राष्ट्रपति नहीं रबर स्टैम्प खोज रहे हैं देश के नेता
काश अन्ना हजारे इस बात पर विचार कर पाते कि इस देश में राष्ट्रपति की बात जब नेता नहीं सुन पाते हैं तो भ्रष्टाचार की जंग में उनकी बात कौन सुनेगा। खैर राष्ट्रपति की लाचारी के पीछे कारण आपको पता हैं। भाई-बहन कहकर हर दिन बलात्कार, लडकियों को अगवा करवाना देश की शान बनती जा रही है। देश में समरसता से ज्यादा इस बात का ख्याल रखा जा रहा है कि प्रतिशत के आधार पर अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जाति कि जनसंख्या को आरक्षण दिया जाये। धर्म, जाति और क्षेत्रवाद तेजी से फलफूल रहा है। हर बार सरकार को कोसा जाता है, क्या राष्ट्रपति इन सबको कंट्रोल नहीं कर सकता? कर सकता है, जरूर कर सकता है। संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति के हाथ में सरकार का रिमोट कंट्रोल होता है। हमारे नेता ऐसा राष्ट्रपति खोज रहे हैं, जिसके हाथ में रिमोट तो होगा, लेकिन वो बटन नहीं दबा सकेगा।
पिछले 20 वर्षों में क्या देश में कोई भी राष्ट्रपति ऐसा हुआ है जिसने जनमानस पर अपनी छाप छोड़ी हो। या लोगो में उनके नाम को लेकर कोई उत्साह हो? यह पद शादी के उस गौर-गणेश की तरह है, जिसको गोबर से बना कर सिर्फ रख दिया जाता है। इसके लिए न तो कोई परेशान होता है और न ही कोई प्रयास करता दिखाई देता है।
कहां-कहां होता है राष्ट्रपति पद का उपयोग
राष्ट्रपति पद का उपयोग अगर यह देश सबसे ज्यादा कर पाया है तो वह है देश के कुख्यात अपराधियों को फांसी से बचाने के लिए, जिसमे संविधान के अनुच्छेद 72 में क्षमा याचना की जाती है। आपको शायद ही पता हो की वर्तमान राष्ट्रपति ने अभी 30 अपराधियो को प्राण क्षमादान किया है और वर्षों तक वादियों और न्यालायाय की मेहनत के बाद देश के प्रथम व्यक्ति ने उन्हें क्षमा कर दिया।
इसलिए देश इस पद पर ऐसे व्यक्ति को बैठाना चाहता है जो अतंकवादियो, राष्ट्र के हितो के दुश्मन को क्षमा प्रदान कर सके और उनके मानवाधिकारों की रक्षा कर सके। क्या देश ने राष्ट्रपति को सामान्य जनता के लिए इतना मजबूत क्षमादान करने का अधिकार दिया है? क्या आपको लगता है कि क्षमादान के प्रयोग के प्रकाश में राष्ट्रपति का पद रबर स्टाम्प कहा जाना चाहिए?
युवाओं को क्यों नहीं देते मौका?
यानि इस देश में प्रजातांत्रिक रूप से युवाओं को कभी मौका नहीं मिलता है। राजशाही परम्परा के अवशेष में यवा को राजनीति में देखा जा सकता है पर आज तक किसी राजनितिक परिवार ने अपने घर के किसी युवा को राष्ट्रपति बनाना चाहा हो यानी उनकी नजर में राष्ट्रपति बनना एक व्यर्थ का कार्य है। अगर ऐसा नहीं है तो क्या इस देश में आज तक 35 वर्ष का कोई युवा राष्ट्रपति बना, जबकि राष्ट्रपति बनने की न्यूनतम आयु 35 वर्ष है। यहां तक 40, 45, या 50 वर्ष की आयु के राष्ट्रपति नहीं हुए।
इससे यह साफ है कि देश में उर्जावान व्यक्ति का राष्ट्रपति बनाना निषेध है। हर बार क्यों नेता अपने बीच में ही से राष्ट्रपति ढूंढते हैं? क्यों नही देश की जनता से कोई राष्ट्रपति बनता है? हमारे नेता टीएन शेषण को राष्ट्रपति बनाना नहीं चाहते, अन्ना हजारे या किरण बेदी का नाम क्यों नहीं प्रस्तावित करते? क्यों नहीं देश के सख्त आईएएस या पूर्व आईएएस/आईपीएस का नाम आगे लाते हैं? उत्तर सिर्फ एक है- देश के नेता नहीं चाहते कि उनके ऊपर कोई राज कर सके।
प्रणब और मनमोहन के पीछे क्यों पड़े नेता
नेताओं को तो अब ये भी अखर रहा है कि प्रणव मुखर्जी के रहते राहुल गांधी का प्रधानमंत्री बनना कठिन है। इसलिए उनके राजनितिक जीवन को राष्ट्रपति बना कर खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। मनमोहन सिंह का नाम भी इसीलिए उछाला गया। भारत में राष्ट्रपति राजनितिक सन्यास कि अवस्था है। इसीलिए न तो मुलायम सिंह राष्ट्रपति बनना चाहते हैं और ना ही मायावती।
मैं एक यक्ष प्रश्न देश के नेताओ से पूछना चाहता हूँ की वे किसी युवा को राष्ट्रपति क्यों नहीं बनाते? क्या एक राष्ट्रपति का उपयोग क्षमा दान के अलवा यानी राष्ट्र को बनाने के लिए नहीं किया जा सकता? अगर नहीं तो वैज्ञानिक सोच वाले कलाम साहब को सर्वसम्मति से क्यों नहीं प्रथम नागरिक बनाते।
लेखक परिचय- डा. आलोक चांटिया, अखिल भारतीय अधिकार संगठन के अध्यक्ष, श्री जयनारायण पीजी कॉलेज, लखनऊ के शिक्षक एवं इग्नू के काउंसिलर हैं।