संगमा की दावेदारी बढाएगी चुनौती
शुक्रवार को यूपीए द्वारा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के बाद सरकार को लग रहा है कि अब उसने मैदान मार दिया है तो ऐसा नहीं है अभी भी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी है पर यह चुनौती तभी खड़ी होगी जब सियासी समीकरण कुछ पीए संगमा के पक्ष में बनते दिखे। वैसे बीजू जनता दल और अन्ना द्रमुख जैसी पार्टियों ने संगमा को मैदान में उतारकर कांग्रेस को भले ही सीधे चुनौती न दी हो पर यदि भाजपा ने भी ऐसा मूड कर लिया तो सरकार को एक महीने तक तंग करने के लिए उसके पास एक अच्छा विकल्प मिल सकता है साथ ही भाजपा को पूर्वोत्तर में जमने के लिए भी रास्ता खुल जाएगा।
आपको बता दें कि प्रणब की उम्मीदवारी के बाद खुद मीडिया से मुखातिब संगमा ने कहा कि वह आदिवासी समाज के प्रतिनिधि के तौर पर राष्ट्रपति चुनाव में उतरे हैं। लिहाजा मैदान से हटने का सवाल नहीं है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के चुनाव मैदान में उतरने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर भी संगमा का कहना था, इससे मेरी दावेदारी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं हर हाल में चुनाव लड़ूंगा। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता अपनी पार्टी अन्नाद्रमुक और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बीजेडी की ओर से संगमा की उम्मीदवारी को समर्थन जाहिर कर चुके हैं। इसलिए वे चुनाव लड़ेंगे ही लड़ेंगे।
पर अभी तक एनडीए ने अपना पत्ता नहीं खोला है। चूंकि वह संप्रग के उम्मीदवार की घोषणा के इंतजार में था इसलिए अब देखना है कि एनडीए किसे अपना उम्मीदवार बनाता है यदि कलाम चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं होते तो संभव है कि भाजपा पीए संगमा को उम्मीदवार बना कर राजनीतिक बढ़त हासिल कर सकती है।
हालांकि उपराष्ट्रपति पर वह सरकार से समझौता के लिए भी उसके पास एक विकल्प है पर यह अभी दूर की कौड़ी है पर यदि संगमा को भाजपा ने ही सिर्फ उम्मीदवार बना दिया तो राष्ट्रपति चुनाव एक बार फिर अधर में लटक जाएगा और इससे कांग्रेस को भले ही कोई बढ़त न मिले पर भाजपा को पूर्वोत्तर में जरूर लाभ मिल सकता है, पर इसका पूरा दारोमदार लालकृष्ण आडवाणी और नितिन गड़करी पर टिका है कि वे क्या निर्णय लेते हैं।