दिग्विजय सिंह के नाम से थर्रा उठते थे अंग्रेज
राजधानी के महोना ताल्लुक स्थित उमरिया गांव(उमरगढ़) किले में राजा दिग्विजय सिंह रहा करते थे। गांव के लोग आज भी लोकगीतों के माध्यम से उन्हें याद करते हैं। राजा दिग्विजय सिंह पर चलाए गए मुकदमें बताते हैं कि किस प्रकार उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया और मडिय़ांव व चिनहट इलाके में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को हिन्दुस्तानी खून की गर्मी का अहसास करा दिया।
वैसे तो लखनऊ का नाम इतिहास में कई मायनों में अमर है और हमेशा लोग लखनऊ के इतिहास को याद करते रहेंगे लेकिन आजादी की लड़ाई में भी लखनऊ की क्रांति में भी लखनऊ किसी से पीछे नहीं था। चाहे बेगम हजरत महल का बलिदान हो या फिर राजा दिग्विजय ङ्क्षसह अंग्रेजों को कइयों से मुकाबला करना पड़ा। इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि 22 मई 1857 का वह दिन था जब राजा दिग्विजय सिंह अपनी लगान की किश्त जमा करने कुर्सी तहसील गए हुए थे।
जैसे ही उन्हें दिल्ली क्रांति की जानकारी मिली वह उमरगढ़ किले वापस लौट गए। उन्हें अहसास हो चुका था कि अब अंग्रेज अधिक समय तक देश में टिक नहीं पाएंगे। वह अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने लगे। आखिरकार वह दिन आ ही गया जब 29 मई 1857 को मडिय़ांव छावनी में सैनिकों ने विद्रोह किया और राजा दिग्विजय सिंह को अंग्रेजों से टकराने का मौका मिल गया।
उन्होंने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया। एक जुलाई 1857 में वह रेजीडेंसी की लड़ाई में शामिल हुए। उन्होंने अपनी दो तोपों और चार सौ सैनिकों के साथ लोहे के पुलिस के पास रेजीडेंसी की मोर्चाबंदी की। रेजीडेंसी के एक कमरे में अवध के चीफ कमिश्नर हेनरी लारेंस बैठे थे गोलाबारी हुई और राजा की तोप से निकला हुआ एक गोली लांरेस के कमरे में जा गिरा कुछ ही देर बाद गोला फट गया जिससे 4 जुलाई को चीफ कमिश्नर की मौत हो गयी। फ्रीडम स्ट्रगल इन यूपी खण्ड-2 में प्रकाशित डिप्टी कमिश्नर की रिपोर्ट में राजा ने आठ मई 1858 को महोना थाना फूंक दिया था।
थाना फूंकने के बाद राजा ने तहसील कुर्सी पर कब्जा कर लिया था। 18 मार्च 1859 को गवर्नर जनरल के विदेश सचिव ने चीफ कमिश्नर अवध को एक पत्र भेजो जिसमें 50 क्रांतिकारियों के नाम थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर रखा था इस सूची में चौदहवें नम्बर पर नाम था राजा दिग्विजय सिंह का।
इसके बाद अंग्रेजी सिपाही राजा को खोजने लगे। राजा की गिरफ्तारी भी एक भारतीय गद्दार के करतूत का नतीजा थी। जनवरी 1865 में भरीगहना निवासी शत्रोहन ने विश्वासघात करते हुए अंग्रेजों के हाथा राजा को गिरफ्तार करवा दिया। शत्रोहन कोई और नहीं राजा के घर में खाना पकाने वाला रसोइया था। राजा के ऊपर मुकदमें चले और 24 अक्टूबर 1865 को जूडिशियल कमिश्नर अवध ने काला पानी की सजा दे दी जहां बाद में उनकी मौत हो गयी।