अफसोस, अब कोई स्वामी विवेकानंद जैसा नहीं बन सकता!
यह बात कड़वी जरूर है, लेकिन यथार्थ है। हम इस यथार्थ से पीछे भाग भी नहीं सकते। कारण यह है कि प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में आज की जनता महात्मा गांधी और स्वामी जी जैसे लोगों के विचारों को पीछे छोड़ता जा रहा है। सच पूछिए तो कक्षा-8 के बाद कोई भी बच्चा उन्हें पढ़ना तक नहीं पसंद करता। आप इसी से अंदाजा लगा लीजिये, कि लखनऊ विश्वविद्यालय में पीजी डिप्लोमा इन गांधियन थॉट्स का कोर्स चलता है। इसमें 30 सीटे हैं, और यह कोर्स पिछले 8 साल से चल रहा है, लेकिन आज तक इसकी सभी सीटें कभी नहीं भरी। हर साल चार या पांच एडमीशन होते हैं बस।
इससे यह भी साफ है कि अगर आज आप स्वामी विवेकानंद पर कोई कोर्स शुरू कर दीजिये, तो उसका भी यही हाल होगा। बीए-एमए की किताबों में उनके बारे में जितना लिखा है, उस ज्ञान को सिर्फ नंबर पाने के लिये ग्रहण किया जाता है, उसे जीवन में लागू करने के बारे में कोई सोचता तक नहीं। अपनी इस बात को सिद्ध करने के लिये हमने स्वामी विवेकानंद की दस उक्तियों को उठाया है-
1. उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये
लोकपाल बिल और दिल्ली गैंगरेप ये दो बड़े उदाहरण आपके सामने हैं। देश के युवा उठे, जागे और पूरे देश में प्रदर्शन हुए। लेकिन आगे क्या हुआ शांत हो गये। गैंगरेप के मामले में तो पुलिस अपना काम कर रही है, लेकिन लोकपाल बिल का क्या। केजरीवाल अपनी पार्टी बनाने चले गये, तो देश का युवा क्यों रुक गया। उसे तो अपनी लड़ाई जारी रखनी चाहिये थी।
2. तमाम संसा हिल उठता। क्या करूँ धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान!
स्वामी जी ने कहा तूफान मचा दो, तो हमारे युवाओं ने मेट्रो ब्लॉक कर दी, इंडिया गेट पर गणतंत्र दिवस की तैयारियों में लगी बैरीकेडिंग उखाड़ फेंकी। पुलिस के वाहन जला दिये, पथराव किया, कईयों को घायल किया और न जाने क्या-क्या किया। जबकि स्वामी विवेकानंद ने ऐसा करने के लिये कभी नहीं कहा। उन्होंने कहा था खुद के अंदर तूफान मचा दो, न कि तूफान खड़ा कर दो।
3. जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है
हमारा सवाल यह है कि आज युवा सीखें तो किससे सीखें। कोई रोल मॉडल तो होना चाहिये। रिटायरमेंट सिर्फ सरकारी नौकरों के लिये है, नेताओं या कलाकारों के लिये क्यों नहीं। 40 साल के सलमान, शाहरुख युवा इसलिये हैं, क्योंकि 70 साल के अमिताभ अभी तक काम कर रहे हैं। 42 के राहुल गांधी इसलिये युवा हैं, क्योंकि 80 साल के मनमोहन सिंह काम कर रहे हैं। व्यक्ति किसे रोल मॉडल माने।
4. पवित्रता, दृढ़ता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ
आज विचारों में पवित्रता कैसे आये। बच्चों पर पढ़ाई का इतना बोझ है कि उनके पास धार्मिक ग्रंथ पढ़ने का समय ही न हो। मेरी मां बताती हैं कि उनके पिताजी रोज शाम को रामायण की चौपाइयां गा-गाकर अपने बच्चों को सुनाते थे और उनकी व्याख्या करते थे। आज शायद ही ऐसा कहीं होता होगा। बात अगर दृढ़ता की कों तो उसे नया नाम ओपन माइंडेड दिया गया है और ओपन का मतलब खुली सोच नहीं है, बल्कि जो व्यक्ति जितना ज्यादा खुलकर वल्गर बाते करेगा वो उतना ही ओपन है।
5. ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है
अविष्कार की बात आती है, तो जिसमें अच्छी कमाई हो जाये वही अविष्कार है। फिल्म निर्देशक महेश भट्ट का ही उदाहरण ले लीजिये। एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर के ऊपर उन्होंने अर्थ फिल्म बनायी। वो हिट हुई। उसे उन्होंने अपना अविष्कार मान लिया और आज आम यह है कि भट्ट कैम्प सिर्फ अपनी हॉट सीन से युक्त फिल्मों के लिये जाना जाता है।
6. जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
आज युवाओं का खुद के मस्तिष्क पर अधिकार कैसे हो जब ट्विटर से ब्रेकफास्ट और फेसबुक से डिनर करने वाले युवा को हर जगह अश्लीलता मिलती है। अखबारों या पत्रिकाओं में जब तक हॉट तस्वीर नहीं होती, सर्कुलेशन नहीं बढ़ता। फिल्मों में हॉट सीन नहीं होती तो वो चलती नहीं। प्रतिस्पर्द्धा की इस दौड़ में जो अश्लीलता से दूरी बनाकर चलता है उसकी दुकान दो दिन में बंद हो जाती है। लिहाजा युवाओं की मानसिक अवस्था भी उसी में ढलती जा रही है।
7. आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो
आज कौन है जो आध्यात्म का रास्ता अपनाने की बात करता है। आप आध्यात्मिक गुरु बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर को ही ले लीजिये। इनका एक अपना दायरा है ये लोग सिर्फ उसी के अंदर बात करते हैं।
8.
हमारी
नैतिक
प्रकृति
जितनी
उन्नत
होती
है,
उतना
ही
उच्च
हमारा
प्रत्यक्ष
अनुभव
होता
है,
और
उतनी
ही
हमारी
इच्छा
शक्ति
अधिक
बलवती
होती
है
नैतिकता
की
बात
करें
तो
आज
सिर्फ
माता-पिता
के
पास
ही
अपने
बच्चे
को
नैतिकता
सिखाने
का
अधिकार
है।
बच्चा
कुछ
गलत
काम
करता
है
और
अगर
पड़ोसी
बुजुर्ग
उसे
डांट
लगा
दे,
तो
मां-बाप
उसी
पड़ोसी
से
लड़ने
चल
देते
हैं।
ऐसे
में
वो
बच्चा
आगे
चलकर
पड़ोसी
बुजुर्ग
को
कभी
सम्मान
नहीं
देता।
नैतिकता
सिर्फ
मां-बाप
से
ही
आयेगी,
यह
कॉन्सेप्ट
बच्चों
को
अनैतिकता
का
पाठ
ज्यादा
पढ़ाता
है।
9.
लोग
तुम्हारी
स्तुति
करें
या
निन्दा,
लक्ष्मी
तुम्हारे
ऊपर
कृपालु
हो
या
न
हो,
तुम्हारा
देहान्त
आज
हो
या
एक
युग
मे,
तुम
न्यायपथ
से
कभी
भ्रष्ट
न
हो
कोई
स्तुति
करे
तब
तो
आज
सभी
खुश
होते
हैं,
आज
युवा
अपनी
निंदा
सुन
ही
नहीं
सकते।
उनके
अंदर
इतना
पेशेंस
ही
नहीं
है।
नई
कंपनी
ज्वाइन
करते
हैं
अगर
कोई
सीनियर
डांट
देता
है,
तो
नौकरी
छोड़कर
चल
देते
हैं।
यह
इसलिये
क्योंकि
आज
नौकरियां
काबीलियत
पर
नहीं
डिग्री
के
बेसिस
पर
मिली
है।
भ्रष्ट
सरकारी
तंत्र
में
हम
न्यायपथ
पर
चलने
की
सोचें
तो
मौत
के
बाद
भी
न्याय
नहीं
मिलेगा।
10. तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
यहां पर स्वामी विवेकानंद का तात्पर्य स्वाभिमान से था, लेकिन आज स्वाभिमान अभिमान में बदल चुका है। युवाओं में अहम कूट-कूट कर भर चुका है।
अब आप बताईये, ऐसी परिस्थितियों में क्या भारत में कोई दूसरा स्वामी विवेकानंद जन्म ले सकता है? अपने जवाब नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें।