गंगा में डुबकी लगाने को बैचैन रहते हैं नागा साधु!
कुंभ नगरी। जब किसी चीज पर हमारी जानकारी कम होती है तो उस विषय के बारे में जानने की हमारी जिज्ञासा बढ़ती जाती है। हम उस रहस्य के बारे में अधिक से अधिक से जानने की कोशिश करते है। मानव मन की ये विशेषता है कि कम जानकारी और रहस्य किसी चीज के प्रति हमारी आकर्षकता को बढ़ा देता है। ऐसा ही कुछ कुंभ नगरी आने वाले नागा साधुओं के लिए भी है। नागा साधु हमारे आकर्षण का केन्द्र होते है क्योंकि ये केवल कुंभ के दौरान ही सार्वजनिक होते है।
अपनी बैरागी दुनिया को छोड़कर कुंभ के समय ये साधु हमारी पुंजीवादी दुनिया में आते है। हम भले अपनी उत्सुकता के कारण इन्हें देखकर खुश होते है लेकिन इन्हें हमारी मौजूदगी से कोई फर्क नहीं पड़ता। ये तो बस अपनी धुन में गंगा में डुबकी लगाने को आतुर होते है।
गंगा से इनका ये प्रेम यूं ही नहीं होता। इनका गंगा प्रेम कितना निष्छल है इसका प्रमाण तो इस बात से ही मिलता है कि गंगा से मिलन के लिए ये साधु कोसों-कोस की दुरियां तय कर चलें आते है। पुरानी कथा है कि प्रयाग में भागीरथी का जब सूर्य पुत्री यमुना से मिलन होना था, तब अपनी उग्र प्रवृति के कारण गंगा ने यमुना से मिलने से इंकार कर दिया था।
गंगा के इस इंकार के बाद त्याग और समपर्ण का परिचय देते हुए भागीरथी की बड़ी बहन यमुना ने संगम पर अपना अस्तित्व मिटा लिया। जिसके बाद वहां केवल गंगा का अस्तित्व रह गया। चूकि गंगा शिव की प्रेयसि थी और ये नागा साधु शिव के परम भक्त । इसलिए इन नागा बाबाओं के गंगा-मिलन की आतुरता चरम पर होती है। दोनों के बीच भगवान शिव को लेकर संबंध है। दोनों ही भगवान शिव के भक्त । महादेव के इन भक्तों की एक दूसरे से मिलन का परिचायक है ये कुंभ।
भले ही ये कुंभ हर बाहर सालों पर आता हो लेकिन लंबी जुदाई के बाद मिलन का जो अहसास इन नागा साधुओं को होता है उसकी अनुभूति अतुलनीय है। हर-हर महादेव का हुंकार भरते ये नागा साधु गंगा में सिमटने को बेकरार होते है। शाही स्नान के दौरान इन नागा साधुओं को ही सबसे पहले गंगा में डुबकी लगाने का मौका दिया जाता है। कुंभ के दौरान इन साधुओं की मौजूदगी मेले में चार-चांद लगा देती है।