दिल्ली ने देखा है सत्ता के रक्तरंजित मंजर को भी
दिल्ली (ब्यूरो)। दिल्ली आज अपना 100वां जन्मदिन मना रही है। पर कौन यकीन करेगा कि इस दिल्ली को अंग्रेजों ने महज 13 करोड़ रुपये में खड़ा कर दिया था। पर आज उसी दिल्ली में इस रकम में ठीक ठाक जगह पर एक दुकान भी मिल जाए तो सौभाग्य मनाइए। क्योंकि आज की दिल्ली में लंदन और न्यूयॉर्क के सपने हैं। स्वीट्जरलैंड की सोच हैं और जापान व जर्मनी की तकनीकी है। इसलिए यहां सपनों का बाजार लगा है। लोग सपने लेकर आते हैं और अपने सपने संजोते हैं। एक तरफ जहां कनाट प्लेट में चमचमाती गाडियों और माडलों का मेला है, आधुनिकता का शोर है तो वहीं दूसरी तरफ लक्ष्मी नगर और गाजीपुर में स्मलबस्ती का रैला। आधुनिकता औऱ पुरातन का डेरा। इसलिए दिल्ली सभी की दिल की रानी है औऱ सभी के सपनों की राजधानी।
दिल्ली में लंदन है, दिल्ली में न्यूयार्क। चमचमाती सड़कें, बहुमंजिली इमारतें। सड़कों और फ्लाइओवर के साथ दौड़ती तेज रफ्तार मेट्रो। आसमान में हेलीकाफ्टरों औऱ जहाजों का बेड़ा। इसलिए माना जा रहा है कि दो दशक के बाद नई दिल्ली दुनिया के किसी भी खूबसूरत शहर से ज्यादा चमकदार होगी। शहरी योजना कार मानते हैं कि यह नई दिल्ली का चेहरा बदलने की कवायद है। 12 दिसंबर 1911 को दिल्ली अंग्रेजी सरकार की राजधानी बनी। एडमिन लुटियंस और हर्बट ने दिल्ली की डिजाइन की।
नए तरीके से बसे दिल्ली
पर आज एक बार फिर दिल्ली को नए तरीके से संजाने के लिए योजनाकार सलाह दे रहे हैं। दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबंधन निदेशक भी आबादी बढ़ने के साथ इमारतों की ऊंचाई बढ़ाने की जरूरत बताते हैं। मास्टर प्लान जो भी हो कुछ वर्षों पर दिल्ली न्यूयार्क और सिंगापुर से ऊंची इमारतों से यहां बढ़ी इमारतें दिखाई देने लगेंगी। इसी क्रम में एम्स ट्रामा सेंटर में पहला हैलीपैड बनाया जा रहा है। जिससे वीवीआईपी काफिले के कारण लगने वाले जाम से निजात तो मिलेगी ही साथ ही दिल्ली की सूरत और सीरत में भी बदलाव आएगा।
दिल्ली देश का इकलौता महानगर है जिसमें इसके प्राचीन रुतबे के अवशेषों की झलक देखी जा सकती है। दिल्ली का इतिहास बहुत पुराना है और दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में इसका शुमार है। दिल्ली महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था औऱ यह पांडवों की राजधानी रही और बाद में यह तुगलक, लोदी, राजपूत और मुगल शासकों की सत्ता का केंद्र भी, लेकिन आधुनिक दिल्ली का इतिहास महज सौ साल पुराना ही है। आज ही के दिन ब्रिटिश हुक्मरान भारत की राजधानी को कलकत्ता से स्थानांतरित कर दिल्ली लाए थे।
उत्तरी दिल्ली में यमुना नदी के किनारे किंग्जवे कैंप स्थित कोरोनेशन पार्क में भारत के ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम और महारानी मैरी के राज्याभिषेक का जलसा हुआ था, जिसे दिल्ली दरबार कहा गया था। उस जलसे में देश के सभी राजा-महाराजाओं ने अपने पूरे जलवे के साथ शिरकत कर ब्रिटिश संप्रभुता के प्रति सम्मान प्रकट किया था। इसके साथ ही हुई थी नई दिल्ली के बसने की शुरुआत और इसके सूत्रधार बने थे।
अंग्रेजों ने किया दिल्ली का विकास
अंग्रेज वास्तुविद् एडविन लुटियंस उनकी देख-रेख में ही रायसीना पहाड़ी पर वायसराय हाउस बना और उसके आसपास के धूल भरे विशाल मैदान में इंडिया गेट, संसद भवन, केंद्रीय सचिवालय तथा अन्य प्रशासनिक इमारतें और सड़कें बनीं, जिनके नाम सम्राट अशोक, बाबर, हुमायूं, शेरशाह सूरी, पृथ्वीराज चौहान, मानसिंह, अकबर, जहांगीर, बहादुरशाह जफर, तुगलक, इब्राहिम लोदी, शाहजहां, औरंगजेब, लार्ड कर्जन, डलहौजी आदि शासकों और अंग्रेज प्रशासकों के नाम पर रखे गए। इन सड़कों के किनारे बनीं ब्रिटिश हुकूमत के कारिंदों-मुसाहिबों की कोठियां। इस तरह दिल्ली बन गई शासक वर्ग और सरकारी कारकुनों की नगरी।
नई दिल्ली की स्थापना के भले ही सौ बरस हुए हों पर अपने लंबे इतिहास में इस शहर ने पांडवों से लेकर आज तक कई साम्राज्यों और सरकारों का उत्थान-पतन, कई हमलावर शासकों के हमले, विध्वंस और कत्लेआम के मंजर देखे हैं। अपने लंबे इतिहास में दिल्ली कई बार उजड़ी और बसी है। कहा जा सकता है दिल्ली का इतिहास सौभाग्य और दुर्भाग्य का मिला-जुला इतिहास है। इस शहर की जिजीविषा इतनी प्रबल है और इसमें आकर्षण इतना गजब का है कि आज भी यह न सिर्फ देश की राजधानी बनी हुआ है बल्कि दुनिया के सृजनशील, सुरुचिपूर्ण और ऐतिहासिक धरोहरों से समृद्ध चुनिंदा महानगरों में से एक है।
यह एक ऐसा अनोखा महानगर है जो अपने स्वभाव में तमाम आधुनिकताओं को समेटे होने के बावजूद अपने शरीर से पुरातन बना हुआ है। हालांकि वक्त के थपेड़ों ने इस शहर के कई ऐतिहासिक स्मारकों और स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूनों की चमक धुंधली कर दी है लेकिन उनकी मौजूदगी ही इस शहर के शानदार अतीत की कहानी सुना देती है। इन ऐतिहासिक इमारतों और स्मारकों की मौजूदगी से यह शहर आज भी दुनियाभर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है और बार-बार बुलाता है।