प्रणब मुखर्जी फिर बने मनमोहन सिंह के बॉस
किसी जमाने में मनमोहन सिंह के बास प्रणब मुखर्जी हुआ करते थे और कांग्रेस के नेता भी इस बात को मानते हैं कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के ऊपर ज्यादा मनमोहन सिंह का नहीं चलता था। वे किसी की नहीं सुनते थे। वक्त बदला मनमोहन पीएम बन गए। प्रणब को उनके अंडर काम करना पड़ा। लेकिन लगता है किस्मत को यह मंजूर नहीं था। प्रणब को ऊपर बैठना ही थी और वे एक बार फिर बास बन गए।
प्रणब 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। 1984 में, यूरोमनी पत्रिका के एक सर्वेक्षण में उनका विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में मूल्यांकन किया गया। संयोग की बात है कि वित्त मंत्री के रूप में प्रणब के कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। वे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी की समर्थक मंडली के षड्यंत्र के शिकार हो गए। उन्हें पार्टी से उन्हें निकाल दिया गया था और उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दलराष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया। 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद उसका कांग्रेस पार्टी में विलय हो गया। एक बार फिर प्रणब रंगत में आ गए। पी.वी. नरसिंह राव ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के तौर पर नियुक्त करने का फैसला किया। उन्होंने राव के मंत्रिमंडल में 1995 से 1996 तक पहली बार विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया। 1997 में उन्हें उत्कृष्ट सांसद चुना गया।
लोकसभा चुनाव के बाद सोनिया ने पीएम बनने से इनकार कर दिया तो प्रणब का दावा मजबूत था। लेकिन मनमोहन बाजी मार ले गए। वही मनमोहन जब रिजर्व बैकं के गवर्नर थे तो प्रणब उनके बास हुआ करते थे। मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में प्रणब भारत के वित्त मंत्री बने, जिस पद पर वे पहले 1980 के दशक में काम कर चुके थे। बहरहाल प्रणब लंबे समय तक अपने मताहत के नीचे काम करते रहे। 2012 में अचानक एक बार फिर किस्मत ने पलटा खाया। एक बार फिर वे मनमोहन के बॉस बन गए हैं, भले ही तकनीकी रुप से ही सही।