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तपति गर्मी में भी हिमालय पर जमी है बर्फ

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Snow Fall
दिल्ली (ब्यूरो)। इस साल पूरी दुनिया में भीषण ठंड पड़ी। मार्च का महीना खत्म होनेवाला है। लेकिन हिमालय पर बर्फ की चादर जमी हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे इस साल मैदानी इलाकों में अच्छा मानसून रहेगा। खासकर सेब और अन्य फलदार फसलों के लिए यह मौसम वरदान माना जा रहा है।

इस साल मार्च मध्य तक हिमालय में बर्फ की मोटी चादर जमी हुई है। हिमाचल के रोहतांग दर्रे में 25-30 फीट ऊंची बर्फ की मोटी चादर पिघलने का नाम नहीं ले रहीं हैं और जो ग्लेशियर पिछले कई सालों से पिघल रहे थे वह भी बर्फ से पटने लगे हैं। लेह, लद्दाख और लाहौल स्पीति में कम बर्फबारी के बावजूद बर्फ की इतनी मोटी परत बन गई है कि ग्लेशियरों को सुरक्षा कवच मिल गया है। यहां तक कि देश के बड़े वैज्ञानिक कहने लगे हैं कि हिमालय पट्टी में जो हालात दिख रहे हैं उससे लगता है कि इस साल देश के मैदानी इलाकों में मानसून अच्छा रहेगा और सूखती नदियों को भी प्राणदान मिल जाएगा। यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के वैज्ञानिक प्रोफेसर जिम चैनल ने जनवरी-2012 में ऐलान किया था कि अंटार्कटिका और हिमालय में ग्लोबल वार्मिंग से बर्फ की मोटी चादरें पिघल रही हैं जिनका कई साल तक पुनर्निर्माण नहीं हो सकता है। लेकिन इस वर्ष हिमालय की हकीकत इसके एकदम उलट दिखाई दे रही है। इसी साल फरवरी तक यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के शोधकर्ताओं की भी रिपोर्ट आई कि धरती को ठंडा होने में काफी वक्त लगेगा, लेकिन यूरोप और हिमालय क्षेत्र में जबरदस्त बर्फबारी को देखते हुए भारतीय वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिमालयी ग्लेशियर लंबे समय तक बने रहेंगे।

हिमाचल की लाहौल घाटी में स्थित मैनतोसा ग्लेशियर की वर्ष 1962 से की जा रही मानिटरिंग के आधार पर वैज्ञानिक इसके 1333 मीटर बढ़ने का दावा कर रहे हैं। वहीं पिछले दस साल की मानीटरिंग के आधार पर 72 किलोमीटर लंबे सियाचीन ग्लेशियर, 27 किलोमीटर मयाड़ (हिमाचल) तथा 26 किलोमीटर लंबे जेमू ग्लेशियर (सिक्किम) की स्थिति में किसी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ है। गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार महज 10 मीटर सालाना रह जाना भी पर्यावरण के लिए अच्छी खबर मानी जा रही है। देश के प्रतिष्ठित संस्थानों की ओर से किए गए व्यापक अनुसंधान के आधार पर तैयार यह रिपोर्ट पिछले दिनों भारत सरकार को सौंपी जा चुकी है। सिक्किम ग्लेशियर कमीशन के वरिष्ठ सदस्य और जेएनयू दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. मिलाप शर्मा कहते हैं बेशक ग्लोबल वार्मिंग बढ़ना पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है, लेकिन हिमालयी ग्लेशियरों का वजूद खत्म होने की बातें ठीक नहीं।

हिमालय से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि बर्फबारी से देश के मैदानी इलाकों में फसल चक्र सुधरेगा। खासकर सेब और अन्य फलदार फसलों के लिए यह मौसम वरदान माना जा रहा है। सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि इस साल संभवत: गर्मियों में पेयजल संकट उतना खतरनाक दौर में न पहुंचे जैसा पिछले वर्षों में देखा जाता रहा है। डॉ. कुनियाल ने बताया कि मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में रबी और आने वाले दिनों में खरीफ की फसलों का बेहतर उत्पादन होनेे की पूरी संभावना है। भारतीय मौसम निदेशालय श्रीनगर के निदेशक सोनम लोटस का कहना है कि एक सीजन की बर्फबारी से यह कह पाना ठीक नहीं होगा कि इससे ग्लेशियर बड़े हैं या कम हुए हैं, लेकिन जिस प्रकार से जनवरी और फरवरी माह में सामान्य से ज्यादा बर्फबारी हुई है, उससे फायदा होना तो तय है। लोटस केअनुसार गरमियों और बरसात में होने वाली बारिश का संबंध सर्दियों की बर्फबारी से होता है। अगर सर्दियों में अच्छी बर्फबारी हुई तो उससे अच्छी बारिश की संभावना बढ़ जाती है। मैदानों पर होने वाले असर केबारे में उनका कहना था कि इससे नदियों का जलस्तर अच्छा रहेगा जो कृषि और बिजली केलिए ठीक है।

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English summary
This year the world experienced extremely cold. Month of March is going to end. But on the Himalaya is covered with ice sheet. Scientists believe that it would be a good for monsoon. Especially apples and other fruit crops is believed to be a boon for the season.
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