झारखंड का एक भी मुख्यमंत्री नहीं कर पाया पांच साल पूरे
रांची। झारखंड सत्ता परिवर्तन की दहलीज पर खड़ा है। भारतीय जनता पार्टी के हाथ से एक और राज्य खिसकता नजर आ रहा है, क्योंकि अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर राज्यपाल से विधानसभा चुनाव की सिफारिश कर दी है। देखने वाली बात तो यह है कि अर्जुन मुंडा भी पांच साल पूरे करने का रिकॉर्ड नहीं बना सके। यही नहीं इस प्रदेश में आज तक एक भी मुख्यमंत्री ऐसा नहीं रहा है, जिसने अपने पांच साल पूरे किये हों।
इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि विकास के रथ से कोसों दूर चल रहे झारखंड में एक भी सरकार अपने कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाती है। 15 नवंबर 2000 को बिहार के दक्षिणी हिस्से को काट कर इस राज्य का निर्माण इसी उद्देश्य से किया गया था, ताकि राज्य का चौतरफा विकास हो सके। लेकिन राजनीतिक उठापटक और किसी भी पार्टी का पूरे राज्य में मजबूत नहीं होना इस राज्य के लिये एक बड़ा संकट बना रहा और एक भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पायी।
2000 में सबसे पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी बने। वो सिर्फ तीन साल तक शासन चला सके। उसके बाद अर्जुन मुंडा आये। 2005 में मुंडा भी चलते बने। फिर शिबू सोरेन की ताजपोशी मार्च 2005 में हुई। मात्र 10 दिन में ही उन्हें सीएम पद से हटना पड़ा। मुंडा को फिर एक चांस मिला और वो 6 महीने तक सीएम रहे। फिर सितंबर 2005 में मधु कोडा सीएम बने और एक साल तक राज किया।
एक साल बाद उन्हें भी गद्दी से उतरना पड़ा। 2008 में शिबू सोरेन आये, फिर 2009 में राष्ट्रपति शासन लग गया। 2009 के अंत में फिर से शिबू सोरेन सीएम बने और एक साल बाद 2010 में फिर राष्ट्रपति शासन लगा। सितंबर 2010 में अर्जुन मुंडा सीएम बने और आज उन्होंने भी सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
कुल मिलाकर देखा जाये तो यह इस राज्य के लिये कतई अच्छा नहीं है। इस तरह से राज्य विकास की एक बूंद तक नहीं पी सकता। यही रहा तो छोटे राज्यों के रूप में अलग हुए उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ इस राज्य से कहीं आगे निकल जायेंगे।