सड़क हादसे में यूपी के सीएमओ गंभीर रूप से घायल
यूपी के सीएमओं पर मौत के साये की बात करें तो 27 अक्टूबर 2010 के दिन लखनऊ के सीएमओ डाक्टर विनोद आर्या मॉर्निंग वॉक के लिए निकले थे और गोमती नगर जैसे पॉश इलाके में उन्हें गोलियों से भून दिया गया। इसके कुछ ही महीनों बाद 2 अप्रैल 2011 को फिर यही हुआ। डॉक्टर विनोद आर्या की जगह पर नियुक्त होने वाले डॉक्टर बी पी सिंह को भी ठीक उसी तरह मौत के घाट उतार दिया गया। इस बार भी शहर लखनऊ ही था और इलाका गोमती नगर। डॉक्टर बी पी सिंह पर भी घर के नजदीक टहलते हुए ताबड़तोड़ गोलियां चला दी गईं।
पूरे राज्य में हड़कंप मच गया। देश में अब तक किसी घोटाले की जांच में ऐसा नहीं हुआ था। पुलिस ने इन हत्याओं के लिए अपनी कहानी बुनी और लखनऊ के डिप्टी सीएमओ वाई एस सचान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। लेकिन 5 जून 2011 को डॉक्टर वाई एस सचान की भी जेल में संदिग्ध मौत हो गई। वो बाथरूम की खिड़की से लटकते हुए पाए हए। युपी पुलिस ने पूरी कोशिश ये साबित करने की कि सचान ने खुदकुशी की है लेकिन आखिरकार उसे सचान की हत्या का केस दर्ज करना पड़ा। मेडिकल घोटाले में ये तीसरी हत्या थी।
गिरफ्तारियों और पूछताछ का दौर चल ही रहा था कि 23 जनवरी 2012 को यूपी मेडिकल घोटाले में चौथी मौत हो गई। इस बार प्रोजेक्ट मैनेजर सुनील वर्मा ने अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से खुद को गोली मार ली। सीबीआई उनसे पूछताछ कर ही रही थी। लेकिन सुनील वर्मा की मौत के बाद ये कड़ी टूट गई। इसके बाद 10 फरवरी 2012 को यूपी मेडिकल घोटाले में पांचवी मौत हुई। ये मौत भी दिनदहाड़े हुई, सबके सामने हुई। सीबीआई टीम के बुलावे पर वाराणसी के डिप्टी सीएमओ डॉक्टर शैलेष यादव अपने घर से पिंड्रा इलाके में मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए निकले, लेकिन सड़क हादसे में उनकी संदिग्ध मौत हो गई। और अब इस बार एक बार फिर तरीका वहीं था मगर जगह अलग। एसी त्रिपाठी के साथ आज जो हुआ है वह हादसा था या पूर्व नियोजित प्लान यह तो जांच के बाद ही सामने आयेगा।