रेप विरोधी अध्यादेश से नाराज महिला संगठन
महिला संगठनों का आरोप है कि सरकार संसद सत्र के शुरू होने के ठीक पहले आनन-फानन में यह अध्यादेश लेकर आ रही है जिसमें पारदर्शिता नाम की कोई चीज नहीं है। इन महिला संगठनों की मांग थी कि शादी के बाद रेप और सैन्य रेप मामले में जस्टिस वर्मा द्वारा दी गई सिफारिशों को सरकार इस अध्यादेश में शामिल करे। महिला संगठनों ने प्रणब दा से अपील की थी कि वो अध्यादेश पर सिग्नेचर ना करें लेकिन प्रणब दा ने उनकी एक नहीं सुनी।
मालूम हो कि रविवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने यूपीए कैबिनेट की ओर से प्रस्तावित अध्यादेश पर साइन कर दिया है। अब सरकार 6 महीने के अंदर इसे संसद में पारित करा कर कानून का रुप देगी। आपको बता दें कि इस अध्याजेश में जघन्य रेप केस में फांसी की सजा मुकर्रर की गयी है।
सरकार की ओर से उम्मीद जतायी गयी है कि इस सख्त कानून के बदौलत देश की बहन-बेटियां सुरक्षित रहेंगी। हालांकि सरकार ने ने जस्टिस वर्मा की सिफारिशों पर चर्चा जरूर की लेकिन उन्हें माना नहीं क्योंकि इस समिति ने प्रशासनिक सुधारों की सिफारिश की थी पर बलात्कारियों को फांसी देने से इनकार कर दिया था।
आईये आपको बताते हैं कि सिफारिशें क्या थीं
1.
बलात्कार
को
हम
जघन्य
अपराध
घोषित
नहीं
कर
सकते
हैं
इसलिए
इसमें
फांसी
की
सजा
नहीं
हो
सकती
है।
2.
अगर
पीड़ित
की
रेप
के
बाद
हत्या
हो
जाती
है
या
फिर
सामान्य
जीवन
बीताने
के
लायक
नहीं
रहता
है
तो
इस
केस
में
सजा
उम्रकैद
होनी
चाहिए।
3.
छेड़छाड़,
यौन
इरादे
से
छूना,
पीछा
करना
भी
यौन
अपराध
है।
जिसमें
सजा
तीन
से
पांच
साल
होनी
चाहिए।
4.
रेप
पीड़ित
की
आसानी
से
मेडिकल
जांच
हो
पाये।
5.
कश्मीर,
सैनिक
जैसे
लोग
अगर
यौन
अपराध
और
रेप
जैसे
मामलों
में
लिप्त
पाये
जाते
हैं
तो
इनकी
सुनवाई
भी
आम
कोर्ट
में
होनी
चाहिए।