दूसरे कल्याण सिंह निकले बीएस येदियुरप्पा
बैंगलोर। कहते हैं ना इतिहास अपने आप को दोहराता है तो वही हुआ आज। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में बस थोड़ा समय बचा हुआ है लेकिन रूझानों से काफी कुछ तस्वीर साफ हो गयी है कि इस बार सत्ता में भाजपा का डब्बा गोल हो चुका है लेकिन साथ ही चुनावी रूझान ने यह भी साबित कर दिया है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को भी जनता ने नापसंद कर दिया है।
चुनावी समीक्षकों की माने तो सबको यही लगता है कि भाजपा की हार का बड़ा कारण बीएस येदियुरप्पा का पार्टी छो़ड़ना है। लेकिन बीएस येदियुरप्पा की हार का कारण क्या है? इस बात पर हम चर्चा करते हैं।
आज बीएस येदियुरप्पा की हालत देखकर हमें यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की याद आ रही हैं। बीएस येदियुरप्पा और कल्याण सिंह की राजनीति और हालात काफी कुछ एक जैसे हैं।
भाजपा के कभी हिट नेताओं में से एक कल्याण सिंह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के चहेते हुआ करते थे लेकिन कल्याण सिंह की जिद और अपनी सहयोगी कुसुम राय पर हद से ज्यादा उनकी मेहरबानी ने उन्हें पार्टी के खिलाफ ला खड़ा किया। वो बागी हो गये। उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अपनी नयी पार्टी बना ली। लेकिन जिसके दम पर भाजपा ने कभी यूपी में कमल को खिलाया था, उसे प्रदेश की जनता ने बिल्कुल से कुम्लाहा दिया। कल्याण सिंह के बाहर होने से यूपी में भाजपा तो हारी ही, कल्याण का भी कल्याण नहीं हो पाया।
अपने दुश्मनों के साथ हाथ मिलाने के बावजूद कल्याण सिंह कभी भी सक्रिय राजनीति के हिस्सा नहीं बनें। हालांकि उनकी 10 साल बाद भाजपा में वापसी हो गयी हैं लेकिन आज भी वो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।
वही हाल आज बीएस येदियुरप्पा का है, जिन्हें भ्रष्टाचार में लिप्त पाये जाने पर भाजपा ने उनसे कुर्सी छीन ली, बीएस येदियुरप्पा को सीएम पोस्ट चाहिए थी जिसके लिए उन्होंने भाजपा के हाईकमान से भी सिफारिश की लेकिन भाजपा ने उन्हें हमेशा निराश किया। जिसकी वजह से बीएस येदियुरप्पा बागी हो गये और भाजपा छोड़कर अलग पार्टी बना ली। भाजपा भूल गयी कि उसने साल 2008 में विधानसभा चुनाव बीएस येदियुरप्पा के ही कारण जीता था। तो वहीं बीएस येदियुरप्पा को लगता था कि वो आज के चुनाव के निर्णायक व्यक्ति होंगे लेकिन उनका नशा तब हिरन हो गया जब चुनावी लड़ाई में जनता ने उन्हें गच्चा दे दिया।
एक बार फिर से साबित हो गया कि जनता यह जानती है कि बिना पार्टी के किसी भी व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं और भाजपा की हार यह बताती है कि वो भले ही किसी का एहसान भूल सकती है लेकिन जनता कुछ नहीं भूलती।