
कि
वह
अपने
दूसरे
नम्बर
के
नेताओं
के
बीच
इस
संघर्ष
को
खत्म
करके
लालकृष्ण
आडवाणी
को
पीएम
पद
का
प्रत्याशी
घोषित
कर
दे
जिससे
यह
संघर्ष
समाप्त
हो
जाए।
लेकिन
लगता
है
कि
लालकृष्ण
आडवाणी
ने
इतिहास
से
कुछ
नहीं
सीखा।
पहले
भी
अपनी
कट्टर
हिंदूवादी
छवि
को
अटल
के
सांचे
में
ढालने
के
चक्कर
में
वह
पाक
में
जाकर
जिन्ना
की
शान
में
कसीदे
पढ़
आए
उनके
ऐसा
करने
से
उनके
ऊपर
लगे
कट्टरवादी
हिंदू
नेता
की
छवि
तो
धूमिल
हो
गई
लेकिन
वह
अटल
के
मखौटे
को
पहन
नहीं
पाए।
इसी वजह से भाजपा लगातार दो चुनाव यूपीए के हाथों हारी क्योंकि भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी को उन वोटरों ने वोट नहीं दिया जो उग्र हिंदूवाद से प्रभावित रहते है। इसी की भरपाई करने के लिए भाजपा में पुराने लालकृष्ण आडवाणी की तलाश जारी रही। याद रखिए की जब अटल चुनाव जीते तब उग्र हिंदूवाद से प्रभावित वोटरों ने भाजपा को इसलिए वोट दिया क्योंकि वह जानते थे कि एनडीए को बनाए रखने के लिए अटल को सामने किया गया है। वैसे तो पार्टी और सरकार लालकृष्ण आडवाणी ही चलाएंगे। लेकिन अपने शासनकाल के थोड़े समय बाद ही अटल ने यह साफ कर दिया कि सरकार और पार्टी में उन्हीं की चलेंगी। लालकृष्ण आडवाणी को अटल ने सम्मान दिया लेकिन उन्हें कभी गृहमंत्री के दर्जे से ऊपर नहीं उठने दिया।
लालकृष्ण आडवाणी जानते हैं कि1999 के बाद इस बार एनडीए को सत्ता मिल सकती है, इसलिए वह अपनी तरफ से सारे प्रयास करने में लगे है कि किसी तरह वह पीएम पद के प्रत्याशी घोषित हो जाए। लालकृष्ण आडवाणी की इस ताजा मुहिम से भ्रष्टाचार की मार झेल रही कांग्रेस को जरुर राहत मिलेगी। कांग्रेस के नेताओं को बयान देने और भाजपा की बखिया उघेडऩे का इससे अच्छा मौका आखिर कब मिलेगा।