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रेलवे ने सबक लिया होता तो टल सकती थी स्‍टेशन पर भगदड़

By Ajay Mohan
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लखनऊ (नवीन निगम): कुछ वर्ष पहले लखनऊ में बसपा की रैली के दौरान हुई गलती से यदि रेलवे ने कोई सबक सीखा होता तो महाकुंभ में इलाहाबाद रेलवे स्‍टेशन हुए हादसे से बचा जा सकता था, कुछ वर्ष पहले लखनऊ में बसपा की रैली के दौरान भी प्लेटफार्म पर हादसा हुआ था जब उसके कारण की लखनऊ रेलवे के बड़े अधिकारियों ने जांच की तो पता चला था कि ट्रेन के अचानक प्लेटफार्म बदलने की जैसे ही घोषणा हुई रैली में आए हुए लोगों का जत्था सीढिय़ों पर इतनी तेजी से चढ़ा कि भगदड़ मच गई और कई लोगों की कुचलकर मौत हो गई।

इलाहाबाद से लौटे मेरे एक मित्र और घटना के प्रत्यक्षदर्शी राजेश ने बताया कि घटना वाले दिन सभी प्लेटफार्म लोगों की भीड़ से खचाखच भरे हुए थे, सबसे ज्यादा भीड़ प्लेटफार्म एक पर थी, जैसे ही घोषणा हुई कि गोरखपुर जाने वाली ट्रेन अब प्लेटफार्म पांच पर आ रही हैं। लोग प्लेटफार्म पांच की तरफ भागने लगे और इसी बीच पुलिस ने अचानक हुई इस भगदड़ को रोकने की कोशिश की जिसका परिणाम यह हुआ कि लोग एक दूसरे पर गिरने लगे मैं भी बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर आ सका।

अबतक आप की समझ में आ गया होगा कि रेलवे से गलती कहां हुई। रैली हो या कुंभ यहां ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र से लोग आते हैं। इन्हें ट्रेन पकडऩे की जल्दी होती है और भारी भीड़ के दौरान यह कुछ असहज और बड़े-बड़े गुट में होते हैं। रेलवे द्वारा पहले से निर्धारित प्लेटफार्म पर यह जमा होते रहते हैं, लेकिन जैसे ही रेलवे महकमा ट्रेन का प्लेटफार्म यह कहते हुए बदलता है कि अमुक ट्रेन अब प्लेटफार्म नम्बर पांच पर आ रही हैं तो भीड़ के रूप में गाड़ी का इंतजार कर रहे लोग ट्रेन निकल जाने के डर से तेजी से उस तरफ भागते है और ऐसे हादसे होते हैं।

हकीकत यह कि जब यह घोषणा होती है ट्रेन तब तक उस प्लेटफार्म पर आ भी नहीं पाती है, लेकिन रेलवे की घोषणा करने का अंदाज हमेशा से यही रहा है कि ट्रेन भले ही प्लेटफार्म पर न पहुंची हो लेकिन वह घोषणा इसी तरह करता है कि लोगों को लगता है कि दौड़ों नहीं तो ट्रेन छूट जाएंगी। लखनऊ में बसपा की रैली के बाद यदि रेलवे ने अपनी उद्घोषणा करने के लहजे को सुधार लिया होता और यह समझ लिया होता कि भारी भीड़ के दौरान ट्रेन का प्लेटफार्म बदलना कितना बड़ा जोखिम है तो हादसे से बचा जा सकता था।

इलाहाबाद के मंडलीय रेलवे प्रबंधक हरेंद्र राव जिला प्रशासन पर यह कहते हुए आरोप लगा रहे हैं कि जिला प्रशासन को रविवार को कई बार हिदायत दी गई थी भक्तों को मेला क्षेत्र में रोके क्योंकि स्टेशन पर भीड़ बढ़ रही हैं। वह खुद मान रहे कि स्टेशन की क्षमता 50 हजार है और हादसे के वक्त स्टेशन पर तीन लाख से ज्यादा लोग थे। तीन लाख की भीड़ में यह घोषणा कि ट्रेन अब पांच नम्बर प्लेटफार्म पर आ रही है रेलवे की कितनी बड़ी नासमझी थी।

अब भी वक्त है जब रेलवे अपनी उस गलती को समझे जो उससे बार-बार अनजाने में हो रही है क्योंकि आम दिनों में तो जब ट्रेन का प्लेटफार्म बदला जाता है तो लोग धीरे-धीरे आसानी से प्लेटफार्म बदल लेते है लेकिन रैली और बड़े धार्मिक आयोजनो के दौरान अचानक प्लेटफार्म बदलना कितना बड़ा जोखिम हो सकता है रेलवे को इस तरफ सोचना शुरू कर देना चाहिए।

अगर रेलवे ...ट्रेन आ रही हैं कि घोषणा की जगह यह घोषणा करता कि अमुक ट्रेन अब प्लेटफार्म नम्बर पांच पर आधे घंटे बाद आएंगी तो भीड़ इस तरह ट्रेन पकडऩे के लिए उत्तेजित नहीं होती और हादसा टल जाता। अब रेलवे के आला अधिकारियो को अंग्रेजों के समय से चली आ रही अपनी घोषणा करने के अंदाज को बदल लेना चाहिए, कम से कम रैली और बड़े धार्मिक आयोजनों के लिए तो अब सबक सीख ही लेना चाहिए।

आगे पढ़ें- पहले भी मातम में दब्‍दील हुए धार्मिक स्‍थल | रेलमंत्री के लिये तीन सवाल

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English summary
The stampede at Allahabad Railway station could be avoided if Indian Railways took lesson from previous incidents.
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