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चिट्ठी ना कोई संदेश...कहां तुम चले गए

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UP Leaders
अंकुर कुमार श्रीवास्‍तव
"चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गये... इस दिल पे लगा के ठेस, कहां तुम चले गये"। मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह की यह गजल यूं तो देश के सभी लोगों की जुबान पर है मगर उत्‍तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने के बाद वहां के लोग इन पक्तियों को गुनगुनाने लगे हैं। कारण बिल्‍कुल साफ है, और वो यह है कि चुनाव के दौरान सूबे में ताल ठोक रहे राजनेताओं का ना तो कोई संदेश है और ना ही उनका कोई पता किसी को यहां तक भी नहीं मालूम कि वह अपनी हार का गम किसके साथ और किस हालात में बांट रहे हैं।

इस पूरे मसले में अगर सबसे पहले किसी का नाम आता है तो वह हैं कांग्रेस के राष्‍ट्रीय म‍हासचिव और यूपी फतेह का जिम्‍मा लेने वाले राहुल गांधी। विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी का शायद ही कोई ऐसा जिला होगा जहां राहुल ने जनसभा ना किया हो। मगर हार के बाद उनका कोई पता नहीं है। शायद हार से वह इस कदर टूट चुके हैं कि अपनों के बीच आने की हिम्‍मत नहीं जुटा पा रहे।

आपको बताते चलें कि यूपी चुनाव का परिणाम जिस दिन आया था उस दिन राहुल ने मीडिया के सामने कहा था कि जबतक यूपी में कांग्रेस की सरकार नहीं आती मैं यहां आता रहूंगा और लोगों से ऐसे ही मिलता रहूंगा। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो वह दिल्ली में बैठकर हार के कारणों और उत्तर प्रदेश में संगठन की कमजोरी पर मंथन कर रहे हैं, ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़े नुकसान से बचाया जा सके।

राहुल के बाद अगर किसी का नाम आता है तो व‍ह है भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती। विधानसभा चुनाव के दौरान उमा ने ताबड़तोड़ 200 से ज्यादा जनसभाएं की थीं। उमा शायद इसलिए भी उत्साहित थीं कि उन्हें इस बात का अहसास था कि पार्टी कमाल कर गई तो उत्तर प्रदेश में पार्टी की जिम्मेदारी सौंपे जाने के बाद अब मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे ज्यादा दूर नहीं है। चुनाव बीते 20 से ज्‍यादा दिन गुजर चुके हैं, पार्टी चिंतन बैठक कर हार के कारणों को तलाशने में लगी है। मगर उमा भारती किस कोने में गम भूला रही हैं यह खुद पार्टी नेताओं को भी नहीं पता। ऐसा ही हाल भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष नितिन गड़करी का भी है।

खैर यह तो बात रही दो नेशनल पार्टियों की मगर इनके बीच यूपी चुनाव में दो और बड़े नेता थे जिन्‍होंने वादे तो बड़े-बड़े किये मगर नतीजा सिफर रहा। राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के संरक्षक कल्याण सिंह और राष्ट्रीय लोकमंच के संरक्षक अमर सिंह के सामने तो अब अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। दोनों नेताओं के लिए तब यही कहा जा रहा था कि माया मिली न राम (मुलायम)।

कल्याण इस गम में डूबे हुए हैं कि उनकी पार्टी को इस चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। और तो और, अपनी बहू प्रेमलता और बेटे राजवीर की हार भी वह नहीं टाल पाए। सूत्रों की मानें तो कल्‍याण इस समय इस बात पर मंथन कर रहे हैं कि 300 से अधिक सीटों पर लड़ने वाली पार्टी को आखिर एक भी सीट क्यों नहीं मिली। बात अब एसपी से खफा अमर सिंह की। उनकी हालत भी भीगी बिल्ली वाली हो गई है। आजम खान को हराने का सपना पालने वाले अमर सिंह इस समय क्या कर रहे हैं, किसी को पता नहीं।

बसपा सुप्रीमो मायावती की तो बात ही निराली है। दलितों की मसीहा मानी जाने वाली मायावती के दिल में दलितों के प्रति प्यार शायद कुर्सी पाने तक ही रहता है। सत्ता हाथ से खिसकने के बाद प्रदेश के दलितों को उनके हाल पर छोड़कर खुद दिल्ली चली जाती हैं। मायावती का इतिहास यही रहा है कि वह विधानसभा में कभी भी विपक्ष की नेता के रूप में बैठना पसंद नहीं करती हैं।

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English summary
After the UP Assembly Elections there is no news of prominent campaigners of all the loosing parties. People don't know where is Rahul Gandhi, Uma Bharti, Mayawati, Kalyan Singh, etc.
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