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यूपीए सरकार के लिए तनाव भरा रहेगा बजट सत्र

By Ajay Mohan
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Pranab Mukherjee
नई दिल्ली। संसद में सोमवार से बजट सत्र शुरू होने जा रहा है, जिसके साथ यूपीए सरकार की धड़कनें तेज हो गई हैं। वो इसलिए क्‍योंकि तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने बगावत के स्‍वर छोड़ दिये हैं। ऐसे में अगर संप्रग के सहयोगी दलों ने साथ छोड़ दिया तो मनमोहन सिंह की सरकार मुसीबत में पड़ सकती है। हालांकि अगर बजट की बात करें तो इस बार आयकर की सीमा बढ़कर 3 लाख तक हो सकती है।

इस बार बजट सत्र में केंद्र सरकार राष्‍ट्रीय आतंकवाद निरोधी केंद्र का प्रस्‍ताव लाने वाली है, जिसका ममता बनर्जी विरोध कर रही हैं। एक तरु जहां यूपी विधानसभा चुनाव के परिणाम इस बजट सत्र की चर्चा को जरूर प्रभावित करेंगे, वहीं दूसरी ओर भाजपा ने सरकार को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है। इस संबंध में रविवार को दिल्‍ली में लाल कृष्‍ण आडवाणी के आवास पर एक बैठक हुई थी।

हम आपको बता दें कि इस सत्र में 14 मार्च को रेल बजट पेश किया जायेगा और आम बजट 2012-13 16 मार्च को पेश किया जायेगा। रेल बजट रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी और आम बजट वित्‍तमंत्री प्रणब मुखर्जी पेश करेंगे।

उधर जनता के बीच सरकारी व निजी कंपनियों के कर्मचारियों को उम्मीद है कि बढ़ती मंहगाई के मद्देनजर वित्त मंत्री आगामी आम बजट में आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर तीन लाख रुपए करेंगे। यह बात ऐसोचैम की एक सर्वेक्षण रपट में कही गयी है। इस सर्वे के आधार पर जारी ऐसोचैम की एक विज्ञप्ति में कहा गया है, इस सर्वेक्षण में शामिल 89 फीसद कर्मचारियों ने कहा कि करमुक्त आय का स्लैब वास्तविक मुद्रास्फीति के मुताबिक नहीं बढ़ा है। इसलिए कर छूट सीमा बढ़ाकर तीन लाख रुपए करने की जरूरत है क्योंकि इससे लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ेगी जिसके फलस्वरूप मांग बढ़ेगी।

फिलहाल आयकर छूट की सीमा 1.80 लाख रुपए है। उद्योग संगठन ने प्रमुख शहरों के विनिर्माण, आईटी-आईटीई, बिजली और एफएमसीजी क्षेत्र के करीब 500 कर्मचारियों का सर्वेक्षण किया। रपट में कहा गया कि छूट की सीमा से लोगों की खर्च करने योग्य आय बढ़ेगी जिससे खर्च और बचत दोनों बढ़ेगी। जनवरी में सकल मुद्रास्फीति 6.55 फीसद थी।

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English summary
The Budget session of Parliament beginning tomorrow portends a tough time for the government against the backdrop of reverses the Congress suffered at the Assembly elections and the possibility of issues like federalism bringing unlikely forces together.
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