गद्दाफी का भूत नहीं छोड़ रहा लीबिया का पीछा
मुअम्मर गद्दाफी के समर्थकों ने लीबिया के पहाड़ी शहर पर कब्जा जमा लिया है। गद्दाफी के कमजोर पड़ने के बाद केन्द्रीय सरकार के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती पैदा हुयी है। इस घटना को लीबिया के पश्चिमी समर्थक शासकों की बढ़ती कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है। नयी सशस्त्र सेना ने पिछले साल गद्दाफी के नेतृत्व वाले शहर बानी बालिद पर कब्जा कर लिया था।
गद्दाफी शासन के खिलाफ यह पहला संगठित अभियान था। गद्दाफी समर्थकों ने लीबिया के शहर पर कब्जा जमाया लीबिया के दूसरे सबसे बड़े शहर बेंगाजी पर कब्जे के बाद अधिकारी किन्ही अन्य स्थानों पर गद्दाफी के नेटवर्क के छिपे होने की आशंका से चिंतित हो गये हैं। लीबिया की सत्तारूढ़ नेशनल ट्रांजिशनल कौंसिल स्वयं अपने कानूनों को लागू करने का संघर्ष कर रही है।
सत्तारूढ़ पार्टी अपनी सरकार को स्थिर और प्रगतिशील दिखा रही है। बानी वालिद पर गद्दाफी समर्थकों के कब्जे की घटना के बाद लीबियाई नागरिकों ने सुधार पर हिंसक विरोध प्रदर्शन किया एवं एनटीसी मुख्यालय और उसके चुनिंदा कार्यालयों पर धावा बोल दिया। बानी वालिद में बेहतर हथियारों और प्रशिक्षण से युक्त सैकड़ो सैनिकों ने स्थानीय एनटीसी ब्रि्रगेड समर्थकों से करीब आठ घंटे की लड़ाई के बाद इस शहर पर कब्जा जमाया।
इस ब्रिगेड को 28 मई ब्रिगेड के नाम से भी जाना जाता है। बानी वालिद परिषद् के प्रमुख मुबारक अल फातमी ने कहा कि ब्रिगेड को बाहर से गद्दाफी समर्थकों का समर्थन प्राप्त था और उन्होंने पश्चिमी शहर की बड़ी इमारतों पर चढ़कर हरा झंडा लहरा दिया। अल फातमी ने बताया कि इस लड़ाई में चार क्रांतिकारी सैनिक मारे गये जबकि अन्य 25 घायल हो गये हैं।