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देश की तरक्की का बुरा हाल, विकास दर 6.1 पर पहुंचा

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Economic Growth
दिल्ली (ब्यूरो)। देश की तरक्की का आलम क्या है, यह इसी से समझ सकते हैं कि आर्थिक विकास दर अक्टूबर से दिसंबर 2011 की तिमाही में घटकर 6.1 फीसदी पर पहुंच गई है। यह आंकड़ा सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर ही सरकार बजट और रिजर्व बैंक मार्च में होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा में कदम उठाएगा। पिछले तीन साल में भारत के विकास दर इतना बुरा हाल कभी नहीं था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर तिमाही मे मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर मात्र 0.4 फीसदी रही है और कृषि क्षेत्र पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 2.7 फीसदी बढ़ा है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 7.8 फीसदी और कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 11 फीसदी थी।

यह पिछले करीब तीन सालों (11 तिमाहियों) में किसी भी तिमाही की सबसे कम आर्थिक विकास दर है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की सितंबर तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की विकास दर 6.9 फीसदी और उससे पहले जून तिमाही में 7.7 फीसदी रही थी। आर्थिक विकास दर में आई इस गिरावट की मुख्य वजह इस साल अब रही ऊंची ब्याज दरों और कच्चे माल की बढ़ती लागत को बताया जा रहा है। आर्थिक विकास दर लगातार सात तिमाहियों से नीचे आ रही है। मार्च 2010 में रिजर्व बैंक ने जब से ब्याज दरों को बढ़ाने का सिलसिला शुरू किया है, तभी से जीडीपी के बढ़ने की रफ्तार मद्धिम पड़ गई है। अब सबकी निगाहें 15 मार्च पर टिक गई हैं कि उस दिन मौद्रिक नीति की मध्य-त्रैमासिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ब्याज दरें घटाता है या नहीं। वैसे, बैकिंग सिस्टम में तरलता या लिक्विडिटी का संकट जैसा विकराल हो गया, उसमें तय माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक सीआरआर में कम से कम आधा फीसदी कटौती जरूर करेगा। बैंकों ने रेपो दर पर रिजर्व बैंक 1,79,720 करोड़ रुपए उधार लिए हैं। कल, यह रकम 1,80,645 करोड़ रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर तिमाही मे मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर मात्र 0.4 फीसदी रही है और कृषि क्षेत्र पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 2.7 फीसदी बढ़ा है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की वृद्धि दर बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 7.8 फीसदी और कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 11 फीसदी थी। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आनेवाली तिमाहियों में भी भारत की आर्थिक विकास दर 7 फीसदी के नीचे रह सकती है। परेशानी इस बात से भी होगी कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल कीमतें फिर तेजी से बढ़ रही हैं और भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है। पिछले वित्त वर्ष 2010-11 की दिसंबर तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 8.3 फीसदी थी। ताजा आंकड़ों के चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीने अप्रैल-दिसंबर 2011-12 के दौरान जीडीपी की वृद्धि दर 6.9 फीसदी रही है, जबकि बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 8.1 फीसदी थी। वैसे केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) का त्वरित अनुमान भी पूरे वित्त वर्ष 2011-12 के लिए 6.9 फीसदी का है। हालांकि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का अनुमान 7.1 फीसदी का है।

चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान खनन उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 3.1 फीसदी पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 6.1 फीसदी थी। वहीं कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर 7.2 फीसदी पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 8.7 फीसदी थी। इसके अलावा, व्यापार, होटल, परिवहन और संचार समूह में वृद्धि दर 9.2 फीसदी रही जो बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 9.8 फीसदी थी। हालांकि, बिजली, गैस और जलापूर्ति खंड की वृद्धि दर समीक्षाधीन तिमाही में बढ़कर 9 फीसदी रही जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 3.8 फीसदी थी।

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English summary
The Indian economy expanded at a lower-than expected 6.1% in the three months to December-end, the slowest growth clip in almost three years, intensifying the debate about rate cuts even as concerns about data quality threatened to spoil an already bad picture.
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