केकेआर ने बढ़ाया ममता का पॉलिटिकल माइलेज
"करबो लड़बो जीतबो रे" के शोर और लाखों की भीड़ के साथ आईपीएल 5 की विजेता कोलकाता नाइट राइडर्स ने कोलकाता की सड़कों पर विजय जुलूस निकाला। केकेआर के खिलाड़ियों सहित मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी खुली बस में सवार होकर लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। केकेआर की जीत का जश्न इस कदर मनाया गया मानो टीम विश्वकप जीत कर आई हो। मगर सरकारी पैसों से जीत का जश्न मनाना कहां तक सही था? क्या क्रिकेट के जश्न में ममता ने राजनीति का मास्टर स्ट्रोक लगाया या फिर विजय जुलूस की आड़ में ममता ने अपनी पॉलिटिकल माइलेज सुधार ली?
ये तमाम बाते हैं जो इस जश्न के बाद से चर्चा में हैं। राजनीतिक कानाफूसी को थोड़ी देर के लिये दरकिनार कर जश्न की बात करते हैं। केकेआर सोमवार को जैसे ही कोलकाता पहुंची उसका भव्य स्वागत किया गया। रातो रात इस जश्न को सड़क पर लाने की कवायद शुरु हो गई और अंतत: ममता ने इसे हरी झंडी देकर खुद सम्मान समारोह में शामिल होने की बात कह दी। रातो-रात राइटर्स बिल्डिंग और इडेन गार्डेन को सजा दिया गया और ममता के साथ केकेआर के खिलाड़ियों के लिये एक स्टेज भी तैयार कर दिया गया।
सीधे शब्दों में कहें तो इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के पांचवें संस्करण में कोलकाता नाइट राइडर्स की जीत एक घरेलू प्रतियोगिता में जीत का छोटा सा मामला था, लेकिन ममता की मौजूदगी ने इसे एक बड़ा अवसर बना दिया। पश्चिम बंगाल सरकार का सरकारी अमला स्टेडियम में मौजूद था। सम्मान समारोह में कई वरिष्ठ मंत्रियों सहित राज्यपाल और रेल मंत्री मुकुल रॉय भी मौजूद थे।
केकेआर के प्रशंसकों से भरे ईडन गार्डन में मूल रुप से दिल्ली के रहने वाले गौतम गंभीर ने वहां मौजूद लोगों की खुशी को दो गुना कर दिया, जब उन्होंने कहा, "आमि कोलकातार छेले" (मैं कोलकाता का बेटा हूं)। ये सब तो उस जश्न समारोह की एक झलकियां थी मगर बैक स्टेज ममता ने अपनी राजनीतिक पहलुओं को भुना लिया। ममता ने एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह जीत के इस जश्न को राजनीतिक जश्न में तब्दील कर दिया। सबसे हैरत तो उस समय हुई जब ममता ने खिलाड़ियों सहित शाहरुख खान और जूही चावला को गोल्ड मेडल दिया।
आपको याद दिला दें कि कोलकाता ने जब जीत हासिल की थी तो एक प्रेस कांफ्रेस में ममता ने कहा था कि ‘ हम गरीब राज्य हैं और हम प्यार और शुभकामनाओं के अलावा क्या दे सकते हैं’। ममता ने कहा था कि वह खिलाड़ियों को मिठाई खिलाएंगी ताकि जीत की मिठास बरकरार रहे। अब ऐसे में यह सवाल उठता हैं कि जो राज्य सरकार, केंद्र से पैकेज मांगती रहती है वो इस तरह का सत्कार कैसे कर सकती है? सवाल यह भी उठता है कि केकेआर की जीत के बाद क्या ममता ने इस जश्न की भूमिका पहले ही तैयार कर ली थी? या फिर जीत के जश्न को राजनीतिक जश्न में बदल सकने की संभावना भांप ममता ने ऐसा मास्टर स्ट्रोक लगाया जिससे उनकी पॉलिटिकल माइलेज में सुधार आ जाये।
जीत के इस जश्न में राजनीतिक फ्लेवर के बाद कुछ ऐसे सवाल उठने लगे हैं, जिसके जबाव की उम्मीद हमें आपसे है। सवाल यह है कि क्या जीत का जश्न इस स्तर तक मनाना सही था? क्या ममता ने इस जश्न का इस्तेमाल अपनी पॉलिटिकल माइलेज सुधारने के लिये किया है? आप अपने कीमती सुझाव नीचे दिये गये कमेंट बाक्स में लिख सकते हैं। हमें आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।