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किताबें छोड़ टैबलेट बने युवाओं के साथी

By Ajay Mohan
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Books
एक फ्रांसिसी दार्शनिक ने म्रत्यु शैया पर कहा था, ‘जो कुछ हम जानते हैं वह बहुत थोड़ा है, जो नहीं जानते वह बहुत अधिक है।‘ किताबों की दुनिया हमारे लिए उस अजाने संसार के दरवाजे खोलती है, जिसे हम एक जीवन में प्राप्त नहीं कर सकते। प्रत्येक विद्धान, मनीषी यही कहता है कि मैं तो एक विद्यार्थी मात्र हूं। किताबें ही यह विनम्रता का बोध पैदा करती हैं और मनुष्य को महामानव बनाती हैं।

बीत रहे हैं दिन सतरंगी केवल ख्वाबों में, चलो मुश्किलें का हल ढूंढे खुली किताबों में। कुछ ऐसी ही होती है किताबें जो कभी ज्ञान बढ़ाती है तो कभी सच्ची मार्गदर्शक बनकर मुश्किलों का हल ढूंढती है। पढ़ना किसे अच्छा नहीं लगता। बचपन में स्कूल से आरंभ हुई पढाई जीवन के अंत तक चलती है। व्यस्त होती जिंदगी में लोग खास तौर पर युवा, किताबों के बजाय कंप्यूटर और टेबलेट को साथी मानने लगे हैं। जो ज्ञान उन्हें नई किताब की खुशबू से मिलती थी उसे अब कंप्यूटर के रंग बिरंगी अक्षरों में ढूंढते हैं।

पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं। बल्कि कला, संस्कृति और लोक जीवन की सभ्यताओं से भी अवगत कराती हैं। ऐसे में पुस्तकों के प्रति लोगों में रुचि उत्पन्न करने के लिए ही 23 अप्रैल को को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

एमएमएच डिग्री कालेज के पुस्तकालयाध्यक्ष डा. एसबी कुलश्रेष्ठ का कहना है कि पुस्तकालय में लगभग डेढ़ लाख पुस्तकें हैं। युवा वर्ग मोबाइल, इंटरनेट पर भले ही समय व्यतीत करें। गहन जानकारी तो किताबों से ही मिलती है। साहित्यकार अरुण सागर का मानना है कि बेशक आज के युवा आधुनिक हैं, फिर भी उनके हाथों में किताबों का अपना अलग महत्व है।

यूनेस्को ने 1995 में 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। धीरे-धीरे यह हर देश में व्यापक होता चला गया। आज के समय में इस दिवस की अहमियत और बढ़ गई है। इस दिन को कॉपीराइट डे के रूप में भी मनाया जाता है।

हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार निर्मल वर्मा ने कुछ ऐसे बयां किया था, किताब बिना कुछ बोले, चुपचाप आसपास की जिंदगी से हमारा रिश्ता बदल देती है। किताब पढ़ने के बाद मैं वैसा नहीं रहता हूं, जैसा कि किताब पढ़ने से पहले था और न ही दुनिया पहले जैसी रह जाती है, कुछ कहीं न कहीं बदल जाता है।

इंग्लैंड की प्रसिद्ध लेखिका वर्जीनिया वुल्फ ने एक उपन्यास में लिखा है, मरने पर जब पुस्तक प्रेमी सेंट पीटर के पास गये, तो उन्होंने पूछा कि इन लोगों ने जीवन में क्या-क्या काम किये हैं? इन्हें स्वर्ग में भेजें यानरक में? उन्होंने यह भी पूछा कि ये लोग कौन हैं, जो किताबों का गट्ठर उठाये हुए चले आ रहे हैं? जब सेंट पीटर को यह बताया गया कि ये किताबों के भक्त हैं, तो उन्होंने कहा- इनसे कुछ मत पूछो- इन्होंने वो पा लिया है, जो स्वर्ग इन्हें दे सकता था।

कुल मिलाकर देखा जाये तो अगर लोग सोचते हैं कि आने वाले समय में किताबों का कोई मोल नहीं रह जायेगा, तो वो गलत हैं, क्‍योंकि कंप्‍यूटर, टैबलेट और लैपटॉप ज्ञान के सागर को संजो कर तो रख सकते हैं, लेकिन मनुष्‍य के दिमाग से जितने अच्‍छे तार किताबें जोड़ सकती हैं, ये वस्‍तुएं नहीं जोड़ सकतीं।

लेखक परिचय- जूही पांडेय, बी.सी.ए., चतुर्थ सेमेस्टर, ए.बी.आर.पी.जी. कॉलेज की छात्रा हैं, उत्‍तर प्रदेश के अनपरा, सोनभद्र की रहने वाली हैं व लिखने का शौक रखती हैं।

यदि आप भी लिखने का शौक रखते हैं तो मेल करें [email protected] पर।

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English summary
Here is an article by Juhi Pandey which is telling story of books in the era of Computers and Laptops.
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