ऐसी जगह जहां लोगों के बीच होता है भयानक अग्नियुद्ध
अंधविश्वास का भूत सवार होने के बाद इस चकाचौध भरी दुनिया में भी कुछ दिखाई नहीं देता। दिल दहला देने वाली आग भी लोगो को लुभावनी और खेलने की चीज लगने लगती है। अब भला इस आग को क्या नाम दिया जाए, इसे खतरा कहे, लापहरवाही या फिर अंधविश्वास। सवाल यह उठता है कि आग से क्यो लोग इस तरह खेल रहे है?
कहते है कि मन मे आस्था हो तो जान की भी कोई परवाह नहीं होती। यह बात एक बार फिर मैंगलोर में शाबित हुई है जहा दर्जनों लोग देवी मां दुर्गा को खुश करने के लिए एक दूसरे पर जलती हुए मिशानलों से हमला करते हैं।
अब आपको बताते चले कि क्या है ये परंपरा और इसके पीछे क्या तर्क दिये जाते है? मैंगलूर से 30 किमी दूर मंदिरो का शहर कटीर, यही पर है मशहूर दुर्गा परमेश्वरी मंदिर। इस मंदिर को सैकड़ो साल पुराना बताया जाता है और यहा दूर-दूर से लोग देवी की उपासना के लिए आते है। यहा पर देवी को खुश करने की अजीबो गरीब परंपरा निभाई जाती है। ऐसा बताया जाता है कि इस खेल को सदियों से खेला जाता है।
ऐसी मान्यता है कि अग्नि युद्ध का खेल खेलने से देवी प्रसन्न होती है। स्थानीय भाषा में इस परंपरा को अग्निकेली कहा जाता है। गाजे बाजे के साथ इस परंपरा की शुरूआत होती है और इसमें इस्तेमाल होने वाली मशाल भी खास होती है। नारियल के रेशे से इस मशाल को तैयार किया जाता है।
पिछले शनिवार को दुर्गा परमेश्वरी मंदिर में जब इस पर्व का आयोजन हुआ तो 2 गावों के लगभग 400 लोग यहां इक्टठा हुए। स्थानीय लोगो के द्वारा ऐसा बताया जाता है कि इस खेल को केवल दो गावों के लोग ही खेलते है, और एक दूसरे पर ऊपर आग से हमला करते है। आठ दिन के इस परंपरा का आयोजन हर साल किया जाता है। इसके अंतिम दिन टूटे धारी की रश्में निभाई जाती है और एक दूसरे के ऊपर आग का गोला फेंका जाता है।
मंदिर के पुजारी का कहना है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है, और सिर्फ कोदेथुर और अथूर गाव के लोग इसमें शामिल होते है। इस भयानक अग्नि खेल के पीछे दुर्गा जी को प्रसन्न करने का तर्क दिया जाता है्। इसमें वहीं आदमी भाग लेते है जो आर्थिक या शारीरिक किसी परेशानी में होते है। यह अग्नि उत्सव आठ दिनों तक चलता है। इस दौरान यहां पर मांस और मदिरा का सेवन एकदम बंद हो जाता है।