शहीद भगत सिंह को अंग्रेजों से छिपा कर रखा था मल्लिका के परदादा ने
चंडीगढ़। स्वतंत्रता सेनानी व बॉलीवुड अभिनेत्री मल्लिका शेरावत के परदादा चौधरी छाजूराम लांबा की प्रतिमा का अनावरण भिवानी में राजीव गांधी महिला महाविद्यालय के निकट 3 जून को पूर्व मुख्यमंत्री चौ. हुकम सिंह करेंगे।
अखिल
भारतीय
जाट
आरक्षण
संघर्ष
समिति
के
प्रदेशाध्यक्ष
पूर्व
कमांडेंट
हवासिंह
सांगवान
ने
इस
बारे
में
जानकारी
देते
हुए
बताया
कि
आजादी
के
आंदोलन
के
दौरान
शहीद
भगत
सिंह
को
तीन
माह
तक
कलकत्ता
स्थित
अपने
घर
में
अंग्रेज
पुलिस
से
छिपाकर
रखने
तथा
अकाल
के
समय
सन्
1928
में
व
समय-समय
पर
गरीबों
की
मदद
करने
वाले
दानवीर
चौधरी
छाजूराम
लांबा
की
भिवानी
में
प्रतिमा
लगाई
जाएगी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपतराय जैसे आजादी के मतवालों को आर्थिकसहायता देने वाले छाजूराम लांबा को सेठ छाजूराम कहा गया। बहुत कम लोग जानते हैं कि सेठ छाजूराम जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री मल्लिका शेरावत के सगे परदादा थे।
चौ. छाजूराम के बारे में बताते हुए सांगवाल ले कहा कि वे न केवल दानवीर थे, बल्कि महान देशभक्त भी थे। देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए उन्होंने न केवल जी खोलकर पैसा ही दिया वहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस जब आजादी की लड़ाई के लिए देश छोड़कर जर्मनी व जापान गए तो उन्होंने उन्हें आर्थिक सहायता दी थी। इसके अतिरिक्त भिवानी के लिए उन्होंने अपने समय में बहुत से कल्याणकारी कार्य किए, जिसमें अस्पताल, धर्मशाला, स्कूल व गौशालाओं के अतिरिक्त, सन 1928 में सूखा पडऩे पर लोगों को पानी पीने के लिए लाखों रूपए से अनेक कुएं व बावडिय़ां बनवाईं।
सांगवान ने बताया कि ऐसे महापुरूष की स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति ने प्रतिमा स्थापना का यह एक प्रयास किया है। भिवानी जिले के गांव अलखपुरा में 1861 में जन्मे चौ. छाजूराम को इतिहासकारों ने हरिश्चंद्र, दधिची, कुबेर, भामाशाह, दानवीर कर्ण और भारत का कोहिनूर हीरे की संज्ञा दी है।
उन्होंने गुरूकुल जांगड़, कन्या गुरूकुल कंथल, गुरूकुल वृंदावन, आर्य समाज कलकत्ता, डी. एवी कालेज लाहौर, इंडिया डिफैंस फंड समेत अनेक संस्थाओं को हजारों से लेकर लाखों रूपए दान दिए थे। आजादी के आंदोलन के लिए स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय चौ. छाजूराम के पास 200 रूपये लेने गए थे,परंतु छाजूराम ने उस वक्त की बड़ी रकम मानी जाने वाली 2000 रूपए की आहूति डाली थी। इन्होंने हिसार व अन्य स्थानों पर कई शिक्षण संस्थाएं भी शुरू की जो आज भी उनकी दानवीरता को बयां करती हैं।