पिघल नहीं, बल्कि बढ़ रहे हैं हिमालय के ग्लेशियर
फ्रांस की एक टीम ने उपग्रह से प्राप्त चित्रों की मदद से ये पता लगाया है कि इन ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग का कोई असर नहीं पड़ा है। बढ़ते तापमान की वजह से दुनिया के दूसरे इलाकों में पहाड़ों पर बर्फ पिघली है लेकिन कराकोरम क्षेत्र इसका अपवाद है।. लेकिन इसकी वजहें अभी स्पष्ट नहीं है। फ्राँस के वैज्ञानिक 3-डी उपग्रह तस्वीरों के जरिए 2000 और 2008 के नक्शों की तुलना करते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि इस दौरान ग्लेशियर की बर्फ में कोई कमी नहीं आई है बल्कि वहाँ 0.11 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से बर्फ बढ़ी ही है। हालांकि नास के सेटेलाइट से कुछ दिन पहले यह पता चला था कि ग्लेशियर की स्थिति उतनी भयावह नहीं है जितना हम सोच रहे हैं। अब साफ हो गया है कि स्थिति बेहतर ही हुई है।
इससे पहले के अध्ययनों में कहा गया था कि काराकोरम ग्लेशियर भी इस इलाके के बाकी ग्लेशियरों की तरह ही पिघल रहा है और इसके चलते समुद्र में पानी का स्तर को बढ़ जाएगा।यह बताया गया था कि बढ़ते तापमान का भारतीय ग्लेशियरों पर बुरा असर पड़ रहा है और अगर ग्लेशियरों के पिघलने की यही रफ्तार रही तो हिमालय के ग्लेशियर 2035 तक गायब हो जाएंगे। अध्ययन में पाया गया था कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बहुत तेज है।
शोधकर्ताओं का कहना था कि कश्मीर में कोल्हाई ग्लेशियर पिछले साल 20 मीटर से अधिक पिघल गया है जबकि दूसरा छोटा ग्लेशियर पूरी तरह से लुप्त हो गया है। हालांकि वैज्ञानिकों ने आगाह किया कि इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि पूरे विश्व में बढ़ते तापमान की समस्या कम हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग का खतरा पूरी तरह कायम है।
पर्वतों के विकास पर काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था आइसीमोड में रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञ प्रदीप मूल कहते हैं पश्चिम हिमालय में कराकोरम रेंज में 20000 वर्ग किलोमीटर में फैले ग्लेशियरों पर दुनिया की तीन फीसदी बर्फ है।