युवाओं में क्यों और कब पनपता है क्राइम?
संघर्षों
के
साए
में
असली
आजादी
पलती
है,
इतिहास
उधर
मुड
जाता
है,
जिस
ओर
जवानी
चलती
है।
नई दिल्ली। जी हां अपने माद्दे से इतिहास बदलने वाले और कई क्रांतिकारी बदलावों की साक्षी रही युवा शक्ति (जवानी) राह से भटकने लगी है। ये बात हम नहीं बल्कि जरायम की दुनिया में युवाओं की बढ़ती दखल इस बात की गवाही दे रही है और इसकी तस्दीक करते हैं, देश में हाल ही में हुए आपराधिक वारदातों के आंकड़े।
आशनाई, वर्चस्व व बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए युवा सबसे ज्यादा अपराध कर रहे हैं। पर बात कोई भी हो लेकिन अपराधी बन रही जवानी समाज के लिए बड़ी समस्या बन कर उभर रही है।
कुछ दिनों पूर्व उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक लूट का पर्दाफाश हुआ। पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया वो पेशेवर अपराधी नहीं बल्कि इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाले नौजवान थे। नोएडा पुलिस ने अभी कुछ दिन पहले दो युवकों को चेन स्नेचिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था। पूछताछ पर पता चला कि वो मैनेजमेंट के छात्र हैं और उनके पिता सरकारी विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत हैं। अब यहां सवाल यह है कि आखिर युवा अपराध की डगर पर क्यों चलने लगा है?
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खैर इसके पीछे के कारण तो बहुत हो सकते हैं मगर बाजारवाद के इस दौर में युवाओं का अतिमहत्वकांक्षी होना, हर पल आगे निकलने की होड़, वर्तमान शिक्षा प्रणाली तथा बढ़ते अकेलेपन आदि को प्रमुख कारण माना जा सकता है। हमने दिल्ली के मनोचिकित्सक डा. सुभाष झा और कुछ पुलिस अधिकारियों से इस संबंध में बात की, तो कई सारे कारण उभर कर सामने आये। उनमें से 10 महत्वपूर्ण कारण हम आपके सामने रख रहे हैं-
खराब परवरिश
सही परवरिश नहीं होना अपराध का सबसे पहला रास्ता खोलता है। जब बच्चा बचपन में छोटी-मोटी चोरी करता है, तब अगर उसके मां-बाप उसका पक्ष ले लेते हैं, तो उसका प्रभाव उसके आगे के जीवन पर पड़ता है। आगे चलकर उसे यह विश्वास रहता है कि वो कुछ भी गलत करेगा, उसके माता-पिता उसका साथ नहीं छोड़ेंगे। युवा अपराधियों में एक बात कामन रहती है कि उनकी अपने परिवार से खुल कर बात नहीं होती है।
महंगी जरूरतें
मॉल कल्चर के इस जमाने में युवा 10वीं पास करते ही मॉल घूमने का शौकीन हो जाता है। वहां पर जब उसके साथी ढेर सारी खरीददारी कर अपनी जेब का रौला दिखाते हैं, तब उसका भी मन करता है महंगी-महंगी चीजें खरीदने का। जब उसकी जेब में पैसे नहीं होते, तब वो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये गलत रास्ता अख्तियार करता है।
महत्वकांक्षाएं
आज का युवा अतिमहत्वकांक्षी हो गया है। यदि कोई कीमती वस्तु किसी और के पास है तो वह भी उसे हर कीमत में हासिल करना चाहता है। वो चीज ना मिलने के बाद वो अपराध का दामन थामने में नहीं हिचकता है। ऐसा तब ज्यादा होता है जब कोई युवा प्यार में पागल हो।
कैम्पस
आज लगभग सभी शिक्षण संस्थानों के कैम्पस युवाओं को संवेदनहीन बनाते जा रहे हैं। कैम्पस में आवारागर्दी होती रहती है और टीचर कुछ बोल नहीं पाते। इसका मतलब यह नहीं कि टीचर उनका भला नहीं चाहते, बल्कि वो उनसे डरते हैं। नैतिकता का पाठ अब शिक्षण संस्थानों में भी नहीं पढ़ाया जा रहा है।
अकेला पन
जहां तक अकेलेपन का सवाल है तो अकेलेपन से जूझते बच्चे उल्टे सीधे टीवी कार्यक्रम देखते हैं या वीडियोगेम की शरण में जाते हैं। ये कार्यक्रम बच्चों को चिड़चिड़ा ही नहीं बल्कि हिंसक भी बनाते हैं। ऐसे बच्चे बड़े होकर परिवार के साथ-साथ समाज से भी कट जाते हैं। यदि हम चाहते हैं कि युवा अपराध की डगर पर न चलें तो उन्हें बचपन से ही नैतिकता का पाठ पढ़ाना होगा।
मैत्रीपूर्ण संबंध
अभिभावकों को पारिवारिक एवं आर्थिक तनावों की स्थिति में भी बच्चों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाते हुए उन्हें जटिल परिस्थितियों में विनम्रता, साहस और दृढ़ता पूर्वक व्यवहार करने की शिक्षा देनी होगी।
गुस्से में क्राइम
इसके अलावा बच्चों को यह सिखाया जाना भी जरूरी है कि उनका गुस्सा तथा उनकी अतिमहत्वाकांक्षी उनके तथा उनके परिवार के लिए घातक हो सकती है। बच्चों के अकेलेपन को दूर करने के लिए अभिभावकों यह कोशिश करनी होगी कि वह अधिक से अधिक समय बच्चों के साथ बितायें। जब अभिभावक बच्चों के साथ समय बितायेंगे, तब बच्चें उन्हें अपने मन की अच्छी बुरी भावनाओं से अबगत करा सकते हैं, जिससे उन्हें उचित मार्गदर्शन देना आसान होगा। अभिभावकों के साथ-साथ शिक्षक समुदाय को भी युवाओं को बेहतर नागरिक बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।