पहले भी कई बार मातम में तब्दील हुए हैं धार्मिक स्थल
इलाहाबाद। आए तो थे पुण्य कमाने लेकिन दर्द से भर गया जीवन। संगमनगरी में कल हुए हादसे के बाद लोगों की जुबान पर बस यहीं राग है। मौनी अमावस्या को जन्म-जन्म के पापों को धोने और पुण्य कमाने करोड़ों की तादाम में श्रद्धालुओं पवित्र नगरी इलाहाबाद पहुंचे थे लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि जिस गंगा में डुबकी लगाने और अपनों की सलामती के लिए दुआ मांगने वो कंभ नगरी जा रहे है वही नगरी उनके लिए काल बन जाएंगी।
ये
कोई
पहला
मौका
नहीं
था
जब
किसी
धार्मिक
स्थल
पर
इस
तरह
की
घटना
हुई
हो।
इससे
पहले
भी
कई
बार
लोग
इसी
तरह
से
भगदड़
का
शिकार
होकर
अपनी
जान
गंवा
चुके
है।
अगर
पिछले
कुछ
सालों
के
आंकड़ों
पर
उठा
कर
देखे
तो
सैकड़ों
लोग
इन
धार्मिक
स्थलों
पर
हिई
भगदड़
में
अपनी
जान
गंवा
चुके
है।
सितंबर 2012- झारखंड के देवघर जिले में ठाकुर अनुकूल चंद की 125वीं जयंती पर एक आश्रम परिसर में हजारों की भीड़ जमा होने की वजह से भगदड़ मची और दम घुटने की वजह से 9 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
2 सितंबर 2012- बिहार के नालंदा जिले में राजगीर कुंड में स्नान के दौरान श्रद्धालुओं के बीच मची होड़ में 2 श्रद्धालु की मौत हो गई, जबकि 6 घायल हो गए।
23 सितंबर 2012- उत्तर प्रदेश के मथुरा में राधा अष्टमी के मौके पर राधा रानी मंदिर में भारी भीड़ जमा होने से भगदड़ मची और 2 महिला की मौत हो गई थी।
19नवंबर 2012- पटना में छठ पूजा के दौरान मची भगदड़ में 17 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई लोग घायल हो गए थे।
8 नवंबर 2011- उत्तराखंड के हरिद्वार में मची भगदड़ में 16 लोगों की जान चली गई थी।
14 जनवरी 2011- केरल के इदुक्की जिले में मची भगदड़ में तकरीबन 102 लोगों की मौत हो गई थी।
4 मार्च 2010- उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालुजी महाराज आश्रम में प्रसाद वितरण के दौरान 63 लोग मारे गए थे।
3 जनवरी 2008- आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित दुर्गा मल्लेस्वारा मंदिर में भगदड़ मचने से 5 लोगों की मौत गई थी।
30 सितंबर 2008 : राजस्थान के जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में अफवाह के बाद मची भगदड़ में 250 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी, जबकि 60 घायल हो गए थे।
3 अगस्त 2008- हिमाचल प्रदेश में नैना देवी मंदिर की दीवार ढहने से मची भगदड़ में 160 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 230 घायल हो गए।
अक्टूबर 2007- गुजरात के पावागढ़ में धार्मिक कार्यक्रम के दौरान 11 लोगों की जान चली गई थी।
नवंबर 2006- ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर में उमड़ी भीड़ में भगदड़ से 4 बुजुर्गो की मौत हो गई थी।
ये तो चंद आकड़े है जिसमें लोगों ने धर्मिक स्थलों पर अपनी जान गंवाई है लेकिन सवाल बस एक है कि आखिर कब तक? सरकार कब तक इसी तरह से लापरवाही करती रहेगी और लोगों की जान जाती रहेगी। आखिर सरकार और प्रशासन हादसों से सबक क्यों नहीं लेते? कभी भगदड़ से तो कभी प्रशासन की बदइंतजामी की वजह से ही इस तरह के हादसे होते हैं। हादसों के बाद अंत तक लोग एक दूसरे को ही जिम्मेदार ठहराते रह जाते है।
अपनी गलती से सबक लेने के बजाय सरकार हादसों के इन घावों को चंद रुपयों से मलहम लगाने की कोशिश करने लग जाता है। सरकार और प्रशासन की नजर में लोगों की मौत की कीमत चंद नोटों ने मापी जा सकती है। 12 सौ करोड़ की लागत से अगर यूपी सरकार कुंभ जैसे धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करवा सकती है तो उसमें शामिल होने वाले लोगों को सुरक्षा मुहैया क्यों नहीं करवा सकती। आखिर कब तक एक-दूसरे पर अपनी गलतियों को मढ़ कर सरकार अपने दामन को पाक साफ करने का खेल खेलती रहेंगी और निर्दोष लोगों की जाने जाती रहेंगी।